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Sumitranandan Pant Biography In Hindi: ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ कहे जाने वाले सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय

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Sumitranandan Pant

उत्तराखंड की घाटियों में कुछ तो ऐसा जादू है जो यह हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। हम अगर कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहते हैं तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उत्तराखंड भी किसी स्वर्ग से कम नहीं। उत्तराखंड को ही भारत की देवभूमि माना जाता है। यहां पर घने हरे देवदार के जंगल, सेब के बाग और बर्फ से ढकी ऊंची हिमालय पर्वत श्रृंखला हर किसी का मन मोह लेती है। इसी स्वर्ग से निकली एक प्रसिद्ध शख्सियत है जिसे हर कोई जानता है, तो आईये आज आपको मिलातें हैं इस महँ कवि के जीवन से....

सुमित्रानंदन पंत

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पूरा नाम सुमित्रानंदन पंत
अन्य नाम गुसाईं दत्त
जन्म 20 मई 1900
जन्म भूमि कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
कर्म भूमि इलाहाबाद
कर्म-क्षेत्र अध्यापक, लेखक, कवि
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
विषय गीत, कविताएँ
भाषा हिन्दी
विद्यालय जयनारायण हाईस्कूल, म्योर सेंट्रल कॉलेज
पुरस्कार-उपाधि ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार , 'लोकायतन' पर सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
आंदोलन रहस्यवाद व प्रगतिवाद

सुमित्रानंदन पंत का जन्म | Sumitranandan Pant Birth

प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई सन 1900 को अल्मोड़ा के समीप स्थित कसौली ग्राम में हुआ था। इनके जन्म के छह घण्टे बाद उनकी माता परलोक सिधार गई, उनके पिता का नाम पंडित गंगा दत्त था। अभिभावक ने उनका का नाम गुसाई दत्त रख दिया। बाल्यावस्था में गुसाई दत्त की देख - रेख तथा लालन - पालन का जिम्मा पिता और दादी ने उठाया।

सुमित्रानन्दन पन्त के पिता | Sumitranandan Pant Father

पन्त जी के पिता का नाम पं गंगादत्त पन्त था। पिता पं. गंगादत्त पन्त कौसानी में चाय-बागान के मैनेजर और एकाउण्टैण्ट थे। वे लकड़ी और कपड़े का व्यापार भी करते थे।

सुमित्रानन्दन पन्त की माता | Sumitranandan Pant Mother

प्रकृति के सुसुमार कवि पं. श्री समित्रानन्दन पन्त जी की माता का नाम श्रीमती सरस्वती देवी था।

सुमित्रानन्दन पन्त जी के बचपन का नाम | Sumitranandan Pant Early Life

पन्त जी के बचपन का मूल नाम गोसाईदत्त पन्त था। बाद में उन्होंने अपना नाम गोसाईदत्त से बदलकर सुमित्रानन्दन पन्त रखा।

सुमित्रानंदन पंत का बचपन | Sumitranandan Pant Childhood 

सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी, उत्तराखंड (भारत) में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगा दत्त पंत था। वह गाँव में एक अच्छे जमींदार थे। इनके पिता का बाग बगीचों के फल फूल का व्यापार बहुत अच्छा चल रहा था। और इनकी माता का नाम सरस्वती देवी था। उनका असली नाम गोंसाई दत्त था। वह जब मात्र पांच साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया था। वह माँ के बिना एकदम अधूरे से हो गए थे। लेकिन उनकी दादी ने उन सभी भाई बहन को माँ की कमी खलने नहीं दी। वह अपने सभी भाई बहनों में आठवें नंबर पर थे। उनके पिता पर उन सभी भाई बहन के लालन पालन का दायित्व था। बचपन से ही उनका मन कविताओं को लिखने में लगता था। वह उत्तराखंड की पहाड़ियों में घूमा करते थे और प्रकृति में बैठकर लिखा भी करते थे।

सुमित्रानंदन पंत की शिक्षा | Sumitranandan Pant Education

सुमित्रानंदन पंत की पढ़ाई का सफर भी ठीक रहा। उनके स्कूल की शिक्षा जयनारायण हाईस्कूल से पूरी हुई। जब 18 साल की उम्र हुई तब उन्होंने सोचा कि वह अब कॉलेज में दाखिला लेने के लिए तैयार थे। काफी सलाह मशविरा करने के बाद उन्होंने बनारस के क्वींस कॉलेज (Queen’s College, Banaras) में दाखिला लिया। बनारस में पढ़ने का एक बड़ा कारण यह भी था कि यहां पर उनके बड़े भाई भी रहते थे।

कॉलेज के दिनों में वह खूब सारी किताबों को पढ़ने में अपना समय बिताते थे। उनको कॉलेज के दिनों में सरोजनी नायडू, रबीन्द्र नाथ टैगोर आदि की रचनाओं को पढ़ने का शौक लग गया था। उनके शिक्षक उन्हें केवल पढ़ाई पर ही ध्यान केंद्रित करने को बोला करते थे। लेकिन इनका मन पढ़ाई के अलावा भी अन्य राष्ट्र भक्ति जैसी चीजों में ही लगता था। कॉलेज के दिनों में ही इन्होंने अपना नाम गोंसाई दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रखा था।

उनको अपना यह नाम खुद पर बहुत अच्छा लगा। सुमित्रानंदन ने 1919 में इलाहाबाद के मुइर कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए दाखिला लिया। इस कॉलेज में उन्होंने करीब 2 साल तक अध्ययन किया। उसके बाद में वह गांधीजी के विचारों से इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी पढ़ाई ही बीच में छोड़ दी। कॉलेज छोड़ने के बाद वह भी असहयोग आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगे। उनको राष्ट्र प्रेम के चलते अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी।

