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महरौली से पैदल चलकर अजमेर पहुंचे कलंदर, छड़ियों का जुलूस निकालकर दरगाह में की पेश

अजमेर, 21 दिसंबर (आईएएनएस)। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 814वें उर्स के मौके पर देश में अमन, चैन और भाईचारे का पैगाम लेकर दिल्ली के महरौली से पैदल चलकर पहुंचे कलंदरों और मलंगों ने अजमेर में आस्था और परंपरा का अद्भुत नजारा पेश किया।
महरौली से पैदल चलकर अजमेर पहुंचे कलंदर, छड़ियों का जुलूस निकालकर दरगाह में की पेश

अजमेर, 21 दिसंबर (आईएएनएस)। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 814वें उर्स के मौके पर देश में अमन, चैन और भाईचारे का पैगाम लेकर दिल्ली के महरौली से पैदल चलकर पहुंचे कलंदरों और मलंगों ने अजमेर में आस्था और परंपरा का अद्भुत नजारा पेश किया।

कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह, महरौली से छड़ियां लेकर रवाना हुए कलंदरों के जत्थे एक दिन पूर्व ही अजमेर पहुंचना शुरू हो गए थे। उर्स की रौनक के बीच कलंदरों ने छड़ियों का भव्य जुलूस निकालते हुए दरगाह ख्वाजा साहब में हाजिरी दी और मुल्क में अमन-चैन व भाईचारे की दुआ मांगी।

कलंदरों का यह जुलूस गंज क्षेत्र से शुरू हुआ, जो देहली गेट, धानमंडी और दरगाह बाजार होते हुए रोशनी से पहले दरगाह पहुंचा। जुलूस के दौरान कलंदरों और मलंगों ने परंपरागत छड़ियां हाथ में लेकर हैरतअंगेज करतब दिखाए, जिन्हें देखने के लिए सड़क के दोनों ओर लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। किसी कलंदर ने अपनी जुबान में नुकीली लोहे की छड़ घुसा ली तो किसी ने गर्दन के आर-पार छड़ निकालकर श्रद्धालुओं को चौंका दिया। एक कलंदर ने तलवार से आंख की पुतली बाहर निकालने का करतब दिखाया, वहीं कुछ कलंदरों ने चाबुक से शरीर पर चोट पहुंचाने जैसे कठिन करतब भी पेश किए।

इन अद्भुत और साहसिक करतबों को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह गया। जुलूस के दौरान जगह-जगह कलंदरों का पुष्प वर्षा के साथ स्वागत किया गया। जैसे ही जुलूस दरगाह के निजाम गेट पर पहुंचा, वहां खुद्दाम-ए-ख्वाजा की ओर से कलंदरों और मलंगों का पारंपरिक तरीके से स्वागत किया गया। इसके बाद सभी कलंदरों ने अपनी छड़ियां दरगाह में पेश कीं और ख्वाजा गरीब नवाज की बारगाह में देश-दुनिया में शांति, सौहार्द और भाईचारे की दुआएं मांगीं।

दिल्ली से पैदल चलकर आए एक कलंदर ने बताया कि वे हर साल ख्वाजा गरीब नवाज के सालाना उर्स में छड़ियां लेकर पैदल अजमेर आते हैं और उर्स में हाजिरी लगाते हैं। उन्होंने बताया कि यह परंपरा करीब 850 साल पुरानी है, जिसका निर्वहन आज भी पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ किया जा रहा है।

मान्यता है कि कलंदरों द्वारा दरगाह में छड़ियां पेश किए जाने के बाद ही उर्स की विधिवत शुरुआत मानी जाती है। इस बार भी हजारों की संख्या में पहुंचे कलंदरों ने इस प्राचीन परंपरा को निभाते हुए उर्स को रूहानी रंग में रंग दिया।

--आईएएनएस

पीआईएम/एबीएम

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