भारत-अमेरिका साझेदारी के लिए कैसा था 2025 का ये साल? अमेरिकी दूतावास ने साझा की वीडियो
वॉशिंगटन, 31 दिसंबर (आईएएनएस)। भारत और अमेरिका के संबंधों के लिए ये साल अब तक के सबसे बुरे दौर में रहा। 2025 के अंत और साल 2026 की शुरुआत से पहले भारत में अमेरिकी दूतावास ने एक वीडियो साझा किया है, जिसमें इस साल दोनों देशों के सफर पर प्रकाश डाला गया। हालांकि, दोनों देशों के लिए साल की शुरुआत तो बेहद अच्छी हुई, लेकिन बाद में 2025 में भारत-अमेरिका के रिश्ते मुश्किल दौर से गुजरे। राजनीतिक मतभेद, ट्रेड विवाद और तीखी पब्लिक मैसेजिंग ने पार्टनरशिप को जल्दी ही परख लिया।
59 सेकेंड के इस वीडियो में भारत और अमेरिका के बीच हुई गतिविधियों पर रोशनी डाली गई। 20 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस लौटने के बाद साल की शुरुआत तेजी से हुई। पहले 100 दिनों में, दोनों पक्षों ने तेजी से काम किया। सेक्रेटरी ऑफ स्टेट मार्को रुबियो ने शपथ ग्रहण के एक दिन बाद 21 जनवरी को विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ वाशिंगटन में अपनी पहली द्विपक्षीय बैठक की। इसके बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 फरवरी को ओवल ऑफिस में राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात की। उपराष्ट्रपति जे डी वेंस 20-24 अप्रैल तक भारत आए।
जब ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में जयशंकर को सबसे आगे की लाइन में बैठाया गया, तो भारत के कई आलोचकों ने हैरानी जताई। विदेश मंत्रियों को ऐसी जगह बहुत कम मिलती है। डिप्लोमैटिक दृष्टिकोण से इसे एक सिग्नल के तौर पर देखा गया। भारत की नई सरकार के साथ शुरुआती दोस्ती थी।
दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग में मजबूती आई और इंडो-पैसिफिक सहयोग भी जारी रहा। तकनीक और सप्लाई चेन के मुद्दे एजेंडा में बने रहे। यह भी उम्मीद थी कि लंबे समय से रुकी हुई ट्रेड डील आखिरकार आगे बढ़ सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
साल के बीच में ही दोनों देशों के बीच तनाव शुरू हो गया। यह तनाव उजागर तब हुआ, जब पहली बार ट्रंप और उनकी टीम ने दावा किया कि अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर करवाया। भारत ने इससे साफ इनकार कर दिया।
इसके तुरंत बाद, ट्रंप ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगा दिया, जिसका ट्रेड बातचीत पर बुरा असर पड़ा। द्विपक्षीय व्यापार समझौता टूट गया और भारत में क्वाड लीडरशिप समिट की योजना रद्द की गई। विदेश और रक्षा मंत्रियों के बीच सालाना 2+2 बातचीत नहीं हुई।
हालात ऐसे थे कि कई सालों में पहली बार, अमेरिका के सीनियर अधिकारियों ने भारत के खिलाफ खुलकर बात की। उनका लहजा सख्त था। वहीं दूसरी बड़ी ताकतों के साथ भारत की नजदीकियों ने वॉशिंगटन की बेचैनी बढ़ा दी।
उदाहरण के तौर पर भारत और रूस को लिया जा सकता है। भारत और रूस ने लंबे समय से एक मजबूत और गहरी दोस्ती को बनाए रखा है। वहीं अमेरिका के साथ तनाव के बीच पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच व्यक्तिगत तालमेल साफ दिखता रहा। भारत भी कम कीमतों पर रूसी तेल खरीदता रहा। यह बात वॉशिंगटन को अच्छी नहीं लगी।
यहां से हालात और बिगड़ने लगे। ट्रंप की कैबिनेट और करीबी लोगों समेत अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों ने भारत का नाम लेकर उसकी बुराई की। उन्होंने भारत पर यूक्रेन में रूस के युद्ध के लिए फंडिंग करने का आरोप लगाया।
हालांकि, भारत ने आधिकारिक तौर पर कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन तनाव असली था। भारतीय अधिकारियों ने अपनी बात साफ कर दी। ऊर्जा सुरक्षा और स्ट्रेटेजिक ऑटोनॉमी पर कोई मोलभाव नहीं हो सकता।
दूसरी ओर, चीन के साथ भारत की कोशिशों ने भी ध्यान खींचा। एससीओ समिट के दौरान पीएम मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। नई दिल्ली ने इस मुलाकात को रिश्तों को स्थिर करने की कोशिश के तौर पर देखा। वहीं वॉशिंगटन का नजरिया अलग था।
इसपर मुहर तब लगी जब ट्रंप ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में इस मीटिंग का जिक्र किया। नतीजतन अमेरिका ने भारत को परेशान करने के लिए पाकिस्तान के साथ अपनी नजदीकी बढ़ा ली।
हैरानी की बात तब हुई, जब पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर को व्हाइट हाउस में बुलाया गया। मुनीर ने ट्रंप के साथ प्राइवेट लंच किया। पाकिस्तान के आर्मी चीफ के साथ इस तरह की प्राइवेट पार्टी उम्मीद से परे थी, वो भी तब जब अमेरिका ने पाकिस्तान की सरकार और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को वो तवज्जों नहीं दी।
कुछ महीनों बाद मुनीर फिर से वॉशिंगटन पहुंचे और इस बार उनके साथ पीएम शहबाज शरीफ भी थे। भारत और अमेरिका ने एक नए 10-साल के रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किया। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सेक्रेटरी ऑफ वॉर पीट हेगसेथ ने एक ही बात पर जोर दिया।
वहीं 50 फीसदी टैरिफ के बावजूद, माना जाता है कि इस साल द्विपक्षीय व्यापार बढ़ा है। आंकड़ों पर ध्यान दें, तो अकेले तीन बड़ी अमेरिकी कंपनियों, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और अमेजन, ने भारत के एआई सेक्टर में लगभग 70 बिलियन डॉलर के निवेश का ऐलान किया।
दिसंबर में, इसरो ने एक अमेरिकी सैटेलाइट को स्पेस में लॉन्च किया। दोनों देशों के बीच हाई-टेक्नोलॉजी सहयोग बना रहा। एच-1बी वीजा पर पाबंदियां कड़ी हुईं और नए वीजा नियम जारी किए गए। इसका असर तकनीक, हेल्थकेयर और रिसर्च में भारतीय लोगों पर पड़ा।
साल के आखिर तक भारत-अमेरिका के रिश्ते स्थिर होते दिखे। वे 2025 की शुरुआत जैसी उम्मीद पर वापस नहीं लौटे थे, लेकिन खुली अनबन कम हो गई।
--आईएएनएस
केके/डीएससी

