Swami Vivekananda Biography In Hindi: भारतीय संस्कृति को दुनियाभर में पहचान दिलाने वाले स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय
स्वामी विवेकानंद जी एक भारतीय हिंदू भिक्षु थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति को विश्व-भर में प्रसिद्ध किया था। अमेरिका के शिकागो में आयोजित धर्म संसद में साल 1893 में इनके द्वारा दिया गया भाषण आज भी प्रसिद्ध है और इस भाषण के जरिए इन्होंने भारत देश की अलग पहचान दुनिया के सामने रखी थी। स्वामी विवेकानंद भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति की जीवंत प्रतिमूर्ति थे। जिन्होंने संपूर्ण विश्व को भारत की संस्कृति, धर्म के मूल आधार और नैतिक मूल्यों से परिचय कराया। स्वामी जी वेद, साहित्य और इतिहास की विधा में निपुण थे। स्वामी विवेकानंद को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और यूरोप में हिंदू आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार प्रसार किया। इनका जन्म कोलकाता के उच्च कुलीन परिवार में हुआ था। इनका वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्ता। युवावस्था में वह गुरु रामकृष्ण परमहंस जी के संपर्क में आए और उनका झुकाव सनातन धर्म की ओर बढ़ने लगा, तो आईये आज इनकी पुन्यथिति पर जाने इसके जीवन के बारे में विस्तार से.....
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय ( Swami Vivekanand Short biography In Hindi)
| नाम | नरेन्द्रनाथ दत्त |
|---|---|
| घरेलु नाम | नरेन्द्र और नरेन |
| मठवासी बनने के बाद नाम | स्वामी विवेकानंद |
| पिता का नाम | विश्वनाथ दत्त |
| माता का नाम | भुवनेश्वरी देवी |
| भाई – बहन | 9 |
| जन्म तिथी | 12 जनवरी, 1863 |
| जन्म स्थान | कलकत्ता, भारत |
| राष्ट्रीयता | भारतीय |
| गुरु का नाम | रामकृष्ण परमहंस |
| शिक्षा – दीक्षा | बेचलर ऑफ़ आर्ट [1984] |
| संस्थापक | रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ |
| फिलोसोफी | आधुनिक वेदांत और राज योग |
| साहित्यिक कार्य | राज योग, कर्म योग, भक्ति योग, मेरे गुरु, अल्मोड़ा से कोलोंबो तक दिए गये सभी व्याख्यान |
| अन्य महत्वपूर्ण कार्य | न्यू यॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना, केलिफोर्निया में ‘शांति आश्रम’ और भारत में अल्मोड़ा के पास अद्वैत आश्रम की स्थापना. |
| उल्लेखनीय शिष्य | अशोकानंद, विराजानंद, परमानन्द, अलासिंगा पेरूमल, अभयानंद, भगिनी निवेदिता, स्वामी सदानंद. |
| मृत्यु तिथी | 4 जुलाई, 1902 |
| मृत्यु स्थान | बेलूर, पश्चिम बंगाल, भारत |
स्वामी विवेकानंद का जन्म | Swami Vivekanand Early Life And Birth
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था । उनके पिता का नाम श्री विश्वनाथ दत्त था। उनके पिता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। नरेंद्र के पिता पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढर्रे पर चलाना चाहते थे। नरेंद्र की माता भुवनेश्वरी देवी जी धार्मिक विचारों की महिला थीं। उनका ज्यादातर समय भगवान शिवजी की आराधना में ही बीतता था। नरेंद्र बचपन से ही तीव्र बुध्दि के थे और उनके अंदर परमात्मा को पाने की लालसा काफी प्रबल थी। इसी वजह से वे पहले ‘ब्रह्रा समाज’ में गए, लेकिन वहां उनके चित्त को संतोष नहीं हुआ। वे वेदांत और योग को पश्चिम संस्कृति में प्रचलित करने के लिए जरूरी योगदान देना चाहते थे।
स्वामी विवेकानंद का बचपन | Swami Vivekananda Childhood
स्वामी जी आर्थिक रूप से संपन्न परिवार में पले और बढे. उनके पिता पाश्चात्य संस्कृति में विश्वास करते थे इसीलिए वह उन्हें अग्रेजी भाषा और शिक्षा का ज्ञान दिलवाना चाहते थे. उनका कभी भी अंग्रेजी शिक्षा में मन नहीं लगा. बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के बावजूद उनका शैक्षिक प्रदर्शन औसत था. उनको यूनिवर्सिटी एंट्रेंस लेवल पर 47 फीसदी, एफए में 46 फीसदी और बीए में 56 फीसदी अंक मिले थे. माता भुवनेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थी वह नरेन्द्रनाथ (स्वामीजी के बचपन का नाम) के बाल्यकाल में रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाया करती थी. जिसके बाद उनकी आध्यात्मिकता के क्षेत्र में बढते चले गयी. कहानियाँ सुनते समय उनका मन हर्षौल्लास से भर उठता था.रामायण सुनते-सुनते बालक नरेन्द्र का सरल शिशुहृदय भक्तिरस से भऱ जाता था. वे अक्सर अपने घर में ही ध्यानमग्न हो जाया करते थे. एक बार वे अपने ही घर में ध्यान में इतने तल्लीन हो गए थे कि घर वालों ने उन्हें जोर-जोर से हिलाया तब कहीं जाकर उनका ध्यान टूटा.
