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फरीदाबाद मॉड्यूल की जांच में बड़ा खुलासा, जम्मू-कश्मीर में फिर से अलगाववाद को जिंदा करना चाहते थे आरोपी

नई दिल्ली, 8 दिसंबर (आईएएनएस)। फरीदाबाद मॉड्यूल की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे कई चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। पहले यह माना जा रहा था कि यह गिरोह सिर्फ दिल्ली और उसके आसपास धमाकों की तैयारी में था, लेकिन अब पता चला है कि इसके पीछे एक और बड़ी साजिश चल रही थी। ये जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद को फिर से जिंदा करना चाहते थे। यह वही अलगाववाद है जिसने वर्षों तक घाटी में आतंक, हिंसा और अस्थिरता को हवा दी थी।
फरीदाबाद मॉड्यूल की जांच में बड़ा खुलासा, जम्मू-कश्मीर में फिर से अलगाववाद को जिंदा करना चाहते थे आरोपी

नई दिल्ली, 8 दिसंबर (आईएएनएस)। फरीदाबाद मॉड्यूल की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे कई चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। पहले यह माना जा रहा था कि यह गिरोह सिर्फ दिल्ली और उसके आसपास धमाकों की तैयारी में था, लेकिन अब पता चला है कि इसके पीछे एक और बड़ी साजिश चल रही थी। ये जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद को फिर से जिंदा करना चाहते थे। यह वही अलगाववाद है जिसने वर्षों तक घाटी में आतंक, हिंसा और अस्थिरता को हवा दी थी।

एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, जब से अनुच्छेद 370 हटाया गया, तब से कश्मीर में अलगाववाद लगभग खत्म हो गया। इसकी बड़ी वजह यह थी कि सरकार ने कश्मीर को बाकी भारत के साथ जोड़ने पर जोर दिया और दूसरी ओर, अलगाववादी नेताओं पर मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य मामलों में लगातार कार्रवाई होती रही। इससे उस नेटवर्क की कमर टूट गई, जो घाटी के युवाओं को गुमराह करके हथियार उठाने के लिए उकसाता था।

पाकिस्तान लगातार कोशिश करता रहा है कि किसी तरह कश्मीर में आतंकवाद जिंदा रहे, लेकिन उसे यह भी समझ आ गया कि सिर्फ आतंकवादी भेजने से काम नहीं चलेगा। उसके लिए अलगाववादी नेताओं का होना भी जरूरी है, क्योंकि वही विचारधारा फैलाते थे और लोगों को भड़काते थे। यही कारण है कि भारतीय एजेंसियां सिर्फ आतंकियों पर नहीं, बल्कि अलगाववादी सोच के प्रचार-प्रसार को भी रोकने पर ध्यान दे रही हैं।

जांच में शामिल एक अधिकारी ने बताया कि इस मॉड्यूल के सदस्य गंभीर रूप से घाटी में फिर से अलगाववादी माहौल बनाने की कोशिश कर रहे थे। जम्मू-कश्मीर में जिन-जिन जगहों पर छापेमारी हुई, वहां से प्रतिबंधित अलगाववादी संगठनों का साहित्य, पर्चे और पोस्टर मिले। इससे साफ पता चलता है कि यह कोई छोटी साजिश नहीं थी, बल्कि एक बड़े अभियान की तैयारी थी।

मॉड्यूल का मास्टरमाइंड मुफ्ती इरफान अहमद माना जा रहा है। पूछताछ में उसने स्वीकार भी किया कि वे अलगाववाद को फिर से हवा देने की कोशिश कर रहे थे। पुलिस को उसके पास से काफी सामग्री मिली है, जो इस साजिश की पुष्टि करती है। उनका असली मकसद कश्मीर को फिर से 2019 से पहले वाली स्थिति में ले जाना था जब अलगाववादी खुलेआम घूमते थे, युवाओं को भड़काते थे और शुक्रवार की नमाज के बाद पत्थरबाजी करवाते थे।

जैसे ही अलगाववादी खत्म हुए, घाटी में आतंकी भर्ती में भी भारी गिरावट आई। पहले जहां जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों में हर महीने नए युवा शामिल हो जाते थे, अब यह संख्या काफी कम हो गई है। इसका सीधा कारण यह है कि अब वहां कोई नहीं है जो युवाओं को भड़काए, गुमराह करे या पाकिस्तान के एजेंडे पर काम करे।

इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक अधिकारी ने कहा कि अलगाववाद खत्म होने का मतलब है कि वह विचारधारा ही खत्म हो गई, जो युवाओं को हथियार उठाने पर मजबूर करती थी। सरकार अब लगातार यह संदेश दे रही है कि कश्मीर का युवा पढ़ाई, कारोबार, खेल और पर्यटन जैसी सकारात्मक गतिविधियों में हिस्सा ले। सरकार के विकास कार्यों ने वास्तव में पर्यटन को भी काफी बढ़ावा दिया है। हालांकि बीच में पहलगाम हमले के जरिए पाकिस्तान ने पर्यटकों को डराने की कोशिश की, लेकिन वह असर ज्यादा देर टिक नहीं पाया।

जांच में खुलासा हुआ है कि इस मॉड्यूल ने घाटी में अलगाववादी विचारधारा फैलाने के लिए पूरा अभियान तैयार कर लिया था। इनके पास पोस्टर, बैनर, पर्चे सब कुछ तैयार था। योजना यह थी कि पूरे जम्मू-कश्मीर में बड़ी मात्रा में यह सामग्री बांटी जाएगी, ताकि युवाओं का मन फिर से भड़काया जा सके।

रविवार को पुलिस ने पुलवामा में छापेमारी की, जहां उन्हें प्रतिबंधित संगठनों का साहित्य, अलगाववादी पोस्टर और पर्चे मिले। इससे यह साफ हो गया कि यह मॉड्यूल सिर्फ धमाके करने की नहीं, बल्कि घाटी में फिर से तनाव और अलगाववाद पैदा करने की बड़ी साजिश पर काम कर रहा था।

--आईएएनएस

पीआईएम/वीसी

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