जब टीवी बना इतिहास का आईना, श्याम बेनेगल ने 'भारत एक खोज' से बदला था भारतीय टेलीविजन का चेहरा
नई दिल्ली, 13 दिसंबर (आईएएनएस)। एक दौर में भारतीय टेलीविजन का चेहरा बहुत अलग हुआ करता था। वह समय 1970 और 1980 का दशक था, जब भारतीय टेलीविजन सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि ज्ञान और इतिहास से जुड़ने का सशक्त जरिया हुआ करता था। उसी दशक में 'रामायण' और 'महाभारत' जैसे धारावाहिकों के बीच श्याम बेनेगल एक ऐसी ऐतिहासिक श्रृंखला लेकर आए, जिसने दर्शकों को भारत की सभ्यता, संस्कृति और इतिहास से परिचित कराया। यह कार्यक्रम था, 'भारत एक खोज'।
14 दिसंबर 1934 को हैदराबाद के ट्रिमुलघेरी (वर्तमान में तिरुमलागिरी) में जन्मे श्याम बेनेगल का करियर छह दशकों से अधिक लंबा रहा, जिस दौरान उन्होंने भारतीय सिनेमा में अपनी एक अलग पहचान बनाई। बेनेगल की फिल्मोग्राफी में समाज और इतिहास के साथ उनका गहरा जुड़ाव झलकता था। इन्हीं में से एक 'भारत एक खोज’ ने गंभीर विषयों को सहज और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत कर भारतीय टेलीविजन के कंटेंट को एक नई दिशा दी।
10 लेखक और 22 इतिहासकारों की ओर से किए गए साढ़े तीन साल के गहन शोध व 500 से अधिक कलाकारों ने मिलकर तैयार किया 'भारत एक खोज', श्याम बेनेगल के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी। लगभग 20 महीनों का शूटिंग का समय लगा। 1988 में, श्याम बेनेगल ने एक बड़े टेलीविजन सीरियल, 'भारत एक खोज' पर काम करना शुरू किया और उनके शुरुआती फिल्मों के सिनेमैटोग्राफर, गोविंद निहलानी, उनके काम को डॉक्यूमेंट कर रहे थे।
दो महाकाव्य सीरियल 'रामायण' और 'महाभारत' के बीच श्याम बेनेगल के इस सीरियल को बनाने के पीछे का किस्सा भी महत्वपूर्ण है। फिल्मकार ने एक इंटरव्यू में बताया, "जब राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री थे, उन्होंने सोचा कि यह शायद एक बेहतरीन विचार होगा कि हमारे पास दो महाकाव्य हैं (रामायण और महाभारत), तीसरा कुछ ऐसा है, जो वास्तव में भारत के इतिहास से संबंधित है। मैंने तुरंत 'हां' कहा, क्योंकि मुझे यह करना था। मेरे मन में सिर्फ एक ही विचार था और यह 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' था।"
'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' जवाहरलाल नेहरू की किताब है। श्याम बेनेगल इस किताब को कई बार पढ़ चुके थे। 1947 की आजादी से पहले के तकरीबन पांच हजार साल के इतिहास को समेटे उस किताब को पर्दे पर उतारना आसान नहीं था, क्योंकि इसमें सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक काल से लेकर आजादी तक का वर्णन है।
कलाकारों की वेशभूषा से लेकर ऋग्वैदिक भजन और संगीत का चयन करना भी श्याम बेनेगल की कहानी का एक दिलचस्प किस्सा है, क्योंकि हजारों साल पुरानी सभ्यता के हिसाब से हर वस्तु का चयन आसान नहीं था।
फिल्मकार ने बताया था, "मुझे देश के कई संस्थानों की मदद लेनी पड़ी, जैसे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया। इसलिए मैंने अपने आर्ट डायरेक्टर, प्रोडक्शन डिजाइनर और आर्ट डायरेक्टर को दिल्ली भेजा और यहां वह लगभग 8 महीने तक आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के साथ रिसर्च कर रहा था। क्योंकि हमें हर चीज पर रिसर्च करनी थी, जैसे चट्टानों को काटकर मंदिर कब बनने शुरू हुए, मतलब ईंटें, इमारतें कब बननी शुरू हुईं और किस तरह की ईंटें इस्तेमाल होती थीं, मतलब मुगल ईंटें, और अब ब्रिटिश ईंटें जिन्हें हम बड़ी ईंटें कहते हैं, तो इस तरह की रिसर्च की जरूरत थी।"
कॉस्ट्यूम्स के बारे में श्याम बेनेगल ने कहा था, "हमारे पास कई शानदार लोग थे। दक्षिण भारत के लिए चंपक लक्ष्मी, फिर हमारे पास मध्यकालीन भारत के लिए इरफान हबीब थे और फिर आसिया सिद्दीकी थीं।
किसी भी सीरियल के लिए उसका एक स्पष्ट नजरिया होता है, लेकिन जब पूरे भारत की बात थी, तो हर नजरिए से चीजों को रखना एक बड़ी कला थी, जिसे श्याम बेनेगल ने पर्दे पर दिखाया। उन्होंने बताया, "मैंने एक नजरिया डेवलप किया कि इसमें दो व्यूप्वाइंट रखे। एक व्यूप्वाइंट जवाहरलाल नेहरू का व्यूप्वाइंट था, जबकि दूसरा काउंटर व्यूप्वाइंट था।"
'भारत की खोज' के लिए तीन यूनिटें बनाई गई थीं। एक यूनिट थी, जो इतिहास के सभी डॉक्यूमेंट्री सबूतों को कवर कर रही थी, जिसका मतलब है, जो पुराने खंडहर (महल या किले) थे। दूसरी यूनिट कलाकृतियां और कला कवर कर रही थी। तीसरी और प्रमुख यूनिट, असल में उस दौर को जिंदा कर रही थी।
इस महाकाव्य सीरियल के पीछे श्याम बेनेगल की मेहनत को इससे भी समझ सकते हैं कि हड़प्पा सभ्यता से लेकर 19वीं सदी के आखिर तक, सब कुछ दर्शाने के लिए इंटीरियर और एक्सटीरियर मिलाकर 144 सेट बनाए गए थे। 500 से अधिक कलाकारों के साथ काम हुआ करता था।
जब उन्होंने भारत का आधुनिक इतिहास दिखाया, तो सामान्य रूप से प्रवृत्ति होती है कि वह एक राजनीतिक बयान दें, जैसे महात्मा गांधी या जवाहरलाल नेहरू के बारे में बात करें, लेकिन श्याम बेनेगल उससे थोड़ा हटके लगे। उन्होंने उन सामाजिक धाराओं को भी दर्शाया था, जो असल में थीं।
1988 और 1989 के बीच हर रविवार को सुबह 11 बजे, भारत भर के परिवार अपने टेलीविजन चालू करके भारत के इतिहास को आकार लेते हुए 'भारत एक खोज' देख सकते थे, जो 53 एपिसोड की एक लंबी श्रृंखला थी।
--आईएएनएस
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