नरेंद्र का परिवार | Swami Vivekananda Family
नरेन्द्र का जन्म ब्रिटिश राज में कलकत्ता शहर में मकर संक्रांति के दिन हुआ था. वे एक पारंपरिक बंगाली परिवार से थे और कुल 9 भाई – बहन थे. उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायलय में अभिवक्ता [Attorney] थे और माता भुवनेश्वरी देवी एक धार्मिक घरेलु महिला थी. उनके दादाजी संस्कृत और फारसी के विद्वान थे. घर में ही इस प्रकार के धार्मिक और शिक्षित माहौल ने नरेन्द्र का इतना उच्च व्यक्तित्व बनाया.
नरेन्द्र का बचपन और उनसे जुड़े किस्से | Swami Vivekananda Childhood Facts
जब नरेन्द्र छोटे थे, तब वे बहुत शरारती हुआ करते थे. वे पढाई के साथ-साथ खेलकूद में भी अव्वल थे. उन्होंने संगीत में गायन और वाद्य यंत्रों को बजाने की शिक्षा ग्रहण की थी. बहुत ही कम उम्र से वे ध्यान भी किया करते थे. मेडिटेशन कैसे करें ये जानने के लिए यहाँ क्लिक करें. अपने बचपन में वे ईश्वर के अस्तित्व के संबंध में और विभिन्न रीति – रिवाजो के बारे में और जातिवाद के बारे में प्रश्न किया करते थे और इनके सही या गलत होने के बारे में जिज्ञासु थे. बाल्यकाल से ही नरेन्द्र के मन में सन्यासियों के प्रति बड़ी श्रद्धा थी, अगर उनसे कोई सन्यासी या कोई फ़कीर कुछ मांगता या किसी व्यक्ति को किसी वस्तु की आवश्यकता होती थी और अगर वो नरेन्द्र के पास होती थी तो वे तुरंत ही उसे दे देते थे. नरेन्द्र अपने बचपन में जितने भले स्वभाव वाले थे, उतने ही शरारती भी थे. इसकी पुष्टि इस बात से होती हैं कि उनकी माँ उनके बारे में एक बात कहती थी, कि वे भगवान शिव से हमेशा एक बालक देने की प्रार्थना करती थी और उन्होंने यह प्रार्थना स्वीकार की और अपने किसी भूत को भेज दिया.
