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Surdas Dohe: भगवान श्रीकृष्ण से अंधता का वरदान मांगने वाले सूरदास जी के लोकप्रिय दोहे

Surdas Dohe: भगवान श्रीकृष्ण से अंधता का वरदान मांगने वाले सूरदास जी के लोकप्रिय दोहे

भगवान श्री कृष्ण के परम भक्तों का जब भी जिक्र होता है तब फेहरिस्त में अग्रणी नाम सूरदास जी का आता है। संत सूरदास एक महान कवि हुए जिन्होंने अपनी रचनाएं भगवान कृष्ण को समर्पित की। पंचांग के अनुसार, वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सूरदास जी का जनमोत्स्व मनाया जाता है। सूरदास जी जन्म से ही नेत्रहीन थे, मगर उन्होंने जो महसूस किया उसकी कल्पना कोई आंख वाला व्यक्ति भी नहीं कर सकता है। सूरदास जी और उनकी कृष्ण भक्ति से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार सूरदास जी कृष्ण भक्ति में इतने लीन थे कि वो कुंए में गिर गए। श्रीकृष्ण ने स्वयं अपनी कृपा से उन्हें बचाया और उन्हें अंतःकरण में दर्शन भी दिए। कहते हैं कि श्री कृष्ण ने उनके आंखों की रौशनी लौटा दी थी और सूरदास जी ने सबसे पहले अपने कान्हा के ही दर्शन किये। कृष्ण कन्हैया उनकी भक्ति से बहुत खुश थे और उनसे वरदान मांगने के लिए कहा। इस पर सूरदास जी ने दोबारा नेत्रहीन होने की इच्छा रखी ताकि वो कृष्ण के अलावा किसी और व्यक्ति को न देख सकें। सूरसावली, ब्याहलो, साहित्य लहरी, सूरसागर, नल दमयन्ती उनकी प्रमुख रचनाएं रहीं। आज इस लेख के माध्यम से सूरदास जी की कुछ लोकप्रिय पंक्तियों को अर्थ सहित आपके लिए लेकर आये हैं।

Surdas Dohe: भगवान श्रीकृष्ण से अंधता का वरदान मांगने वाले सूरदास जी के लोकप्रिय दोहे

चरन कमल बन्दौ हरि राई
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई।
बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले सिर छत्र धराई
सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौं तेहि पाई।।

अर्थ: इस दोहे में सूरदास जी भगवान श्री कृष्ण की कृपा के बारे में बताते हैं।
यदि श्री कृष्ण लंगड़े व्यक्ति पर कृपा करें तो वह चलने लगता है, इतना ही नहीं, वह ऊंचे पर्वतों को भी पार कर जाता है। किसी अंधेरे में डूबे हुए व्यक्ति पर प्रभु श्री कृष्ण की कृपा हो जाये तो उसकी जिंदगी में आशा का उजियारा आ जाता है।
भगवान श्री कृष्ण की महिमा ऐसी है कि गूंगे भी बोलने लगते हैं। गरीब लोगों की जिंदगी खुशियों से भर जाती है। ऐसे दयावान श्रीकृष्ण को मैं बार-बार नमन करता हूं।

Surdas Dohe: भगवान श्रीकृष्ण से अंधता का वरदान मांगने वाले सूरदास जी के लोकप्रिय दोहे

मैया री मोहिं माखन भावै
मधु मेवा पकवान मिठा मोंहि नाहिं रुचि आवे
ब्रज जुवती इक पाछें ठाड़ी सुनति स्याम की बातें
मन-मन कहति कबहुं अपने घर देखौ माखन खातें
बैठें जाय मथनियां के ढिंग मैं तब रहौं छिपानी
सूरदास प्रभु अन्तरजामी ग्वालि मनहिं की जानी

अर्थ: सूरदास जी इस दोहे में भगवान श्री कृष्ण और यशोदा मैया के बीच हो रहे संवाद का वर्णन करते हैं जिसमें श्री कृष्ण यशोदा मैया से कह रहे हैं कि मुझे मिठाई, पकवान कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। मुझे केवल माखन ही खाना अच्छा लगता है।
यशोदा मैया और श्रीकृष्ण की बात को एक ग्वालिन छुप कर सुन लेती है और वह मन ही मन यह सोच रही थी कि कृष्ण जी ने कभी अपने घर से माखन खाया भी है अथवा नहीं या फिर वह मेरे ही घर से हमेशा माखन चुराते हैं।
इस दोहे के माध्यम से सूरदास जी बताना चाह रहे हैं कि भगवान श्री कृष्ण को कुछ भी बताने की आवश्यकता नहीं है, वो अंतर्यामी होने की वजह से सारी बातें अपने आप ही समझ जाते हैं। इसी प्रकार वो उस ग्वालिन के मन की बात को भी समझ गए थे।

