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मुंबई समेत अन्य 7 भारतीय शहरों में देखने को मिल सकती हैं अहमदाबाद जैसी आपदा, जाने शहरों में एयरपोर्ट की ‘बेड़ी’ कितनी घनी?

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भारत में विमानन क्षेत्र तेजी से विस्तार कर रहा है, लेकिन इसके साथ ही एक गंभीर खतरा भी बढ़ता जा रहा है — हवाई अड्डों के चारों ओर बेतरतीब शहरीकरण। अहमदाबाद में हाल ही में हुई भयावह विमान दुर्घटना ने इस खतरे को एक बार फिर उजागर कर दिया है। एक नई वैश्विक स्टडी में चेतावनी दी गई है कि भारत के आठ प्रमुख हवाई अड्डे दुनिया के सबसे अधिक घिरे (enclosed) हवाई अड्डों में शामिल हैं, जिनमें मुंबई सबसे ऊपर है, और अहमदाबाद 12वें स्थान पर है।

अहमदाबाद हादसे की पृष्ठभूमि

12 जून को अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरने के कुछ ही मिनटों बाद एअर इंडिया की फ्लाइट 171 दुर्घटनाग्रस्त हो गई। यह विस्फोट इतना भीषण था कि विमान आग के गोले में तब्दील हो गया। यह हादसा मेघानीनगर स्थित न्यू लक्ष्मीनगर कॉलोनी से महज 250 मीटर की दूरी पर हुआ, जहां 600 फ्लैट्स में लगभग 2000 लोग रहते हैं। लक्ष्मीनगर की निवासी इला बताती हैं, “हमारे ब्लॉक एफ की छत से देखने पर लगता है जैसे मौत सिर्फ एक कदम दूर थी। अगर वह विमान थोड़ा भी भटका होता, तो हम सब खत्म हो जाते।” उनके अनुसार, यह हादसा अहमदाबाद सिविल हॉस्पिटल कैंपस और बीजे मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल से भी बेहद करीब था।

‘एन्क्लोजर इंडेक्स’ और क्या कहता है अध्ययन

यह भयावहता केवल अहमदाबाद तक सीमित नहीं है। बेल्जियम के शोधकर्ताओं ताइस ग्रिपा और फ्रेडरिक डोब्रुश्केस द्वारा तैयार की गई स्टडी ‘You’re Surrounded! Measuring the Enclosure of Airports in Urban Areas’ के मुताबिक, भारत के 8 हवाई अड्डे दुनिया के टॉप 50 सबसे अधिक शहरी घेराव वाले हवाई अड्डों में शामिल हैं।

  • मुंबई का छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा इस सूची में पहले स्थान पर है।

  • अहमदाबाद का 12वां स्थान, एन्क्लोजर इंडेक्स 10,82,503 के साथ, दर्शाता है कि यह शहर हवाई सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है।

यह ‘एन्क्लोजर इंडेक्स’ यह मापता है कि हवाई अड्डे के 15 किमी के दायरे में कितनी घनी आबादी निवास करती है। आबादी जितनी पास होगी, खतरा उतना अधिक।

शहरी विस्तार और नियोजन की विफलता

नर्मदा यूनिवर्सिटी के शहरी नियोजन विशेषज्ञ उत्पल शर्मा कहते हैं, “मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद जैसे अधिकांश हवाई अड्डों का निर्माण उस समय हुआ जब ये शहर अपेक्षाकृत छोटे थे। अब शहरी फैलाव ने इन्हें चारों ओर से घेर लिया है।” कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अब पुराने हवाई अड्डों को हटाना कठिन है, लेकिन नए हवाई अड्डों — जैसे कि धोलेरा में प्रस्तावित अहमदाबाद का नया हवाई अड्डा — की योजना इस चेतावनी को ध्यान में रखकर बनानी चाहिए।

सुरक्षा मानकों की अनदेखी

भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) के पूर्व महाप्रबंधक सुभाष कुमार के अनुसार, “हादसे का प्रभाव क्षेत्र लगभग 200 मीटर में फैला था। अगर हवाई अड्डे के चारों ओर 3 किमी का बफर ज़ोन लागू होता, तो शायद यह त्रासदी टल सकती थी।” उनकी रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि रेज़िडेंशियल ज़ोन की रनवे के बेहद पास मौजूदगी ने बचाव कार्यों को कठिन बना दिया। शहरी विकास मंत्रालय ने इस हादसे के बाद जोनिंग उल्लंघनों की समीक्षा के आदेश दिए हैं।

क्या कहते हैं विकास के दिशानिर्देश?