स्वामी विवेकानंद की शिक्षा | Swami Vivekanand Education
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूशन में प्रवेश लेते समय स्वामी विवेकानंद की उम्र 8 वर्ष थी। 1879 में कलकत्ता लोटने के बाद इन्होने प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया जिसके बाद मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की जिसमे इन्हें काफी अच्छे अंक प्राप्त हुए थे और और 1884 में कला स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। इन्हें बचपन से ही धार्मिक कार्यक्रम तथा सनातन में रुचि थी इसीलिए यह हिन्दू धर्म की पुस्तके, वेद, ग्रन्थ, पुराण, काव्य आदि पढ़ा करते थे। यह मानसिक तथा शरीरिक दोनों कार्यो पर समानता से ध्यान देते थे तथा प्रतिदिन व्यायाम किया करते थे, यह बचपन से बुद्धिमान थे तथा महाभारत, रामायण जैसे काव्य और ग्रंथो को पढ़ चुके थे जिससे ये काफी प्रभावित थे। इनकी याददाश्त काफी मजबूत थी जिस कारण यह एक बार जो पढ़ लेते थे उसे कभी नही भूलते थे।
स्वामी विवेकानंद क्यों प्रसिद्ध है? | Why Swami Vivekanand Is Famous
25 वर्ष की आयु में नरेंद्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए। इसके बाद उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की । सन् 1893 में शिकागो में विश्व धर्म परिषद हो रही थी। स्वामी विवेकानंद उसमें भारत के प्रतिनिधि बनकर पहुंचे। यूरोप और अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहां लोगों ने बहुत कोशिश की कि स्वामी को परिषद में बोलने का मौका नहीं मिले। एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला, किंतु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चौंक गए। अमेरिका में उनका बहुत स्वागत सत्कार हुआ। वहां स्वामी जी के भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। वे अमेरिका में तीन साल तक रहे और लोगों को तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे। उनकी बोलने की शैली और ज्ञान को देखते हुए वहां के मीडिया ने उन्हें ‘साइक्लॉनिक हिंदू नाम’ दिया।
स्वामी विवेकानंद इतने घंटे करते थे ध्यान | Swami Vivekanand Meditation
स्वामी जी रोज ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर तीन घंटे ध्यान करते थे। इसके बाद वे अन्य रोजना के काम में व्यस्त होते और यात्रा पर निकलते । इसके बाद वे दोपहर और शाम को भी घंटों तक ध्यान में रहते थे। रात के वक्त उन्होंने तीन-चार घंटे तक ध्यान किया है। “आध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बगैर विश्व अनाथ हो जाएगा।” वे वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरू थे।
रामकृष्ण परमहंस से मिलन | Swami Vivekanand And Ramkrishna Pramhans
स्वामी विवेकानंद ने 25 साल की उम्र में संत बनने का निर्णय ले लिया था, जब वह विद्यार्थी थे तब उनकी मुलाकात महा ऋषि देवेंद्र नाथ ठाकुर से हुई थी उन्होंने विवेकानंद जी को रामकृष्ण परमहंस से मिलने के लिए कहा था ताकि विवेकानंद अपने मन में उठ रहे प्रश्नों का उत्तर खोज सके। रामकृष्ण परमहंस का जीवन ईश्वर की प्राप्ति के लिए साधना में ही गुजरा, वे मानवता के लिए काम करने वाली संत थे जो एक अच्छे विचारक के रूप में भी काम करते थे। इनका जन्म जन्म 18 फ़रवरी 1836 को बंगाल प्रांत में हुआ था। स्वामी विवेकानंद जी बहुत ही जिज्ञासु थे जिस कारण वे रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्य भी बन गये और उन्हें आत्मज्ञान, धर्म ज्ञान उन्ही से प्राप्त हुआ था। 1885 में कैंसर के कारण रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गयी थी।]
रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु और मठवासी बनने का निर्णय | Death of Ramkrishna Paramhans & Decision to be a Monk