Surdas Dohe: भगवान श्रीकृष्ण से अंधता का वरदान मांगने वाले सूरदास जी के लोकप्रिय दोहे

मो सम कौन कुटिल खल कामी।
जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी॥
भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी।
हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥
पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी।
सूर, पतित कों ठौर कहां है, सुनिए श्रीपति स्वामी॥

अर्थ: इस दोहे में सूरदास जी अपने मन की बुराइयों को उजागर कर रहे हैं और साथ ही उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से कृपा करने की प्रार्थना भी की है।
सूरदास जी कहते हैं कि इस दुनिया में मेरे जैसा पापी दूसरा कोई नहीं है। मैंने मोह माया के बंधन में फंसे हुए इस शरीर को ही सच्चा सुख समझ लिया है। मैं नमक हराम हूं, जो इस धरती पर लाने वाले व्यक्ति को ही भूल गया।
मैं गंदगी में रहने वाले सूअर की तरह अपनी बुरी आदतों में फंसा हुआ हूं। मैं बहुत ही पापी हूं। मैंने सज्जनों की संगति में नहीं बैठा। हमेशा झूठे और मक्कारो की गुलामी की। इस प्रकार सूरदास जी अपनी बुराइयों को श्रीकृष्ण के सामने व्यक्त करते हुए उनसे आश्रय की प्रार्थना करते हैं।

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अबिगत गति कछु कहति न आवै।
ज्यों गुंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै।।
परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।
मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै।।
रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब मन चक्रत धावै।
सब बिधि अगम बिचारहिं तातों सूर सगुन लीला पदगावै।।

अर्थ: इस दोहे में सूरदास जी कहना चाहते हैं कि दुनिया में ऐसी बहुत सारी बातें हैं जिन्हें हम चाह करके भी किसी दूसरे व्यक्ति को नहीं समझा सकते हैं, क्योंकि उन्हें सिर्फ महसूस किया जा सकता है। कई बार हमें जिन चीजों से खुशी मिलती है, वह दूसरों के लिए कोई महत्व नहीं रखती है। यदि किसी मुक बधिर व्यक्ति को मिठाई खिला दी जाए तो वह चाह कर भी मिठाई का स्वाद लेने के बावजूद दूसरे व्यक्ति को उसके बारे में नहीं बता सकेगा।
सूरदास जी कहना चाहते हैं कि मैंने अपनी पूरी जिंदगी में सिर्फ भगवान श्री कृष्ण की ही गाथा का वर्णन किया है। कृष्ण भगवान की बाल लीला का वर्णन करते हुए जो अनुभूति मुझे प्राप्त हुई है, वह शायद ही कोई महसूस कर सकता है।

Surdas Dohe: भगवान श्रीकृष्ण से अंधता का वरदान मांगने वाले सूरदास जी के लोकप्रिय दोहे

गुरू बिनु ऐसी कौन करै।
माला-तिलक मनोहर बाना, लै सिर छत्र धरै।
भवसागर तै बूडत राखै, दीपक हाथ धरै।
सूर स्याम गुरू ऐसौ समरथ, छिन मैं ले उधरे।।

अर्थ: सूरदास जी ने भगवान श्री कृष्ण को अपना गुरु माना। भगवान कृष्ण की महिमा का बखान करते हुए सूरदास जी कहते हैं कि गुरु ही वह व्यक्ति होता है जो व्यक्ति को अंधकार से बाहर निकालता है। गुरु के बिना कोई दूसरा व्यक्ति यह काम नहीं कर सकता है।
संसार के मोह माया के जाल में फंसने से गुरु ही अपने शिष्य को बचाता है। वह ज्ञान की दौलत अपने शिष्य को देता है और उनका मार्गदर्शन करता है। सूरदास जी अपने गुरु श्री कृष्ण के बारे में कहते हैं कि उन्होंने हमेशा उन्हें हर पल मुसीबत से उबारा है। संसार रूपी सागर में उन्होंने ही उनकी नैया को पार लगाया है।

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