  • नए हवाई अड्डों के लिए 6-8 वर्ग किमी के बफर ज़ोन की सिफारिश की गई है।

  • URDPFI दिशानिर्देश के अनुसार, हवाई अड्डे के चारों ओर 20 किमी तक के दायरे में बहुत कम विकास होना चाहिए।

  • स्कूल, अस्पताल, रेज़िडेंशियल कॉलोनियां, और ज़ू/बर्ड सेंक्चुअरी जैसी संरचनाएं वर्जित होनी चाहिए।

लेकिन ये निर्देश व्यवहार में नहीं उतरते

‘एयरपोर्ट फ़नल’ और खतरे

हवाई अड्डे के आस-पास का ‘फ़नल एरिया’ — जहां से विमान टेक-ऑफ या लैंड करते हैं — बेहद संवेदनशील होता है। यदि इस क्षेत्र में ऊँची इमारतें बन जाएं, तो विमान की सुरक्षा खतरे में आ सकती है। पीएल शर्मा, शहरी योजना विशेषज्ञ, बताते हैं कि सूरत जैसे शहर में 2016 में 20 इमारतें फ़नल को बाधित कर रही थीं, जो आज भी मौजूद हैं। भुज और भावनगर जैसे छोटे शहरों में तो फ़नल मापन की कोई व्यवस्था ही नहीं है।

गरीबी और सुरक्षा का टकराव

मुंबई के धारावी जैसे इलाके हवाई अड्डे के बिल्कुल पास हैं। ये क्षेत्र कम आय वर्ग के लोगों से भरे हैं, जिन्हें यह भी नहीं पता कि वे कितने बड़े खतरे के साए में जी रहे हैं। पूर्व AAI इंजीनियर अमिताभ पावड़े बताते हैं, “जब विमान टेक-ऑफ करता है और वातावरण गर्म होता है, तो हवा हल्की हो जाती है, जिससे विमान को पर्याप्त थ्रस्ट बनाए रखना मुश्किल होता है। ऐसे में टेक-ऑफ के दौरान दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है।”

समाधान की तलाश

  • शहरी नियोजन को नगर निगम स्तर नहीं, बल्कि मेट्रोपॉलिटन स्तर पर करने की जरूरत है।

  • 74वें संविधान संशोधन के अनुसार, Metropolitan Planning Committees (MPC) को शहरी विकास की योजना बनानी होती है, लेकिन इनका प्रभाव सीमित रहा है।

  • नए एयरपोर्ट्स को शहरों से 30-40 किमी दूर बनाना और उनके चारों ओर योजना के अनुसार होटल, रियल एस्टेट और परिवहन सुविधा विकसित करना ही समाधान हो सकता है — जैसा कि दिल्ली के एयरोसिटी मॉडल में हुआ है।

अहमदाबाद की दुर्घटना एक चेतावनी है। लेकिन क्या हम इसे भी भूल जाएंगे, जैसे पहले की त्रासदियों को भुला दिया गया? उत्पल शर्मा का तंज है — “जब तक त्रासदी सिर पर नहीं आती, तब तक हम सतर्क नहीं होते। आज भी भारत के बड़े शहर छोटे सोच रहे हैं। हमारे शहरी योजनाकार सरकार के सामने सच्चाई रखने से कतराते हैं।” भारत के नागरिक उड्डयन के भविष्य के लिए यह आवश्यक है कि विकास और सुरक्षा में संतुलन बनाया जाए। विमान दुर्घटनाएं लाख में एक होती हैं, लेकिन अगर शहर की योजनाएं इन्हें रोक सकती हैं, तो हमें उन्हें लागू करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।

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