भगवद गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को की ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ सूची में मिला स्थान, पीएम मोदी ने इसे बताया ''हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण’’

भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को वैश्विक मंच पर एक बार फिर ऐतिहासिक मान्यता मिली है। यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन (यूनेस्को) ने भारत के दो प्राचीन ग्रंथों— भगवद गीता और भरतमुनि के नाट्यशास्त्र— को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में शामिल किया है। यह सम्मान भारतीय ज्ञान, दर्शन, कला और साहित्य की गहराई और कालातीतता को दुनिया भर में रेखांकित करता है।
इस ऐतिहासिक उपलब्धि को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी प्रतिक्रिया दी है और इस क्षण को "हर भारतीय के लिए गर्व का विषय" बताया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा—
"दुनिया भर में हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण! गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया जाना हमारे कालातीत ज्ञान और समृद्ध संस्कृति की वैश्विक मान्यता है। भगवद गीता और नाट्यशास्त्र ने सदियों से सभ्यता और चेतना का पोषण किया है। उनकी अंतर्दृष्टि दुनिया को प्रेरित करती रहती है।"
A proud moment for every Indian across the world!
— Narendra Modi (@narendramodi) April 18, 2025
The inclusion of the Gita and Natyashastra in UNESCO’s Memory of the World Register is a global recognition of our timeless wisdom and rich culture.
The Gita and Natyashastra have nurtured civilisation, and consciousness for… https://t.co/ZPutb5heUT
क्या है ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’?
यूनेस्को का ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड प्रोग्राम’ विश्व की सबसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेजी विरासत को संरक्षित करने और उसके संरक्षण की दिशा में काम करता है। इसका उद्देश्य उन ऐतिहासिक ग्रंथों, पांडुलिपियों, अभिलेखों, ऑडियो-विजुअल दस्तावेजों और अन्य महत्वपूर्ण रिकॉर्ड्स को पहचानना है, जो मानव इतिहास, संस्कृति और सभ्यता के लिए अत्यंत मूल्यवान हैं। इस सूची में नाम शामिल होना एक वैश्विक मान्यता है कि संबंधित रचना मानव जाति के सामूहिक बौद्धिक और सांस्कृतिक स्मृति का हिस्सा है। इससे न केवल उनकी महत्ता बढ़ती है, बल्कि उनके संरक्षण और संवर्धन को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बल मिलता है।
भगवद गीता: जीवन दर्शन का मार्गदर्शक ग्रंथ
भगवद गीता, जो कि महाभारत के भीष्म पर्व का एक भाग है, केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि जीवन का सार्वभौमिक दर्शन है। इसमें श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश न केवल कर्म और धर्म की गहराई को समझाता है, बल्कि यह आत्मा, जीवन, मृत्यु और मोक्ष जैसे गूढ़ विषयों पर भी प्रकाश डालता है। गीता के 18 अध्यायों में निहित ज्ञान, तर्क, विवेक और संतुलित दृष्टिकोण ने न केवल भारतीय समाज को बल्कि पूरी दुनिया को प्रेरित किया है। महात्मा गांधी से लेकर ओपनहाइमर और एल्डस हक्सली जैसे विश्वविख्यात विद्वान गीता से प्रभावित रहे हैं। यूनेस्को द्वारा गीता को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ में शामिल करना यह साबित करता है कि यह ग्रंथ न केवल धार्मिक ग्रंथ है बल्कि विश्व मानवता के लिए एक कालजयी जीवन-दर्शन भी है।
नाट्यशास्त्र: भारतीय कला और रंगमंच की नींव
नाट्यशास्त्र, जिसे भरतमुनि ने रचा, भारतीय नाट्य परंपरा, संगीत, नृत्य और मंच प्रस्तुति का पहला और सबसे व्यापक ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ न केवल नाटकों की रचना और मंचन की विधियों का वर्णन करता है, बल्कि इसमें रस सिद्धांत, अभिनय, संगीत, वेशभूषा, मंच सज्जा, और भाव संप्रेषण जैसे कई महत्वपूर्ण पहलुओं की चर्चा है। लगभग 2000 साल पहले रचित इस ग्रंथ ने भरतनाट्यम, कथक, कुचिपुड़ी और अन्य भारतीय शास्त्रीय कलाओं की नींव रखी। यह केवल कला के नियमों का संग्रह नहीं है, बल्कि इसमें भारतीय संस्कृति और सौंदर्यशास्त्र की गहराई झलकती है। इस ग्रंथ को वैश्विक मान्यता मिलने से न केवल भारतीय परंपरा को नई प्रतिष्ठा मिली है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को भारतीय रंगमंच और नाट्यकला की जड़ों से जुड़ने का अवसर भी देगा।
सांस्कृतिक विरासत की अंतरराष्ट्रीय मान्यता
भारत एक प्राचीन सभ्यता है जिसकी दार्शनिक, साहित्यिक और कलात्मक परंपराएं हजारों वर्षों पुरानी हैं। लेकिन कई बार इन गूढ़ और मूल्यवान ग्रंथों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर वह मान्यता नहीं मिलती जो मिलनी चाहिए। गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को की सूची में शामिल किया जाना इस दिशा में एक बड़ा और सकारात्मक कदम है। यह उपलब्धि न केवल भारतीय संस्कृति के वैश्विक मूल्य को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि भारतीय ज्ञान परंपरा आज भी प्रासंगिक है और दुनिया को दिशा देने में सक्षम है।
सरकार की भूमिका और भविष्य की दिशा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी सांस्कृतिक धरोहर को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाने के लिए कई प्रयास किए हैं। योग दिवस की अंतरराष्ट्रीय मान्यता हो या खादी के पुनर्प्रचार का अभियान, हर पहल भारत की सांस्कृतिक आत्मा को वैश्विक पहचान दिलाने की ओर अग्रसर रही है। इस उपलब्धि को आगे बढ़ाते हुए, सरकार को चाहिए कि इन ग्रंथों के अनुवाद, डिजिटलीकरण और अध्ययन को बढ़ावा दे ताकि विश्व के छात्र, विद्वान और शोधकर्ता इन अमूल्य धरोहरों तक सहजता से पहुँच सकें।
भगवद गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड सूची में शामिल किया जाना भारतीय संस्कृति, दर्शन और कला की एक वैश्विक विजय है। यह केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि यह भारत की आत्मा की वैश्विक स्वीकृति है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसे "हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण" कहना उचित ही है। यह गौरव का क्षण है – न केवल अतीत के लिए, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी, जो अब इस गौरवशाली धरोहर से और अधिक आत्मीयता से जुड़ पाएँगी।