25 रुपये की गरम पकौड़ी मांगने पर कर दी हत्या, अब कोर्ट ने सुनाई अनोखी सजा; जानें पूरा मामला
जिले के बाल न्यायालय (जुवेनाइल कोर्ट) ने हाल ही में एक ऐसा अनूठा फैसला सुनाया है, जो पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया है। हत्या जैसे गंभीर आरोप में दोषी पाए गए एक बालक को न्यायालय ने जेल भेजने के बजाय समाज सेवा की सजा सुनाई है। इस फैसले के तहत, आरोपी किशोर को एक साल तक एक राजकीय प्राथमिक विद्यालय में सुबह और शाम दो-दो घंटे सफाई करनी होगी। यह सफाई कार्य स्कूल शिक्षा अधिकारी (DEO प्रारंभिक) की निगरानी में होगा, और हर तीन महीने में इस पर रिपोर्ट न्यायालय को सौंपी जाएगी।
गर्म पकौड़ी ने ली जान
यह पूरा मामला 14 अगस्त 2019 का है, जब झुंझुनूं जिले के उदयपुरवाटी थाना क्षेत्र के कोट बांध इलाके में गर्म पकौड़ी को लेकर विवाद हुआ। परिवादी मोतीराम मीणा ने पुलिस को दी गई रिपोर्ट में बताया कि उनका बेटा सचिन अपने दोस्तों के साथ घूमने निकला था। सभी ने मिलकर पकौड़ी खरीदी, लेकिन दुकानदार ने ठंडी पकौड़ी दे दी। इसी बात को लेकर सचिन और उसके दोस्तों ने आपत्ति जताई, जिससे विवाद बढ़ गया।
विवाद से हिंसा तक का सफर
पकौड़ी के विवाद ने देखते ही देखते हिंसक रूप ले लिया। दुकानदार रामावतार, उसके साथी पिंटू, रतन और एक नाबालिग बालक ने सचिन और उसके दोस्तों पर लाठी-डंडों, पत्थरों और अन्य हथियारों से हमला कर दिया। इस हमले में सचिन गंभीर रूप से घायल हो गया और मौके पर ही उसकी मौत हो गई। सचिन के दोस्त जब उसे अस्पताल ले जा रहे थे, तो रास्ते में फिर से हमला हुआ। आरोपी फूला और उसके साथियों ने बोलेरो गाड़ी पर हमला कर उसके शीशे तोड़ डाले।
किशोर को सफाई की मिली सजा
मामले की जांच के बाद पुलिस ने आरोपी नाबालिग समेत अन्य सभी आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर अदालत में चालान पेश किया। मुख्य आरोपी पिंटू कुमार को हाल ही में आजीवन कठोर कारावास और 50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई जा चुकी है। अन्य आरोपियों को भी विभिन्न धाराओं में सजाएं दी गईं। जबकि किशोर आरोपी का मामला पहले किशोर न्याय बोर्ड में चला, फिर विशेष न्यायालय और अंततः राजस्थान हाई कोर्ट के निर्देशानुसार बाल न्यायालय में स्थानांतरित हुआ।
न्यायालय का मानवीय रुख
बाल न्यायालय की न्यायाधीश दीपा गुर्जर ने यह मानते हुए कि किशोर का सुधार संभव है, उसे एक वर्ष तक सरकारी स्कूल में सफाई करने का आदेश दिया। यह काम वह प्रतिदिन सुबह और शाम दो-दो घंटे करेगा। स्कूल शिक्षा अधिकारी उसकी निगरानी करेंगे, और रिपोर्ट हर तीन महीने में न्यायालय को दी जाएगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 24 के तहत उसकी यह दोष सिद्धि भविष्य में उसकी नौकरी, पासपोर्ट या किसी अन्य सरकारी दस्तावेज को प्रभावित नहीं करेगी।
समाज में फैला संदेश
इस फैसले को समाज में एक सकारात्मक संदेश के रूप में देखा जा रहा है। यह दिखाता है कि सुधारात्मक न्याय प्रणाली कैसे बच्चों को अपराध के रास्ते से लौटाकर समाज की मुख्यधारा में वापस लाने का काम करती है। लोग बाल न्यायालय के इस फैसले की सराहना कर रहे हैं और इसे एक मिसाल मान रहे हैं।