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कर्नाटक विधानसभा में विधायक ने की हर हफ्ते 2 फ्री शराब की बोतलों की मांग, कांग्रेस के जवाब से देशभर में गरमाई सियासत

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कर्नाटक विधानसभा में मंगलवार को आबकारी राजस्व को लेकर हुई गंभीर चर्चा के दौरान एक ऐसा बयान सामने आया, जिसने न केवल सदन का माहौल हल्का कर दिया, बल्कि एक नई बहस को भी जन्म दे दिया। जेडी(एस) के वरिष्ठ विधायक एम.टी. कृष्णप्पा ने सुझाव दिया कि शराब पीने वाले पुरुषों को हर सप्ताह दो बोतल शराब मुफ्त में दी जानी चाहिए। वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बी.आर. पाटिल ने इसका पूरी तरह विरोध करते हुए शराबबंदी की पुरज़ोर मांग की। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा 2025-26 के बजट में आबकारी राजस्व लक्ष्य को बढ़ाकर 40,000 करोड़ रुपये किए जाने के बाद यह बहस शुरू हुई। मौजूदा वित्त वर्ष के अंत तक राज्य सरकार को 36,500 करोड़ रुपये जुटाने की उम्मीद है। इस वृद्धि को लेकर कई विधायकों ने चिंता जताई और इस लक्ष्य को कैसे हासिल किया जाएगा, इस पर सवाल खड़े किए।

"गरीबों पर बोझ डाल रही है सरकार": कृष्णप्पा

तुरुवेकेरे से विधायक एमटी कृष्णप्पा ने कहा, “सिर्फ एक साल में सरकार तीन बार आबकारी कर बढ़ा चुकी है। इसका सीधा असर गरीबों पर पड़ रहा है। जब हम मजदूर वर्ग को शराब पीने से नहीं रोक सकते, तो फिर उन्हें कुछ सहूलियत भी मिलनी चाहिए। आप महिलाओं को 2,000 रुपये, मुफ्त बिजली और बस यात्रा दे रहे हैं। ऐसे में पुरुषों को भी कुछ मिलना चाहिए।” उन्होंने आगे कहा, “जो लोग शराब पीते हैं, उन्हें हर सप्ताह दो बोतल शराब मुफ्त में दे दी जाए। वैसे भी सरकार जो योजनाएं चला रही है, उसका पैसा भी तो जनता से ही आता है। समाज के माध्यम से यह सुविधा दी जा सकती है।” कृष्णप्पा के इस बयान पर सदन में कुछ देर के लिए ठहाके भी गूंजे।

"चुनाव जीतिए, सरकार बनाइए और कीजिए": कांग्रेस मंत्री का तंज

सरकार की ओर से ऊर्जा मंत्री के. जे. जॉर्ज ने इस सुझाव का जवाब व्यंग्य में देते हुए कहा, “चुनाव जीतिए, सरकार बनाइए और फिर जो करना है कीजिए। फिलहाल हम लोगों को कम शराब पीने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।”

"यह पाप का पैसा है": बी.आर. पाटिल की तीखी प्रतिक्रिया

विधानसभा में इस बहस का दूसरा सिरा कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक बी.आर. पाटिल के हाथ में था। आलंद से विधायक पाटिल ने शराबबंदी की पुरज़ोर वकालत करते हुए कहा, “यह आबकारी राजस्व पाप का पैसा है। यह गरीबों का खून चूसा हुआ पैसा है। इस पैसे से राष्ट्र का निर्माण नहीं किया जा सकता। महात्मा गांधी ने कहा था कि अगर उन्हें दो घंटे के लिए तानाशाह बना दिया जाए, तो वह सबसे पहले शराब पर प्रतिबंध लगाएंगे।” उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह राष्ट्रीय स्तर पर शराबबंदी का निर्णय ले, जिससे पूरे देश में समान नीति लागू हो सके।

विपक्ष की चिंता: "कहीं हम शराब पर निर्भर न हो जाएं"

भाजपा के विधायक और विधानसभा में विपक्ष के उपनेता अरविंद बेलाड ने चिंता जताई कि राज्य सरकार आबकारी राजस्व पर जरूरत से ज्यादा निर्भर होती जा रही है। उन्होंने कहा, “गृह लक्ष्मी योजना के तहत महिलाओं को 2,000 रुपये दिए जा रहे हैं, जिसकी कुल लागत 28,608 करोड़ रुपये है। लेकिन आबकारी से सरकार 36,000 करोड़ रुपये वसूल रही है। क्या हमें शराब पर इतनी निर्भरता रखनी चाहिए?” उन्होंने बिहार और गुजरात का उदाहरण देते हुए कहा कि ये राज्य बिना या बहुत कम आबकारी राजस्व पर भी अपना काम चला रहे हैं। “अगर हम इसी रास्ते पर चलते रहे, तो आने वाले समय में सामाजिक और नैतिक संकट खड़ा हो सकता है।”

"भाजपा को अब नैतिकता की बात करने का हक नहीं": प्रियांक खड़गे

आईटी और बीटी मंत्री प्रियांक खड़गे ने विपक्ष की आलोचना का जवाब देते हुए कहा कि भाजपा सरकार ने भी अपने समय में आबकारी लक्ष्य 35,000 करोड़ रुपये रखा था। “अगर आप वाकई शराबबंदी के पक्ष में होते, तो तब आंदोलन करते। अब प्रस्ताव लाइए, किसने रोका है आपको?” उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा, “आप गांधी के सिद्धांतों और आरएसएस के विचारों का मनमाने तरीके से उपयोग नहीं कर सकते। जब मन हुआ गांधीवाद, और जब मन हुआ संघवाद!”

कर्नाटक विधानसभा में हुई इस चर्चा ने साफ कर दिया कि राज्य में शराब नीति को लेकर राजनीतिक सहमति नहीं है। एक ओर जहां कुछ नेता इसे समाज की सच्चाई मानकर इसे ‘वेलफेयर स्कीम’ में जोड़ने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ नेता नैतिक आधार पर इसके खिलाफ खड़े हैं। जनता को अब यह देखना होगा कि इस बहस से वास्तव में कोई नीति परिवर्तन निकलता है या यह भी अन्य राजनीतिक चर्चाओं की तरह केवल चर्चा बनकर रह जाता है।

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