सन 1886 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गयी, वे गले के कैंसर से पीड़ित थे. उन्होंने अपना उत्तराधिकारी नरेन्द्र को बनाया था. अपने गुरु की मृत्यु के पश्चात् वे स्वयं और रामकृष्ण परमहंस के अन्य शिष्यों ने सब कुछ त्याग करके, मठवासी बनने की शपथ ली और वे सभी बरंगोर में निवास करने लगे.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना
विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी, इसकी स्थापना 1 मई 1897 में की गयी थी इसका लक्ष्य अस्पताल, स्कूल और कॉलेजों का निर्माण करना था। इस मिशन के बाद विवेकानंद जी ने सन 1898 में बेलूर मठ की स्थापना की ।
रामकृष्ण मठ की स्थापना | Ramakrishna Math Establishment
उसके बाद उन्होंने अपने ग्रुप रामकृष्ण परमहंस के मृत्यु के बाद उन्होंने 12 नगरों में रामकृष्ण संघ की स्थापना की बाद में इनका नाम रामकृष्ण संघ से बदलकर रामकृष्ण मठ कर दिया गया। रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद मात्र 25 वर्ष के उम्र में उन्होंने अपना घर परिवार त्याग दिया और ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे और और गेरुआ वस्त्र धारण करने लगे। तभी से उनका नाम विवेकानंद स्वामी हो गया।
विवेकानंद स्वामी का भारत भ्रमण | Vivekananda Swami’s India Tour
स्वामी विवेकानन्द पूरे भारतवर्ष का भ्रमण पैदल यात्रा के दौरान काशी, प्रयाग, अयोध्या, बनारस, आगरा, वृंदावन इसके अलावा और कई जगह का भ्रमण किए। इस दौरान वे कई सारे राजा, गरीब, संत और ब्रहमणों के घर में ठहरे। इस यात्रा के दौरान कई सारे अलग अलग क्षेत्रों में जाति प्रथा और भेद भाव ज्यादा प्रचलित है। जाति प्रथा को हटाने के लिए बहुत कोशिश किए। 23 दिसंबर 1892 को भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी जा पहुंचे वहा पर उन्होंने तीन दिन तक समाधी में रहे। उसके बाद वे अपने गुरु भाई से मिलने के लिए राजस्थान के अबू रोड जा पहुंचे जहां अपने गुरु भाई स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तूर्यानंद से मिले। भारत की पूरी यात्रा देश की गरीबी और दुखी लोगो को देख कर इसेसे पुरे देश को मुक्त करने और दुनिया को भारत के प्रति सोच को बदलने का फैसला किया।
स्वामी विवेकानन्द अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन का भाषण | Swami Vivekananda’s speech at the World Conference of Religions of America
1893 में स्वामी विवेकानन्द भारत के ओर से अमेरिका के विश्व धर्म समेलन में हिस्सा लिए। इस धर्म समेलान में पूरी दुनिया के धर्म गुरु ने हिस्सा लिया था। इसमें में भाग लेने वाले सभी लोगो ने अपना धार्मिक किताब रखे और भारत के ओर से भागवत गीता को रखा गया। इस सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द जी को देख कर विदेश लोग काफी मजाक उड़ाते थे। पर उन्होंने कुछ भी नही बोले। जब वे मंच पर जाकर MY BROTHER’S AND SISTER’S OF AMERICA से संबोधित कर भाषण देना शुरू केए। तब पूरा सभागार उन्हे तालियों की ग्रग्राहट से उनका स्वागत किया। अगले दिन अमेरिका के अखबारों उन्ही की चर्चा था। एक पत्रकार ने लिखा था, वैसे तो धर्म सम्मेलन के सभी विद्वान ने बहुत अच्छी भाषण दी पर भारत के विद्वान ने पूरे अमेरिका का दिल जीत लिया। इसी तरह उन्होंने कई ऐसे कार्य किए जिससे उस समय के नई लोकप्रिये छवि बनकर उभरे। और आज भी उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ विद्वान माने जाते हैं।
स्वामी विवेकानंद का विश्व भ्रमन | Swami Vivekananda’s World Tour
