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4 युवकों ने 20 साल नक्सली होने की सजा काटी, अब चंदौली कोर्ट में साबित हुए निर्दोष, फिलहाल रिहाई सिर्फ 1 की 

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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से इंसाफ और बेबसी के बीच का एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने न्याय व्यवस्था की पेचीदगियों और झूठे आरोपों के खतरनाक परिणामों को उजागर कर दिया है। रायपुर की एक स्पेशल कोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति को चार साल बाद बरी कर दिया, जिसे एक नाबालिग लड़की द्वारा रेप का झूठा आरोप लगाने के बाद जेल भेजा गया था। इस मामले में पीड़ित नहीं, बल्कि झूठे आरोप का शिकार हुआ युवक असल पीड़ित बन गया, जिसने निर्दोष होते हुए भी अपनी जिंदगी के चार कीमती साल सलाखों के पीछे बिता दिए। कोर्ट ने डीएनए जांच रिपोर्ट के आधार पर यह साफ कर दिया कि आरोपी युवक का लड़की से कोई संबंध नहीं था और उसका उस बच्चे से भी कोई जैविक संबंध नहीं था, जिसे लड़की ने जन्म दिया।

चार साल पुराना मामला, जब नाबालिग हुई थी गर्भवती

मामला चार साल पहले का है, जब एक नाबालिग लड़की गर्भवती पाई गई थी। पूछताछ के दौरान लड़की ने एक युवक पर बार-बार रेप करने का आरोप लगाया और कहा कि वही उसकी गर्भावस्था का कारण है। लड़की के बयान के आधार पर युवक को गिरफ्तार कर लिया गया और वो जेल चला गया। शुरुआत में पुलिस और कोर्ट ने भी लड़की की गवाही को गंभीरता से लिया, लेकिन जब डीएनए जांच हुई तो सच्चाई सामने आ गई। आरोपी युवक का डीएनए, उस नवजात बच्चे से मिलान नहीं खा रहा था। यह खुलासा होते ही कोर्ट ने मामले की तह तक जाकर दोबारा सुनवाई शुरू की।

डीएनए रिपोर्ट के बाद टूटी लड़की की चुप्पी

कोर्ट में जब लड़की को डीएनए रिपोर्ट दिखाई गई, तो वह फूट-फूट कर रोने लगी और आखिरकार उसने सच्चाई स्वीकार कर ली। उसने बताया कि वह किसी और युवक के साथ प्रेम संबंध में थी और उसी से गर्भवती हुई थी। लेकिन डर और सामाजिक दबाव के कारण उसने झूठ बोलकर एक जान-पहचान के व्यक्ति का नाम ले लिया। लड़की को डर था कि अगर उसकी सच्चाई सामने आ गई, तो उसे आश्रम से निकाल दिया जाएगा।

कोर्ट ने माना युवक निर्दोष, झूठा आरोप साबित

स्पेशल कोर्ट ने लड़की के बयान, डीएनए रिपोर्ट और अन्य सबूतों के आधार पर साफ कर दिया कि आरोपी युवक बिल्कुल निर्दोष है। कोर्ट ने उसे तुरंत रिहा कर दिया।

बचाव पक्ष का बयान: ‘एक निर्दोष को 4 साल की सजा क्यों?’

बचाव पक्ष के वकील ने कोर्ट में कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि झूठे आरोपों के चलते एक निर्दोष व्यक्ति को चार साल जेल में बिताने पड़े। लड़की ने अपने असली संबंध और गर्भावस्था की वजह छिपाई और एक मासूम को गलत तरीके से फंसा दिया।”

क्या है सबक?

यह मामला यह बताता है कि किसी के झूठे आरोप से किसी की पूरी जिंदगी बदल सकती है। हालांकि अंत में न्याय मिला, लेकिन सवाल यह है कि जो चार साल उस निर्दोष युवक की जिंदगी से छिन गए, क्या उसकी भरपाई कभी हो सकती है? यह केस न्यायिक व्यवस्था के लिए भी एक चेतावनी है कि जब तक पुख्ता और वैज्ञानिक प्रमाण न हों, तब तक किसी की आजादी और जिंदगी से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए।

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