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पानी की जगह जमीन ने उगले 1000 कंकाल, हड्डियों पर मिला हरा रंग, गहराया सस्पेंस, जानें क्या हैं पूरा मामला ?

जब भी द्वितीय विश्व युद्ध का जिक्र होता है तो जर्मनी का नाम सबसे पहले दिमाग में आता है। द्वितीय विश्व युद्ध से पहले जर्मनी के बारे में कोई भी कहानी अत्याचारों से भरी है। हिटलर की सेना और उसके द्वारा बनाए गए यातना शिविरों.....

क्राइम न्यूज डेस्क !!! जब भी द्वितीय विश्व युद्ध का जिक्र होता है तो जर्मनी का नाम सबसे पहले दिमाग में आता है। द्वितीय विश्व युद्ध से पहले जर्मनी के बारे में कोई भी कहानी अत्याचारों से भरी है। हिटलर की सेना और उसके द्वारा बनाए गए यातना शिविरों की अनगिनत कहानियाँ दुनिया भर में सुनी और सुनाई जाती हैं। इसकी वजह से जर्मनी के कई शहर पूरी दुनिया में मशहूर हो गये.

जर्मनी के नूर्नबर्ग में सामूहिक कब्रें

नूर्नबर्ग जर्मनी के सबसे प्रसिद्ध शहरों में से एक है। ये ऐतिहासिक शहर अचानक एक बार फिर से सुर्खियों में है. वजह थी शहर के बीचोबीच मिली एक सामूहिक कब्र. कब्र से मुलाकात की ऐसी कहानी सामने आई कि जर्मनी से लेकर पूरे यूरोप में उनका नाम तानाशाह हिटलर से जोड़ा जाने लगा।

1500 काकनाल से मच गया हदनकम

कब्र सामूहिक थी इसलिए सबसे पहले यह तय करना जरूरी था कि यहां कब और कितने लोगों को दफनाया गया है। कुछ घंटों की खुदाई के बाद यह भी पता चला कि यह कब्र करीब 1000 से 1500 लोगों की थी, जिनकी जमीन पर इसी संख्या के आसपास कंकाल निकले थे। चूँकि यह कब्र एक ऐतिहासिक शहर के बहुत पुराने हिस्से में मिली थी, इसलिए पुरातत्व विभाग को इसके लिए हरकत में आना पड़ा। पुरातत्व विभाग के कई वैज्ञानिक कब्र के नीचे गए और वहां पाए गए कंकालों की जांच की प्रक्रिया तेज कर दी। कुछ समय बाद कब्र की कहानियों से अचानक हिटलर का नाम गायब हो गया क्योंकि यह कब्र हिटलर से 200 साल पुरानी साबित हुई।

हड्डियों में हरा रंग

अब हर कोई इस कब्र के बारे में जानने को उत्सुक हो गया। लोग इतिहास के पन्ने कुरेदने लगे. लेकिन इतिहास की किताबें भी इस कब्र के बारे में खामोश साबित हुईं...कहीं भी ऐसा कोई जिक्र नहीं मिला, जिसका इस कब्र से कोई संबंध हो. इसी बीच कब्र से मिली हड्डियों में मिले हरे रंग ने सस्पेंस को और भी गहरा कर दिया. अटकलें और भी तेज हो गईं. अब लोग शुरू से आखिर तक इस खबर की धज्जियां उड़ाने लगे. सबसे पहले लोग यह समझने लगे कि यह कब्र कैसे प्रकट हुई।

पुरातत्व विभाग हरकत में आया

तो समझ आया कि शहर में रिटायरमेंट होम के लिए जमीन की तलाश की गई और उस जमीन पर एक बड़ी इमारत तैयार करने के लिए खुदाई शुरू कर दी गई. जैसे ही जमीन की परतें हटाई गईं तो वहां से कंकाल निकलने लगे। फिर इसे पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया। फिर योजनाबद्ध तरीके से जमीन की खुदाई शुरू की गई। अचानक सामूहिक कब्र की कहानी सामने आ गई. सवाल यह उठता है कि यह कब्र कब और किसने बनवाई। और यहां मिले कंकाल किसके हैं? ये मरते हुए लोग कौन हैं?

प्लेग पीड़ितों का कब्रिस्तान

जब पुरातत्व वैज्ञानिकों ने वहां मिली कुछ हड्डियों की जांच की तो उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि यहां मरने वाले सभी लोग प्लेग महामारी से मरे थे। सामूहिक कब्रों में पाए गए कंकाल प्लेग पीड़ितों के हैं। अब तक लगभग 1,000 कंकाल मिल चुके हैं। और लगातार कंकाल मिलते जा रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि यहां 500 से ज्यादा कंकाल हो सकते हैं।

17वीं सदी का मकबरा

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि ये कब्रें कितनी पुरानी हैं, हालांकि इसका ठीक-ठीक पता अभी नहीं चल पाया है, लेकिन अब तक जो खुलासा हुआ है उसके मुताबिक कहा जा रहा है कि यह 17वीं सदी की कब्र है। यहां के कंकालों में कुछ हड्डियां हरे रंग की भी पाई गईं। वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि इसके पीछे का कारण इस जमीन के पास स्थित एक तांबे की मिल हो सकती है, क्योंकि मिल का कचरा इस हिस्से में गिरता रहता है, जिसके कारण यह हरा रंग हड्डियों में जा रहा है।

ब्लैक डेथ की चपेट में एक शहर

नूर्नबर्ग विरासत संरक्षण विभाग के पुरातत्वविद् मेलानी लैंगबीन और मुख्य मानवविज्ञानी फ्लोरियन मेल्ज़र ने साइंस अलर्ट को बताया, 'भविष्य में, निर्माण क्षेत्र में पाए जाने वाले सभी मानव अवशेषों को संरक्षित किया जा रहा है। फिलहाल हमारा मानना ​​है कि एक बार यह काम पूरा हो जाए तो इसे यूरोप में खोजा गया प्लेग पीड़ितों यानी ब्लैक डेथ का सबसे बड़ा आपातकालीन कब्रिस्तान माना जा सकता है। ब्लैक डेथ या प्लेग ऑफ जस्टिनियन जैसी महामारी के लिए बुबोनिक प्लेग को दोषी ठहराया गया है। ब्लैक डेथ के बाद, नूर्नबर्ग जैसे शहर बहुत प्रभावित हुए।

आनन-फानन में शव को दफना दिया गया

दरअसल, ऐसा माना जाता है कि नूर्नबर्ग में प्लेग से मरने वाले लोगों को ईसाई परंपरा के अनुसार नहीं दफनाया जाता था, बल्कि उन्हें जल्दबाजी में जमीन में गाड़ दिया जाता था। अब वैज्ञानिकों को लगता है कि इन कंकालों से हमें उस समय की मौत की स्थितियों को समझने के साथ-साथ शहर के इतिहास के बारे में और जानने में मदद मिलेगी।

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