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विवाद के बाद पति ने कुल्हाड़ी से काटा पत्नी का गला, फिर खुद पेड़ पर फांसी लगाकर की आत्महत्या

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उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले से एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने एक बार फिर ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ते मानसिक तनाव और पारिवारिक असंतुलन की गंभीरता को उजागर कर दिया है। यह कोई अपराध की साजिश नहीं थी, न ही कोई सामूहिक हिंसा, बल्कि यह एक रिश्ते की टूटन और क्षणिक गुस्से की वह भयावह परिणति थी, जिसमें एक ने अपने जीवनसाथी की जान ली और फिर खुद को भी मौत के हवाले कर दिया।

चिरौंजी बीनने निकले थे जंगल, लौटे नहीं

बरकोनिया थाना क्षेत्र के पलपल गांव के रहने वाले राजेंद्र गुर्जर अपनी पत्नी रीता के साथ जंगल में चिरौंजी बीनने के लिए गए थे। यह एक आम दिन की तरह शुरू हुआ था, लेकिन जंगल से लौटते समय न कोई फल था, न उम्मीद—बल्कि दो लाशें थीं। जंगल, जो आजीविका का साधन था, वो एक असामान्य अंत का गवाह बन गया।

क्षणिक गुस्सा या लंबे समय का मानसिक तनाव?

सूत्रों के अनुसार, जंगल में दोनों के बीच किसी बात को लेकर विवाद हुआ। यह कहना आसान है कि “विवाद के बाद गुस्से में हत्या कर दी,” लेकिन असल में ये सवाल बड़ा है—क्या यह मात्र एक तात्कालिक झगड़ा था या वर्षों का दबी हुई खटास का विस्फोट?

अपर पुलिस अधीक्षक कालू सिंह ने बताया कि राजेंद्र ने कुल्हाड़ी से अपनी पत्नी की गर्दन पर वार किया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद खुद भी पत्नी की साड़ी से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

परिवारों और समाज के लिए चेतावनी

ग्रामीण भारत में अक्सर घरेलू कलह को “घरेलू मामला” मानकर नजरअंदाज कर दिया जाता है। लेकिन जब ऐसी घटनाएं घटती हैं, तब यह साफ हो जाता है कि ऐसे तनाव किसी दिन विस्फोट बन सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी, संवाद की कमी, और अति गुस्से की प्रवृत्ति ऐसे त्रासदियों को जन्म देती हैं।

जंगलों में होने वाली घटनाएं – प्रशासन के लिए चुनौती

यह घटना जंगल में हुई, जहाँ न कोई साक्षी होता है और न ही तुरंत मदद पहुँचती है। ऐसी जगहों पर घटने वाले अपराध अक्सर देर से रिपोर्ट होते हैं और सुराग मिलना भी मुश्किल हो जाता है। इस केस में भी पुलिस को घटना की जानकारी दोपहर बाद मिली और शव बरामद करने में देरी हुई।

अब सवाल उठते हैं...

  • क्या गांवों में पति-पत्नी के बीच तनाव को सुलझाने के कोई मंच हैं?

  • क्या जंगलों में काम के लिए जाने वाले ग्रामीणों के लिए कोई सुरक्षा व्यवस्था है?

  • क्या प्रशासनिक व्यवस्था को ऐसे क्षेत्रों में ज्यादा सक्रिय नहीं होना चाहिए?

निष्कर्ष: रिश्तों में संवाद की ज़रूरत

राजेंद्र और रीता की मौत केवल दो लोगों की नहीं, बल्कि समाज की चुप्पी की भी हार है। यह घटना एक आइना है, जो हमें दिखाता है कि अब वक़्त है – ग्रामीण भारत में रिश्तों, मानसिक स्वास्थ्य और संवाद पर ध्यान देने का। नहीं तो कल यही जंगल किसी और प्रेम, गुस्से या चुप्पी की कब्रगाह बन जाएगा।

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