"खाने के लिए ही तो कमा रहा हूं!" लंच ब्रेक रोकने पर कर्मचारी का मैनेजर को करारा जवाब, जाने वायरल किस्सा
एक मध्यम स्तर की कंपनी में काम करने वाले एक कर्मचारी द्वारा अपने मैनेजर को दिए गए दो टूक जवाब ने आज सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है। यह वाकया Reddit पर एक यूज़र द्वारा साझा किए गए पोस्ट के माध्यम से सामने आया, जिसमें दावा किया गया कि एक भारतीय मैनेजर ने अपने कर्मचारी को लंच ब्रेक लेने से रोक दिया, जिस पर कर्मचारी ने गुस्से में आकर कहा, "खाने के लिए ही तो कमा रहा हूं, और यहां आप मुझे खाना खाने से ही रोक रहे हो!"
इस घटना ने इंटरनेट पर तूफान ला दिया है। जहां एक ओर लोग कर्मचारी की हिम्मत की तारीफ कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वे "टॉक्सिक वर्क कल्चर" और "पावर ट्रिप" जैसे गंभीर विषयों पर भी सवाल उठा रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?
Reddit पर पोस्ट साझा करने वाले व्यक्ति ने लिखा, "मेरे एक दोस्त के साथ यह वाकया हुआ। वह एक मिड-साइज कंपनी में काम करता है। आज जब वह अपने लंच ब्रेक के लिए जा रहा था, तो उसके मैनेजर ने उसे रोका और कहा कि पहले काम खत्म करो, फिर लंच करो। मेरा दोस्त बहुत भूखा था और जब मैनेजर ने उसे खाना खाने से रोका, तो वह गुस्से में आ गया।"
इसके बाद, उस कर्मचारी ने मैनेजर को जवाब देते हुए कहा,
"खाने के लिए ही तो कमा रहा हूं, और आप मुझे खाने से ही रोक रहे हैं?"
फिर वह अपने शेड्यूल के अनुसार लंच ब्रेक लेने चला गया।
पोस्ट में आगे बताया गया कि घटना के बाद से मैनेजर ने कर्मचारी को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया है। यह रवैया खुद में एक चेतावनी की तरह है कि कैसे ऑफिस कल्चर में मैनेजर्स अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल करते हैं।
सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएं
इस पोस्ट के वायरल होते ही Reddit और X (पूर्व में ट्विटर) पर लोग तेजी से प्रतिक्रिया देने लगे। बहुत से लोगों ने कर्मचारी की हिम्मत की सराहना की और अपने-अपने अनुभव भी साझा किए।
एक यूज़र ने लिखा,
"मुझे पता है कि उस लड़के को लग रहा होगा कि उसने कुछ गलत किया, लेकिन सच्चाई यह है कि वह बहुत से लोगों के लिए मिसाल बन गया है। अब वह मैनेजर दोबारा किसी और से ऐसा कहने से पहले जरूर सोचेगा।"
दूसरे यूज़र ने लिखा,
"मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था। मैं खाना खा रहा था तभी मैनेजर ने फोन करके कहा कि पहले काम पूरा करो, फिर खाना खाओ। मैं बीच में खाना छोड़कर काम करने गया और जब घर पहुंचा तो रो पड़ा। मेरी मां ने तब मुझसे कहा, ‘बेटा, खाने के लिए ही तो कमा रहे हो, अगर खाने भी न दें तो क्या फायदा?’ उसके बाद मैंने भी स्मार्टली जवाब देना शुरू कर दिया।"
तीसरे यूज़र ने लिखा,
"आपका दोस्त बहादुर इंसान है। कुछ साल पहले मेरे साथ भी ऐसा हुआ था, लेकिन मैं खामोश रहा और आज तक अफसोस करता हूं कि क्यों नहीं मैंने अपनी आवाज़ उठाई।"
चौथे यूज़र ने चेतावनी देते हुए कहा,
"उसने जो किया वह सही था, लेकिन मैनेजर शायद अब उस बात को दिल में बैठा लेगा और मौके का इंतजार करेगा बदला लेने के लिए। ये लोग छोटी-छोटी बातों को नहीं भूलते।"
‘टॉक्सिक वर्क कल्चर’ की ओर इशारा करता एक बड़ा उदाहरण
यह घटना उस बड़ी समस्या की ओर इशारा करती है, जिससे आज की युवा पीढ़ी जूझ रही है — टॉक्सिक वर्क कल्चर।
कई कॉर्पोरेट संस्थानों में काम का दबाव इतना ज्यादा होता है कि कर्मचारियों को न तो समय पर खाने का मौका मिलता है, न ही शारीरिक या मानसिक आराम। लंच ब्रेक को एक "लग्ज़री" की तरह देखा जाने लगा है, जबकि यह हर कर्मचारी का बुनियादी अधिकार है।
विशेषज्ञों के अनुसार, लगातार भूखे पेट काम करना न केवल शरीर के लिए हानिकारक है, बल्कि इससे मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन और काम की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। ऐसे में इस तरह की घटनाएं कार्यस्थल के असंतुलन को उजागर करती हैं।
कर्मचारी की बात में छिपा गहरा संदेश
जब कर्मचारी ने अपने मैनेजर से कहा, "खाने के लिए ही तो कमा रहा हूं," तो इस एक लाइन में बहुत कुछ छिपा है। यह लाइन सिर्फ एक जवाब नहीं थी — यह व्यवस्था पर एक तमाचा था जो यह बताता है कि काम के नाम पर इंसानियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
हम सभी काम करते हैं, पैसे कमाते हैं ताकि एक बेहतर जीवन जी सकें — जिसमें स्वस्थ भोजन, परिवार के साथ समय और मानसिक शांति शामिल हो। लेकिन अगर कोई मैनेजर, किसी की भूख और जरूरत को नजरअंदाज करता है, तो वह न केवल अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहा है, बल्कि एक असंवेदनशील नेता भी साबित हो रहा है।
क्या कहता है कानून और एचआर नीति?
भारत में श्रम कानूनों के तहत कर्मचारियों को निश्चित अंतराल पर ब्रेक देना अनिवार्य है। ज्यादातर कंपनियों की एचआर नीति में भी यह स्पष्ट रूप से लिखा होता है कि कर्मचारियों को लंच ब्रेक का अधिकार है, और उसे रोका नहीं जा सकता — जब तक कोई आपात स्थिति न हो।
अगर किसी कंपनी में लगातार इस तरह की घटनाएं हो रही हैं, तो कर्मचारी को इसका रिकॉर्ड रखना चाहिए और उचित प्लेटफॉर्म्स पर इसकी रिपोर्ट करनी चाहिए — चाहे वह एचआर हो या श्रम विभाग।