धर्म सम्मेलन खत्म होने के बाद 3 साल तक अमेरिका में ही रह गए और वह हिंदू धर्म के वेदंग का प्रचार अमेरिका में अलग अलग जगहों पर जाकर किए। वही अमेरिका के प्रेस ने उन्हें “Cylonic Monik From India” का नाम दिया था। उसके बाद दो साल तक शिकागो, न्यूयॉर्क, डेट्रइट और बोस्टन में उन्होंने लेकर दिए थे। 1894 को न्यूयॉर्क में वेदाँग सोसाइटी की स्थापना की। 1896 में अक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मैक्स मूलर से हुआ जिन्होंने उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की आत्मकथा लिखे थे। 1879 में उन्होंने अमेरिका से श्रीलंका गए और वहां के लोगो ने उनका स्वागत खुलकर किया। उस समय वे काफी प्रचलित थे। वहां से रामेश्वरम चले गए और फिर 1 मई 1897 को अपना घर कोलकाता चले गए।
स्वामी विवेकानंद का दूसरा विश्व यात्रा | Swami Vivekananda’s Second World Tour
20 जून 1899 को फिर अमेरिका गए और वहां कैलिफोर्निया में शांति आश्रम का निर्माण किए और फ्रांसिस्को और न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की। जुलाई 1900 में विवेकानंद जी पेरिस गए जहां उन्होंने कांग्रेस ऑफ द हिस्ट्री रिलेशंस में भाग लिए और करीब 3 महीने तक वहां रहे थे इस दौरान उनके वहां 2 शिष्य भगिनी निवेदिता और स्वामी त्रियानंद बन गए थे। 1900 के आखरी माह में स्वामी जी भारत लौट आए। इसके बाद उन्होंने फिर से भारत की यात्रा की बोधगया और बनारस यात्रा की। इस दौरान उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ता जा रहा था, वे अस्थमा और डायबिटीज जैसी बीमारियों से ग्रसित थे।
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु | Swami Vivekananda Death
4 जुलाई 1992 को मात्र 39 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु हो गई। उनके शिष्य का में तो उन्होंने महासमाधि ली थी। आरोही इस महापुरुष का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट के किनारे किया गया था।
स्वामी विवेकानंद का प्रभाव | Influence of Swami Vivekanand
स्वामी विवेकानंद एक ऐसी हस्ती थे, जिनका प्रभाव कई ऐसे लोगों पर पड़ा, जो स्वयं दूसरों को प्रभावित करने में पूर्णतः सक्षम थे. इन लोगों में मुख्य रूप से शामिल थे -: हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, सुभाष चन्द्र बोस, ओरोबिन्दो घोष, रबिन्द्रनाथ टेगौर, चक्रवर्ती राजगोपाला चारी, जवाहरलाल नेहरु, बाल गंगाधर तिलक, जमशेदजी टाटा, निकोला टेसला, एनी बेसेंट, रोमेन रोल्लेंड, नरेन्द्र मोदी और अन्ना हजारे आदि.
स्वामी विवेकानंद के प्रेरक प्रसंग | Swami Vivekananda Story in Hindi
जब स्वामी जी की ख्याति पूरे विश्व में फैल चुकी थी. तब उनसे प्रभावित होकर एक विदेशी महिला उनसे मिलने आई. उस महिला ने स्वामी जी से कहा- “मैं आपसे विवाह करना चाहती हूँ.” स्वामी जी ने कहा- हे देवी मैं तो ब्रह्मचारी पुरुष हूँ, आपसे कैसे विवाह कर सकता हूँ? वह विदेशी महिला स्वामी जी से इसलिए विवाह करना चाहती थी ताकि उसे स्वामी जी जैसा पुत्र प्राप्त हो सके और वह बड़ा होकर दुनिया में अपने ज्ञान को फैला सके और नाम रोशन कर सके. उन्होंने महिला को नमस्कार किया और कहा- “हे माँ, लीजिये आज से आप मेरी माँ हैं.” आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल गया और मेरे ब्रह्मचर्य का पालन भी हो जायेगा. यह सुनकर वह महिला स्वामी जी के चरणों में गिर गयी.
स्वामी विवेकानंद के साहित्यिक कार्य | Swami Vivekananda Literary Works
बानहट्टी के अनुसार स्वामी विवेकानंद एक अच्छे चित्रकार, लेखक और गायक थे, अर्थात वे अपने आप में एक सम्पूर्ण कलाकार थे. उनके द्वारा लिखे गये निबंध रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन दोनों ही मैगज़ीन में छपें. उनकी भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ थी, जिसके कारण उनके द्वारा दिए गये लेक्चर्स और भी अधिक प्रभावी और समझने में आसान होते थे.
