
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के बुजुर्गा गांव में हुई एक दर्दनाक और झकझोर देने वाली वारदात ने समाज की संवेदनशीलता और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को कठघरे में खड़ा कर दिया है। एक दृष्टिहीन और निर्बल साधु की गला रेतकर हत्या केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक चेतना की हत्या जैसी प्रतीत होती है।
52 वर्षीय दृष्टिहीन साधु की बेरहमी से हत्या
मृतक की पहचान रामनगीना यादव के रूप में हुई है, जो जन्म से दृष्टिहीन थे और वर्षों से गांव के मंदिर में रहकर पूजा-पाठ करते थे। उनका जीवन अत्यंत साधारण था – वे भिक्षा मांगकर और मंदिर की देखरेख कर गुज़ारा करते थे। गांव के लोग उन्हें शांत, धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति मानते थे।
रात के अंधेरे में साधु की गला रेतकर हत्या
यह खौफनाक वारदात सोमवार रात की है, जब रामनगीना गांव की एक आटा चक्की के बाहर सो रहे थे। उसी दौरान अज्ञात हमलावरों ने चुपचाप आकर उनका गला काट दिया और फरार हो गए। मंगलवार सुबह जब ग्रामीणों ने खून से लथपथ शव देखा, तो पूरे गांव में अफरा-तफरी मच गई।
जमीनी विवाद या धार्मिक असहिष्णुता?
स्थानीय लोगों का कहना है कि रामनगीना का अपने सगे भाई से पुश्तैनी जमीन को लेकर विवाद चल रहा था। पुलिस भी प्रथम दृष्टया इसे जमीनी विवाद का परिणाम मान रही है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या एक दृष्टिहीन साधु को, जो सामाजिक जीवन से लगभग अलग-थलग था, इतनी नृशंसता से मार देना केवल जमीन का मामला है? या फिर इसमें कोई और गहरी साजिश छिपी है?
धार्मिक स्थलों की सुरक्षा पर सवाल
मंदिरों को शांति, आस्था और आध्यात्म का प्रतीक माना जाता है। लेकिन जब एक साधु, वह भी दृष्टिहीन, वहां सुरक्षित नहीं है, तो यह धार्मिक स्थलों की सुरक्षा व्यवस्था और प्रशासन की संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
गांव में दहशत और गुस्से का माहौल
घटना के बाद गांव में दहशत का माहौल है। ग्रामीणों में आक्रोश है और वे जल्द से जल्द हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। सीओ सिटी शेखर सेंगर ने बताया कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई को आगे बढ़ाया जाएगा।
क्या कहती है ये घटना?
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दिव्यांग और वृद्ध लोगों की सुरक्षा की अनदेखी आज भी गांवों में गंभीर समस्या है।
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जमीनी विवादों का समाधान प्रशासन द्वारा समय रहते न किया जाना, ऐसे अपराधों को जन्म देता है।
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धार्मिक स्थलों की सुरक्षा अब केवल सांप्रदायिक हिंसा की दृष्टि से नहीं, व्यक्तिगत रंजिशों के खिलाफ भी मज़बूत होनी चाहिए।
न्याय की पुकार
रामनगीना यादव अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी नृशंस हत्या ने कई सवाल छोड़ दिए हैं। क्या हमारा समाज इतना असंवेदनशील हो गया है कि अब मंदिरों में भी साधु सुरक्षित नहीं? क्या दिव्यांगों के जीवन की कोई कीमत नहीं बची?
सरकार और प्रशासन को चाहिए कि ऐसी घटनाओं पर त्वरित और कठोर कार्रवाई करें, ताकि धार्मिक स्थलों की गरिमा और मानवता की रक्षा हो सके।