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भारत की 'लेडी टार्जन', जिन्होंने पेड़ों को बचाने के लिए कभी अपनी जान की भी नहीं की परवाह

नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। 'लेडी टार्जन' पढ़ते ही शायद आपको लगे कि हम किसी फिल्म के किरदार की बात कर रहे हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। हम बात कर रहे हैं जंगलों को अपना घर समझने और पेड़ों की परिवार की तरह देखभाल करने वाली जमुना टुडू की, जिन्होंने पेड़ों को काटने से बचाने के लिए कभी अपनी जान की भी परवाह नहीं की।
भारत की 'लेडी टार्जन', जिन्होंने पेड़ों को बचाने के लिए कभी अपनी जान की भी नहीं की परवाह

नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। 'लेडी टार्जन' पढ़ते ही शायद आपको लगे कि हम किसी फिल्म के किरदार की बात कर रहे हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। हम बात कर रहे हैं जंगलों को अपना घर समझने और पेड़ों की परिवार की तरह देखभाल करने वाली जमुना टुडू की, जिन्होंने पेड़ों को काटने से बचाने के लिए कभी अपनी जान की भी परवाह नहीं की।

19 दिसंबर 1980 को झारखंड के छोटे से गांव में जन्मी जमुना टुडू की कहानी किसी रोमांचक फिल्म से कम नहीं है। जंगलों और पेड़ों के बीच पली-बढ़ी जमुना ने हमेशा प्रकृति से गहरा लगाव रखा और यह समझा कि पेड़ केवल हमारी हवा और छाया नहीं हैं, बल्कि वे जीवन का मूल हैं और उनका यही विश्वास और निश्चय उन्हें हर मुश्किल का सामना करने की ताकत देता रहा।

जमुना का जीवन हमेशा आसान नहीं रहा। उन्होंने अपने परिवार की आर्थिक जिम्मेदारियों को भी उठाया। वह दिहाड़ी मजदूरी करतीं, अपने घर का खर्च चलातीं और अपने परिवार की देखभाल भी करतीं। उनके पति राजमिस्त्री का काम करते थे, लेकिन इन सभी जिम्मेदारियों के बावजूद जमुना का दिल और दिमाग हमेशा जंगल और पेड़ों की सुरक्षा में लगा रहता था।

जब उन्होंने देखा कि उनके गांव और आसपास के जंगल लगातार कट रहे हैं और अवैध लकड़ी माफिया हर दिन पेड़ों को उखाड़कर ले जा रहे हैं, तो जमुना ने अपने भीतर की आवाज को सुना और तय किया कि वह सिर्फ देखती नहीं रहेंगी। वह अकेले ही जंगल में जातीं, लकड़ी काटने वालों को समझातीं, और उन्हें जंगल और पेड़ों के महत्व के बारे में बतातीं। कभी-कभी तो यह काम खतरनाक भी हो जाता। टिम्बर माफिया और नक्सली समूहों से सामना करते हुए उन्हें जान का भी जोखिम उठाना पड़ता, लेकिन उन्होंने कभी पीछे नहीं हटने का फैसला किया। उनके साहस और निडरता को देखकर कई और लोग भी उनके साथ पेड़ों को बचाने की मुहीम में जुड़े।

जमुना टुडू ने अपने प्रयासों को और संगठित रूप देने के लिए 'वन सुरक्षा समिति' की स्थापना की। यह समिति सिर्फ उनके गांव तक सीमित नहीं रही, बल्कि धीरे-धीरे पूरे झारखंड में फैल गई। समिति ने पेड़ों की अवैध कटाई रोकने के लिए न सिर्फ जागरूकता अभियान चलाए, बल्कि स्थानीय समुदायों को भी इस मिशन से जोड़ा। उनका संघर्ष आसान नहीं था। कई बार माफिया और नक्सलियों ने उन्हें धमकाया, हमला किया, लेकिन जमुना डटी रहीं।

उनकी इस अद्वितीय सेवा को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2019 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा। यह सम्मान सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि उन हजारों लोगों के लिए प्रेरणा है जो अपने समाज और पर्यावरण के लिए कुछ करना चाहते हैं। वहीं, उन्हें वूमेन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया और गॉडफ्रे फिलिप्स राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

--आईएएनएस

पीआईएम/डीकेपी

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