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Surdas Ke Dohe: सूरदास जी के दोहे हिन्दी अर्थ सहित

Surdas Ke Dohe: सूरदास जी के दोहे हिन्दी अर्थ सहित

महाकवि सूरदास ने जनमानस को भगवान श्री कृष्ण की बाल-लीलाओं से परिचय करवाया था, इनके पदों के माध्यम से लोगों में वात्सल्य के भाव का उदय हुआ। कृष्ण भक्तों में सूरदास का नाम अग्रणी हैं, सूरदास जन्म से ही अंधे थे लेकिन जो सूरदास ने देखा वो आँख वालों को भी नसीब नहीं होता हैं। सूरदास ने अपने गुरु वल्लभाचार्य के सानिध्य में कृष्ण की बाल-लीला सुनी और गुरु की ऐसी कृपा हुई कि जो उन्होंने देखा उसको शब्दों में चित्रित होते हम आज भी देख रहे हैं। 16वीं शताब्दी में हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के महान कवि सूरदास का जन्म 1478 सिरी नाम के गांव जो कि दिल्ली के पास स्थित है, वहां का माना जाता है। लेकिन कुछ लोगों सूरदास का जन्म बृज में हुआ मानते हैं, तो आईये पढ़ें इनके दोहे ...

दोहा

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
बहिरो सुनै मूक पुनि बोले रंक चले सर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुणामय बार-बार बंदौ तेहि पाई।। 

दोहा का अर्थ

सूरदास के अनुसार श्री कृष्ण की कृपा होने पर लंगड़ा व्यक्ति भी पर्वत को लाँघ लेता है। अंधे को सब कुछ दिखाई देने लगता है। बहरे व्यक्ति सुनने लगता है। गूंगा व्यक्ति बोलने लगता है और गरीब व्यक्ति अमीर हो जाता है। ऐसे दयालु श्री कृष्ण के चरणों की वंदना कौन नहीं करेगा।

दोहा

अबिगत गति कछु कहत न आवै।
ज्यो गूँगों मीठे फल की रास अंतर्गत ही भावै।।
परम स्वादु सबहीं जु निरंतर अमित तोष उपजावै।
मन बानी को अगम अगोचर सो जाने जो पावै।।
रूप रेख मून जाति जुगति बिनु निरालंब मन चक्रत धावै। 
सब बिधि अगम बिचारहि,तांतों सुर सगुन लीला पद गावै।। 

दोहा का अर्थ

सूरदास जी इस दोहे में कह रहे है, अव्यक्त उपासना को मनुष्य के लिए क्लिष्ट बताया गया है। निराकार ब्रह्म का चिंतन अनिर्वचनीय है। यह मन और वाणी का विषय नही है। ठीक उसी प्रकार जैसे किसी गूंगे को मिठाई खिला दी जाए और उससे उसका स्वाद पूछा जाए तो वह मिठाई का स्वाद नही बता सकता है। मिठाई के रस का स्वाद तो उसका मन ही जानता है। निराकार ब्रह्म का न रूप है ना न गुण है। इसलिए मैं यहाँ स्थिर नही रह सकता। सभी तरह से वह अगम्य है। अतः सूरदास जी सगुन ब्रह्म श्रीकृष्ण की लीला का ही गायन करना उचित समझते है।

दोहा

जसोदा हरि पालनै झुलावै।
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै।।
मेरे लाल को आउ निंदरिया कहे न आनि सुवावै।
तू काहै नहि बेगहि आवै तोको कान्ह बुलावै।।
कबहुँ पलक हरि मुंदी लेत है कबहु अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै।।
इही अंतर अकुलाई उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै। 
जो सुख सुर अमर मुनि दुर्लभ सो नंद भामिनि पावै।।

दोहा का अर्थ

सूरदास कह रहे है की, यशोदा जी श्याम को पालने में झूला रही है। कभी झुलाती है। कभी प्यार से पुचकारती है। कुछ गाते हुए कहती है कि निंद्रा तू मेरे लाल के पास आ जा। तू क्यों आकर इसे सुलाती नही है। तू झटपट क्यो नही आती? तुझे कन्हिया बुला रहा है। श्याम कभी पलके बंद कर लेते है। कभी अधर फड़काने लगते है। उन्हे सोते हुए जान कर माता चुप रहती है और दूसरी गोपियों को भी चुप रहने को कहती है। इसी बीच मे श्याम आकुल होकर जाग जाते है। यशोदा जी फिर मधुर स्वर में गाने लगती है। सूरदास जी कहते है कि जो सुख देवताओं और मुनियों के लिए भी दुर्लभ है। वही सुख श्याम बाल रूप में पाकर श्री नंद पत्नी यशोदा जी प्राप्त कर रही है।

दोहा

मैया मोहि दाऊ बहुत खिजायौ।
मोसो कहत मोल को लीन्हो, तू जसमति कब जायौ ?
कहा करौ इही के मारे खेलन हौ नही जात ।
पुनि -पुनि कहत कौन है माता ,को है तेरौ तात ?
रे नंद जसोदा गोरी तू कत श्यामल गात ।
चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हंसत सबै मुसकात ।
तू मोहि को मारन सीखी दाउहि कबहु न खीजै।।
मोहन मुख रिस की ये बातै ,जसुमति सुनि सुनि रीझै । 
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई ,जनमत ही कौ धूत । 
सूर स्याम मोहै गोधन की सौ,हौ माता थो पूत ।। 

दोहा का अर्थ

राग घनाक्षरी पर आधारित है। बाल कृष्ण मां यशोदा से बलराम जी की शिकायत करते हुए कहते है कि मैया दाऊ मुझे बहुत चिढ़ाते है। मुझसे कहते है कि तू मोल लिया हुआ है। यशोदा मैया ने तुझे कब उत्पन्न किया। मैं क्या करूँ इसी क्रोध में, मैं खेलने नही जाता। वे बार बार कहते है: तेरी माता कौन है ? तेरे पिता कौन है? नंद बाबा तो गोरे है। यशोदा मैया भी गोरी है। तू सांवरे रंग वाला कैसे है ? दाऊ जी इस बात पर सभी ग्वालबाल मुझे चुटकी देकर नचाते है। और फिर सब हँसते है और मुस्कराते है। तूने तो मुझे ही मारना सीखा है। दाऊ को कभी डांटती भी नही। सूरदास जी कहते है कि मोहन के मुख से ऐसी बाते सुनकर यशोदा जी मन ही मन मे प्रसन्न होती है। वे कहती है कि कन्हिया सुनो बलराम तो चुगलखोर है और वो आज से नही बल्कि जन्म से ही धूर्त है। हे श्याम मैं गायों की शपथ कहकर कह रही हूँ कि मैं तुम्हारी माता हूँ और तुम मेरे पुत्र हो।

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