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‘वो मुसलमान है, और मैं...’, पहले खुद को ही करवाया किडनैप, मामले ने तूल पकड़ा तो पहुंची थाने

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राजस्थान की राजधानी जयपुर से एक महिला RAS अधिकारी के 'लापता' होने का मामला सामने आया, जिसे उसके परिजनों ने लव जिहाद का नाम दिया। परिजनों की ओर से FIR दर्ज करवाए जाने के बाद जब यह मामला तूल पकड़ने लगा, तब महिला अधिकारी खुद थाने पहुंचीं और स्पष्ट किया कि वह अपनी मर्जी से अपने सहयोगी RAS अधिकारी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही हैं और इस पर किसी प्रकार का दबाव नहीं है।

परिजनों ने दर्ज कराई गुमशुदगी, लगाए गंभीर आरोप

मामला जयपुर के शिप्रापथ थाने का है, जहां महिला अधिकारी के माता-पिता ने शिकायत दर्ज कराई कि उनकी बेटी बिना किसी सूचना के घर से चली गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि बेटी को एक मुस्लिम RAS अधिकारी ने बहला-फुसला कर अपने साथ ले गया है और इसे ‘लव जिहाद’ की साजिश बताया।

शिकायत के आधार पर जब पुलिस ने महिला अधिकारी की लोकेशन ट्रेस की, तो पता चला कि वह अपने ही एक सहयोगी अधिकारी के साथ रह रही है। इसके बाद परिजन थाने पहुंचे और बेटी से मिलने की इच्छा जताई। हालांकि, पुलिस के समझाने के बावजूद महिला अधिकारी ने अपने माता-पिता से मिलने से इनकार कर दिया।

महिला अधिकारी बोलीं- अपनी मर्जी से साथ हूं, दबाव नहीं

बाद में महिला अधिकारी खुद बजाज नगर थाने पहुंचीं और बयान दर्ज कराया कि वह बालिग हैं और उन्होंने अपनी मर्जी से लिव-इन रिलेशनशिप का फैसला लिया है। उन्होंने कहा कि वह किसी भी दबाव में नहीं हैं और न ही उनके साथ कोई जबरदस्ती हुई है। अधिकारी ने यह भी स्पष्ट किया कि वह फिलहाल अपने माता-पिता के संपर्क में नहीं रहना चाहतीं।

पुलिस ने लव जिहाद एंगल किया खारिज

महिला के परिजनों ने मुस्लिम अधिकारी अमन खिलेदार पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से मानसिक रूप से प्रभाव डालकर उनकी बेटी को अपने साथ रहने के लिए मजबूर किया। हालांकि, पुलिस ने अब तक की जांच में ऐसे किसी जबरन या आपराधिक इरादे के प्रमाण नहीं पाए हैं। अधिकारी ने साफ किया कि दोनों पक्षों की उम्र, सहमति और कानूनी अधिकारों को ध्यान में रखकर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

संवेदनशील पारिवारिक मामला बना विवाद का कारण

यह मामला अब सामाजिक और धार्मिक स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है, लेकिन पुलिस का रुख स्पष्ट है—महिला बालिग है, उसने स्वतंत्र रूप से फैसला लिया है और कानूनी रूप से वह अपनी मर्जी से किसी के साथ रहने के लिए स्वतंत्र है।

निष्कर्ष

जयपुर में यह मामला केवल एक पारिवारिक असहमति नहीं, बल्कि सामाजिक नजरिए, व्यक्तिगत अधिकार और धार्मिक पहचान के टकराव का उदाहरण भी बन गया है। कानून की नजर में हालांकि जब तक कोई अपराध सिद्ध न हो, तब तक व्यक्तिगत पसंद और सहमति को प्राथमिकता दी जाती है। इस प्रकरण में पुलिस विवेकपूर्वक कदम उठा रही है ताकि कानून, सामाजिक समरसता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता—all का संतुलन बना रहे।

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