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जब भी झारखंड आती हैं राष्ट्रपति मुर्मू, प्रोटोकॉल से परे जीवंत हो जाते हैं आत्मीय रिश्ते

रांची, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जब-जब झारखंड आती हैं, तो यह संवैधानिक प्रमुख का महज प्रोटाकॉल के बंधन में आधिकारिक दौरा नहीं रहता, बल्कि स्मृतियों, संवेदनाओं और आत्मीय रिश्तों का पुनर्मिलन बन जाता है। इस धरती से उनका जुड़ाव औपचारिक नहीं, बल्कि आत्मिक है। इसकी झलक हर बार लोगों के बीच उतर आने, स्थानीय भाषा में संवाद करने और प्रकृति तथा परंपराओं के प्रति उनके सहज स्नेह में साफ दिखाई देती है।
जब भी झारखंड आती हैं राष्ट्रपति मुर्मू, प्रोटोकॉल से परे जीवंत हो जाते हैं आत्मीय रिश्ते

रांची, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जब-जब झारखंड आती हैं, तो यह संवैधानिक प्रमुख का महज प्रोटाकॉल के बंधन में आधिकारिक दौरा नहीं रहता, बल्कि स्मृतियों, संवेदनाओं और आत्मीय रिश्तों का पुनर्मिलन बन जाता है। इस धरती से उनका जुड़ाव औपचारिक नहीं, बल्कि आत्मिक है। इसकी झलक हर बार लोगों के बीच उतर आने, स्थानीय भाषा में संवाद करने और प्रकृति तथा परंपराओं के प्रति उनके सहज स्नेह में साफ दिखाई देती है।

सोमवार को झारखंड दौरे के दौरान राष्ट्रपति मुर्मू का यही रूप एक बार फिर सामने आया। एनआईटी जमशेदपुर के 15वें दीक्षांत समारोह में शामिल होने के बाद जब वह सरायकेला से लौट रही थीं, तो उनकी एक झलक पाने के लिए आकाशवाणी चौक पर लोग घंटों से बैरिकेडिंग के पीछे खड़े थे। जैसे ही राष्ट्रपति का काफिला वहां पहुंचा, जनसैलाब का उत्साह देखते ही बनता था। तभी राष्ट्रपति ने प्रोटोकॉल की परवाह किए बिना अपना काफिला रुकवाया और स्वयं वाहन से उतरकर लोगों के बीच पहुंच गईं।

अचानक राष्ट्रपति को अपने सामने पाकर ‘भारत माता की जय’ के नारों से पूरा इलाका गूंज उठा। हाथ जोड़कर अभिवादन स्वीकार करती राष्ट्रपति का यह पल सरायकेला और जमशेदपुर के लोगों के लिए यादगार बन गया। इससे पहले जमशेदपुर में आयोजित ओलचिकी लिपि के शताब्दी समारोह में राष्ट्रपति ने मंच से संथाली भाषा में करीब तीन मिनट तक पारंपरिक ‘नेहोर गीत’ गाकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया था।

उन्होंने बताया कि यह प्रार्थना गीत उन्होंने बचपन में सीखा था, जिसमें ‘जाहेर आयो’ यानी प्रकृति माता से समाज को उजाले के मार्ग पर ले जाने की कामना की जाती है। राष्ट्रपति का गीत सुनकर पूरा सभागार मंत्रमुग्ध हो गया। दो साल पहले राष्ट्रपति झारखंड के खूंटी आई थीं तो उन्होंने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा था, “मैं ओडिशा की हूं लेकिन मेरा खून झारखंड का है। मेरी दादी जोबा मांझी की ससुराल के गांव की रहनेवाली थी।”

झारखंड से राष्ट्रपति मुर्मू का यह रिश्ता उनके राज्यपाल काल के दौरान और गहरा हुआ। वर्ष 2015 से 2021 तक उन्होंने छह साल, एक महीना और 18 दिन झारखंड के राजभवन में बिताए। इस दौरान उन्होंने 52 एकड़ में फैले राजभवन परिसर को पूरी तरह ऑर्गेनिक बनवाया, रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर रोक लगाई, वर्षा जल संरक्षण की व्यवस्था कराई और पारंपरिक कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दिया।

इतना ही नहीं, राजभवन (अब लोकभवन) परिसर के मूर्ति पार्क को नया अर्थ देते हुए उन्होंने झारखंड के वीर बलिदानियों की प्रतिमाएं स्थापित कराई थीं। आज जब भी वह झारखंड आती हैं, लोकभवन में ही रात्रि विश्राम करती हैं। वह यहां के एक-कर्मी के नाम से परिचित हैं और हर बार वह उनके साथ अनौपचारिक संवाद करना नहीं भूलतीं।

--आईएएनएस

एसएनसी/एएसएच

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