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शादी के 7 दिन बाद बदला भाभी का मूड, देवर की दुल्हनिया बनने की करने लगी जिद… पति ने लिया ये फैसला

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देवर-भाभी का रिश्ता सामान्यतः भाई-बहन या दोस्तों जैसा माना जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने इस सोच को चुनौती दी है। यहां एक नवविवाहिता ने शादी के महज सात दिन बाद पति को त्याग कर अपने देवर के साथ रहने का फैसला कर लिया। दोनों ने इस रिश्ते को अपनाया और आखिरकार परिवार ने भी उनके प्यार को स्वीकार करते हुए दोनों की शादी करवा दी।

शादी के सात दिन बाद बदला रिश्तों का स्वरूप

अंबेडकरनगर के हंसवर थाना क्षेत्र के एक गांव की रहने वाली युवती की शादी गांव से तीन किलोमीटर दूर के युवक से पांच मई को धूमधाम से हुई। शादी के सात फेरे लेकर वह अपने ससुराल आ गई। लेकिन शादी के सातवें दिन ही दुल्हन का मन अपने पति से उठ गया और उसकी नजरें देवर पर टिक गईं। देवर और भाभी दोनों ही इस रिश्ते को लेकर गंभीर हो गए और साथ रहने की जिद करने लगे।

पति संग रहने से किया इनकार, पंचायत भी बुलाई गई

जब विवाहिता ने परिवार को बताया कि वह पति के बजाय देवर के साथ रहना चाहती है, तो परिवार में हड़कंप मच गया। इस विवाद के चलते पंचायत बुलाई गई और देवर को भी इस मामले में शामिल किया गया। देवर ने भी भाभी के साथ रहने की कसमें खाईं। विवाद बढ़ता गया और मामला थाने तक पहुंच गया, जहां विवाहिता ने खुलेआम अपने पति के साथ रहने से इनकार कर दिया।

पुलिस ने परिवार के निर्णय का सम्मान किया

पुलिस ने इस पारिवारिक विवाद को देखकर कानूनी कार्रवाई से इनकार कर दिया क्योंकि दोनों बालिग थे और मामला घरेलू था। साथ ही परिवार के लोग भी इस मामले में कोई कानूनी पहल नहीं करना चाहते थे। अंततः पुलिस ने दोनों पक्षों को आपसी समझौते के लिए प्रोत्साहित किया।

परिवार ने दी दोनों को साथ रहने की मंजूरी

अंततः भाभी और देवर ने सामाजिक और पारिवारिक बंधनों को तोड़ते हुए अपने प्यार को स्वीकार किया। जहां पहले वह बड़े बेटे की पत्नी के रूप में ससुराल आई थी, अब छोटे बेटे की पत्नी बनकर उसी घर में रह रही है। परिवार ने भी दोनों की शादी को स्वीकार कर लिया और साथ रहने की मंजूरी दे दी।

इस अनोखी प्रेम कहानी का सामाजिक असर

यह मामला अंबेडकरनगर के ग्रामीण इलाके में चर्चा का विषय बन गया है। जहां एक ओर पारंपरिक परिवारों में देवर-भाभी के रिश्ते को भाई-बहन जैसा माना जाता है, वहीं इस घटना ने इस सोच को पूरी तरह चुनौती दी है। यह कहानी दिखाती है कि प्रेम कभी-कभी सामाजिक और पारिवारिक बंधनों को पार कर जाता है।

निष्कर्ष

अंबेडकरनगर के इस मामले ने यह साबित कर दिया कि रिश्तों के प्रति सोच बदल रही है और परिवार भी कभी-कभी अपनी रूढ़िवादी सोच छोड़कर सदस्यों की इच्छाओं का सम्मान करता है। भाभी-देवर की यह प्रेम कहानी एक ऐसा उदाहरण है, जिसने परिवार को मजबूर कर दिया कि वे अपने बचपन के रिश्ते को छोड़कर नई सोच के साथ आगे बढ़ें। पुलिस ने भी इसे घरेलू मामला मानते हुए परिवार के फैसले का सम्मान किया, जिससे इस अनोखे विवाद का निपटारा शांतिपूर्ण तरीके से हो सका।

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