उनकी कुछ रचनाए जो उनके जीवनकाल में ही प्रकाशित हुई | Books published by Swami Vivekananda
| क्रमांक | प्रकाशन का वर्ष | रचना का नाम |
|---|---|---|
| 1. | 1887 | संगीत कल्पतरु [वैष्णव चरण बसक के साथ] |
| 2. | 1896 | कर्म योग |
| 3. | 1896 | राज योग [न्यू यॉर्क में दिए गये भाषणों के दौरान कही गयी बातों का संकलन] |
| 4. | 1896 | वेदांत फिलोसोफी |
| 5. | 1897 | लेक्चर्स फ्रॉम कोलोंबो टू अल्मोड़ा |
| 6. | मार्च, 1899 | बंगाली रचना – बर्तमान भारत [उद्बोधन में प्रकाशित] |
| 7. | 1901 | माय मास्टर [न्यू यॉर्क की बेकर एंड टेलर कम्पनी द्वारा प्रकाशित] |
| 8. | 1902 | वेदांत फिलोसोफी : जनाना योग पर लेक्चर्स |
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु के बाद प्रकाशित रचनायें | Books published by Swami Vivekananda
| क्रमांक | प्रकाशन का वर्ष | रचना का नाम |
|---|---|---|
| 1. | 1902 | भक्ति योग पर भाषण |
| 2. | 1909 | द ईस्ट एंड द वेस्ट |
| 3. | 1909 | इंस्पायर्ड टॉक्स [Inspired Talks] |
| 4. | – | नारद भक्ति सूत्र [अनुवादित रचना] |
| 5. | – | परा भक्ति [Supreme Devotion] |
| 6. | – | प्रैक्टिकल वेदांत |
| 7. | – | स्वामी विवेकानंद के भाषण और लेखन कार्य |
| 8. | – | कम्पलीट वर्क्स – स्वामी विवेकानंद के सभी भाषण, रचनायें और प्रवचन [9 वॉल्यूम में उपलब्ध हैं] |
स्वामी विवेकानंद का योगदान | Contribution of Swami Vivekananda
अपने जीवनकाल में स्वामीजी ने जो भी कार्य किये और इसके द्वारा जो योगदान दिया गया, उसके क्षेत्र को हम निम्न 3 भागों में बाँट सकते हैं -:
- वैश्विक संस्कृति के प्रति योगदान | Contribution to World Culture
- भारत के प्रति योगदान | Contribution to India
- हिंदुत्व के प्रति योगदान | Contribution to Hinduism
इन क्षेत्रों में किये गये योगदान को निम्न संक्षिप्त विवरण द्वारा समझा जा सकता हैं -:
वैश्विक संस्कृति के प्रति योगदान | Contribution to World Culture
- स्वामी विवेकानंद ने धर्म के प्रति नई और विस्तृत समझ विकसित की,
- उन्होंने सीख और आचरण के नये सिद्धांत स्थापित किये,
- उन्होंने सभी लोगों के मन में प्रत्येक इन्सान के प्रति नया और विस्तृत नज़रिया रखने की प्रेरणा दी,
- उन्होंने पूर्व और पश्चिम के देशों के बीच जुड़ाव का कार्य किया.
भारत के प्रति योगदान | Contribution to India
- उन्होंने भारत के साहित्य को अपनी रचनाओं द्वारा समृद्ध बनाया,
- उनके प्रयासों से सांस्कृतिक जुड़ाव उत्पन्न हुआ,
- उन्होंने हमारी प्राचीन धार्मिक रचनाओं का सही अर्थ समझाया,
- भारतीय संस्कृति का महत्व समझाया और पश्चिमी सभ्यता के दुष्प्रभावों को भी वर्णित किया,
- देश में जातिवाद को ख़त्म करने के लिए उन्होंने निचली जातियों के कार्यों का महत्व समझाया और उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ा.
हिंदुत्व के प्रति योगदान | Contribution to Hinduism
- सम्पूर्ण विश्व के सामने हिंदुत्व की महानता और इसके सिद्धांत प्रतिपादित करके इसकी वैश्विक स्तर पर पहचान बनाई.
- हिन्दुओं की विभिन्न जातियों के बीच होने वाले भेदभाव और मनमुटाव को कम करने का उल्लेखनीय प्रयास किया और इसमें बहुत हद तक सफल भी रहें.
- क्रिस्चियन मिशनरी द्वारा हिंदुत्व के संबंध में फैलाई जा रही गलत धारणाओं को समाप्त किया और इसका सही अर्थ समझाया.
- प्राचीन धार्मिक परंपराओं और नवीन सोच का उचित समन्वय स्थापित किया.
