असम: 33 साल बाद अस्थायी शिविरों में रहने वाले 30 बाढ़ प्रभावित परिवारों को मिली जमीन
गुवाहाटी, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। तीन दशक से अधिक समय से विस्थापन का दर्द झेल रहे परिवारों के लिए राहत की बड़ी खबर सामने आई है। असम के तिनसुकिया जिले में कैतिया गांव के 30 बाढ़ प्रभावित परिवारों को गुरुवार को जमीन आवंटित की गई। ये परिवार 1992 में ब्रह्मपुत्र नदी की भीषण बाढ़ और कटाव के बाद से पिछले 33 वर्षों से अनिश्चितता भरे हालात में जीवन गुजार रहे थे।
सादिया विधायक बोलिन चेतिया ने लाभार्थी परिवारों को आधिकारिक भूमि आवंटन पत्र सौंपे। इनमें से अधिकांश परिवार नदी कटाव के कारण अपने घर और कृषि भूमि खोने के बाद से अस्थायी शिविरों में रह रहे थे। ये लोग कोरदोइगुरी इलाके में एक छोटे से भूखंड पर बेहद कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहे थे, जहां बुनियादी सुविधाओं और आजीविका के साधनों की भारी कमी थी।
इस अवसर पर बोलिन चेतिया ने कहा कि जमीन का वितरण विस्थापित परिवारों के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत है।
उन्होंने कहा, “33 वर्षों तक इन परिवारों ने बिना सुरक्षा और निश्चितता के जीवन बिताया। आज आखिरकार उन्हें अपनी जमीन मिली है। यह सिर्फ जमीन का आवंटन नहीं, बल्कि सम्मान और उम्मीद की बहाली है।”
लाभार्थियों में से 25 परिवार नंबर-3 कोरदोइगुरी गरिगांव गांव में, चार परिवार दर्जिजन मुआरीबस्ती में और एक परिवार टिपुक सिमालुगुरी बज्रपुत सत्र में रह रहा था। सभी परिवारों को कानूनी भूमि दस्तावेज प्रदान किए गए हैं, जिससे उन्हें स्थायी स्वामित्व और भविष्य में विस्थापन से सुरक्षा मिलेगी।
इस पुनर्वास पहल में स्थानीय चाय बागान मालिकों का भी अहम सहयोग रहा। केसागुरी चाय बागान के मालिक घनश्याम लाहोटी ने 20 बीघा जमीन उपलब्ध कराई, जबकि वृंदावन चाय बागान के मालिक किशोर अग्रवाल ने चार बीघा जमीन दान की। विधायक चेतिया ने दानदाताओं का आभार जताते हुए इसे “सराहनीय मानवीय पहल” बताया।
विधायक ने कहा कि सरकार क्षेत्र में बाढ़ और नदी कटाव से प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने बताया कि इसी वर्ष अगस्त में 1992 की बाढ़ से विस्थापित कैतिया गांव के 101 भूमिहीन परिवारों को सादिया में पुनर्वासित किया गया था। उन परिवारों को घुरमुरा गणेशबाड़ी में पांच बीघा कृषि भूमि और एक बीघा आवासीय भूमि आवंटित की गई थी।
लाभार्थी रूपाली गोगोई ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, “दशकों तक हमने अस्थायी आश्रयों में जीवन बिताया। आज जमीन का मालिकाना हक मिलने से हमें सुरक्षा और अपने बच्चों के भविष्य की उम्मीद मिली है।”
--आईएएनएस
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