मां ने बेटे को टीवी देखने से मना कर पढ़ाई के लिए कहा, तो कलयुगी बेटे ने उठाया ऐसा खौफनाक कदम, जानकर चौंक जाएंगे आप
हिमाचल के बिलासपुर जिले से एक ऐसी हृदयविदारक घटना सामने आई है जिसने पूरे क्षेत्र को स्तब्ध कर दिया है। पनोह गांव में मात्र 14 साल के एक दसवीं कक्षा के छात्र ने आत्महत्या कर ली। वजह जानकर हर कोई हैरान है — बच्चे ने सिर्फ इसलिए अपनी जान दे दी क्योंकि उसकी मां ने उसे टीवी देखने से मना किया और पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा। यह घटना न सिर्फ एक मासूम की जिंदगी के अंत की कहानी है, बल्कि यह सामाजिक मानसिकता, पारिवारिक संवाद और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरे सवाल खड़े करती है।
मामूली तकरार से मौत तक का सफर
यह दर्दनाक घटना गुरुवार को हुई। दसवीं कक्षा में पढ़ने वाला किशोर अपने घर पर टीवी देखने की जिद कर रहा था। लेकिन मां ने उसे सख्ती से डांटते हुए पढ़ाई और होमवर्क पूरा करने की सलाह दी। मां की यह डांट बच्चे को इतनी बुरी लगी कि वह बिना कुछ कहे घर से निकल गया। घरवालों ने सोचा कि वह थोड़ी देर में लौट आएगा, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, चिंता बढ़ती गई।
सुनसान मकान में मिला शव
परिजनों ने किशोर की तलाश शुरू की। कुछ ही समय बाद गांव के पास स्थित एक पुराने, सुनसान मकान में उसका शव फांसी से लटका मिला। यह दृश्य इतना भयावह था कि जिसने भी देखा वह सन्न रह गया। परिजन आनन-फानन में उसे नीचे उतारकर अस्पताल ले गए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पुलिस को तुरंत सूचना दी गई, जिसके बाद शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए घुमारवीं अस्पताल भेजा गया। शुक्रवार को पोस्टमार्टम के बाद शव परिवार को सौंप दिया गया।
मानसिक स्थिति की भी हो रही जांच
घुमारवीं के पुलिस उपाधीक्षक चंद्रपाल सिंह ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि मामला प्रथम दृष्टया आत्महत्या का लग रहा है, लेकिन पुलिस हर कोण से जांच कर रही है। किशोर की मानसिक स्थिति, पारिवारिक माहौल और व्यवहार को लेकर जानकारी जुटाई जा रही है। उसके मोबाइल, स्कूल प्रदर्शन और दोस्तों से भी बातचीत की जा रही है।
एक सवाल: क्या हम अपने बच्चों को समझ पा रहे हैं?
यह घटना सिर्फ आत्महत्या नहीं, बल्कि समाज के लिए चेतावनी है। एक सामान्य सी पारिवारिक डांट से बच्चा इतना टूट गया कि उसने जान देने का फैसला कर लिया। यह बताता है कि आज के दौर में बच्चे कितनी भावनात्मक संवेदनशीलता से गुजर रहे हैं और उन्हें किस हद तक मानसिक सहयोग और मार्गदर्शन की जरूरत है।
अभिभावक बनें भावनात्मक सहारा, न कि दबाव
आज के डिजिटल युग में बच्चों का ध्यान टीवी, मोबाइल और गेमिंग की ओर बहुत ज्यादा जाता है। ऐसे में जब अभिभावक उन्हें रोकते हैं तो टकराव की स्थिति बनती है। लेकिन यह जरूरी है कि अभिभावक सख्ती के साथ संवाद भी करें। बच्चों को डांटने की बजाय समझाना, सुनना और उन्हें अपने भावों को व्यक्त करने का मौका देना ज़रूरी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि आत्महत्या जैसे कदम अक्सर गहरे मानसिक तनाव और अकेलेपन का परिणाम होते हैं। किशोर अवस्था में बच्चे शारीरिक और मानसिक परिवर्तन से गुजरते हैं। ऐसे में उन्हें केवल अनुशासन नहीं, अपनों से जुड़ाव, समझ और सहानुभूति की भी जरूरत होती है।
स्कूल और समाज की भूमिका भी अहम
इस घटना के बाद शिक्षकों, स्कूल प्रशासन और समाज के लोगों को भी आत्मनिरीक्षण करने की ज़रूरत है। क्या हम बच्चों को मानसिक रूप से सशक्त बना रहे हैं? क्या स्कूलों में परामर्शदाताओं (काउंसलर्स) की भूमिका को गंभीरता से लिया जा रहा है? 14 साल का मासूम जो शायद कल किसी बड़े सपने को साकार करता, आज एक अधूरी कहानी बन गया। उसका जाना एक चेतावनी है कि हमें अब भी समय रहते बच्चों के साथ रिश्तों को फिर से परिभाषित करना होगा। टीवी देखने से मना करना गलत नहीं था, लेकिन संवादहीनता और भावनात्मक दूरी ने एक जिंदगी छीन ली। इस दुखद घटना से सीख लेते हुए अब ज़रूरत है कि हम बच्चों के मन को पढ़ना सीखें — क्योंकि कई बार वे जो कह नहीं पाते, उसी में उनकी सबसे बड़ी पीड़ा छिपी होती है।