- हिन्दू फिलोसोफी और हिन्दू धार्मिक सिद्धांतों को एक नवीन और स्पष्ट रूप दिया.
विवेकानंद मेमोरियल | Vivekanand Memorial
अपने जीवनकाल के दौरान 24 दिसंबर 1892 को स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी पहुंचे थे और समुद्र पर एक एकांत पहाड़ी पर जाकर ध्यान किया था, जो 3 दिनों तक चला था. यह पहाड़ी आज ‘विवेकानंद मेमोरियल’ के रूप में जानी जाती हैं और बहुत प्रसिद्ध दार्शनिक स्थल बन चुकी हैं.
| Swami Vivekananda – Important Dates |
|
|---|---|
| 12 जनवरी,1863 |
कलकत्ता में जन्म |
| नवंबर 1881 |
श्रीरामकृष्ण से प्रथम भेंट |
| 1884 |
स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण पिता का निधन |
| 16 अगस्त, 1886 |
गुरु श्रीरामकृष्ण का निधन |
| 1886 |
वराह मठ की स्थापना |
| 1890-93 |
सन्यासी के रूप में भारत-भ्रमण |
| 13 फरवरी, 1893 |
प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान सिकंदराबाद में |
| 30 जुलाई, 1893 |
शिकागो आगमन |
| 11 सितंबर, 1893 |
विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान |
| 27 सितंबर, 1893 |
विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अंतिम व्याख्यान |
| 16 मई, 1894 |
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण |
| नवंबर 1894 |
न्यूयॉर्क में वेदांत समिति की स्थापना |
| 1 मई, 1897 |
रामकृष्ण मिशन की स्थापना |
| 22 फरवरी, 1900 |
वेदांत समिति की स्थापना (सैन फ्रांसिस्को में) |
| 24 अक्तूबर, 1900 |
विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र आदि देशों की यात्रा |
| 9 दिसंबर, 1900 |
बेलूर मठ आगमन |
| फरवरी 1902 |
बोधगया और वारणसी की यात्रा |
| मार्च 1902 |
बेलूर मठ में वापसी |
| 4 जुलाई, 1902 |
महासमाधि |
स्वामी विवेकानंद के विचार | Swami Vivekananda Quotes
“जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है, शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक। उसे जहर की तरह त्याग दो।”
“सत्य को हजारो तरीको से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक तरीका सत्य ही होंगा।”
“जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए, नही तो लोगो का विश्वास उठ जाता है।
“जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरूरी नहीं है लेकिन जो भी रिश्ते हैं, उनमें जीवन का होना जरूरी है।”
“शिक्षा का अर्थ है उस पूर्णता को व्यक्त करना जो सभी मनुष्यों में पहले से विद्यमान है।”
“उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।”
“बल ही जीवन है और दुर्बलता मृत्यु।”
“जब तक करोड़ों लोग भूखे और अज्ञानी रहेंगे, मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को विश्वासघाती मानूंगा जो उनकी कीमत पर शिक्षित हुआ है और उनकी ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता है।”
“संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है, असंभव से भी आगे निकल जाना।”
“सत्य को हजार तरीके से बताया जा सकता है फिर भी हर एक सत्य ही होगा।”
“जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।”
FAQ
Ans. स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ।
Ans. स्वामी विवेकानंद की मृत्यृ 4 जुलाई 1902 को हुई।
Ans. स्वामी विवेकानंद का पूरा नाम नरेंद्रनाथ दत्त है।
Ans. स्वामी विवेकानंद ने बेचलर ऑफ आर्ट की शिक्षा प्राप्त की है।
Ans. स्वामी विवेकानंद की राज योग, कर्म योग, भक्ति योग, मेरे गुरु हैं।
Ans. नवंबर 1881 में स्वामी विवेकानंद की उनके गुरू से पहली भेंट हुई थी
Ans. सिकंदराबाद में स्वामी विवेकानंद ने प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान दिया था ।
Ans. 11 सितंबर 1893 में स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म सम्मेलन शिकागों में पहला भाषण दिया
Ans. माता का नाम भुवनेश्वरी देवी और पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था।