सुमित्रानंदन पंत के जीवन पर महान लोगों का प्रभाव

सुमित्रानंदन पंत का जीवन कई महान हस्तियों के विचारों से प्रभावित हुआ। जब एक इंसान वयस्क हो जाता है तो अपना जीवन अपने घर परिवार के बारे में सोचकर जीने लगता है। लेकिन सुमित्रानंदन पंत का जीवन अन्य लोगों से अलग था। वह एक वयस्क के रूप में अपना अलग प्रकार का संसार बनाकर रहने लगे।

उस समय वह कार्ल मार्क्स, महात्मा गांधी, फ्रायड और अरविंदो घोष के विचारों से अत्यंत प्रभावित हो गए थे। उनकी सोच बड़ी ही प्रगतिवादी बनती जा रही थी। वह कार्ल मार्क्स के विचारों को रोज पढ़ा करते थे और उनका अनुसरण भी किया करते थे। एक दिन उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। वह पोंडिचेरी स्थित अरविंदो आश्रम में अरविंदो घोष से मिलने गए थे।

लेकिन वह अरविंदो घोष के विचारों से इतना ज्यादा प्रभावित हुए कि वह वहां के ही हो गए। उनके दिमाग पर अब आध्यात्म छाने लग गया था। उन्होंने यह तय किया कि वह सारी उम्र कुंवारे ही रहेंगे। उन्होंने अपने जीवन में ब्रह्माचार्य का पालन किया। उस समय वह अपनी कविताओं में भी आध्यात्म का जिक्र करने लग गए थे। इन सभी महान लोगों ने उनका जीवन सकारात्मक तरीके से बदल दिया था।

सुमित्रानंदन पंत का व्यक्तित्व

सुमित्रानंदन पंत का व्यक्तित्व बहुत ही सरल था। उन्होंने अपने जीवन में कभी भी कोई तरह की उच्च लालसा की कामना नहीं की। उन्होंने अपना पूरा जीवन सादगीपूर्ण तरीके से बिताया। उन्होंने बेहद कम उम्र में अपनी माँ को खो दिया था। इनकी दादी ने इनका लालन-पालन किया। माँ के चले जाने के बाद वह संकोची स्वभाव के व्यक्ति हो चले थे। वह अपना अधिकतर समय प्रकृति के बीच में बिताते थे।

उन्होंने अपना जीवन प्रकृति को समर्पित कर दिया था। प्रकृति ने भी कभी भी सुमित्रानंदन पंत को अकेले नहीं पड़ने दिया। वह अपने पूरे जीवन में तीन तरह की काव्य धारा को अपनाया- छायावादी, प्रगतिवादी और आध्यात्मवादी। अगर उनके रूप रंग की बात करे तो हमें यह ज्ञात होता है कि उनका रंग बहुत गोरा था। वह दिखने में सुंदर लगते थे। उनके चेहरे से सौम्यता झलकती थी। उनके बाल घुंघराले थे। उनका शरीर भी हष्ट पुष्ट था। वह लंबे-चौड़े थे।

सुमित्रानंदन पंत के आर्थिक संकट का समय 

पंत जी को बहुत बड़ी आर्थिक संकट से भी गुजरना पड़ा था उनके परिवार ने कर्ज ले रखा था इसके कर्ज के बोझ के साथ ही उनके पिता का निधन हो गया था इस परिस्थिति में उन्हें घर - जमीन बेचनी पड़ी थी। इसी बीच वे मार्क्सवाद की तरफ अभिविन्यस्त हुए। महात्मा गांधी के समीपता से उन्हें अपने आत्मा के तेज का पता चला।

सुमित्रानंदन पंत का पत्र सम्पादन एवं आकाशवाणी 

1938 ईसवी में प्रगतिशील मासिक पत्रिका 'रूपाभ' का संपादन भी किया था। वे 1950 से 1957 तक आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) में सलाहकार रहे, रचनाकार होने के कारण इन कार्यों के बीच में उन्होंने कविताओं में अपनी पकड़ बनाई रखी।

सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति प्रेम | Sumitranandan Pant Nature

फैली खेतों में दूर तलक
मख़मल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली !
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक।

इस कविता की पंक्तियों से साफ साफ प्राकृतिक प्रेम झलक रहा है। सुमित्रानंदन पंत प्रकृति को ध्यान में रखते हुए लिखते थे। उनको प्रकृति से बहुत ज्यादा लगाव था। वह देवभूमि उत्तराखंड में जन्मे थे।उनके आस-पास के वातावरण में प्रकृति की भरमार थी। उन्होंने अपने जीवन में उत्तराखंड की पहाड़ियों में घूमने का खूब आनंद लिया।

कल-कल करती नदियां, बड़े-बड़े पेड़, घुमावदार घाटियां, यमुना और गंगा का संगम और तो और बद्री-केदार जैसे आध्यात्मिक स्थल। यह सभी किसी का भी मन मोह लेते हैं। सुमित्रानंदन पंत जी के साथ भी यही हुआ। वह अपनी हर कृतियों में प्रकृति का सुंदर रूप दर्शाते। पंत बचपन से ही अल्मोड़ा की पहाड़ियों में आकर बैठ जाते थे। वहां पर उनको सुकून भी मिलता और लिखने के लिए नए नए विचार भी।

सुमित्रानंदन पंत का हिंदी प्रेम | Sumitranandan Pant Hindi Love

सुमित्रानंदन पंत हिंदी के बहुत ही शानदार लेखक और कवि थे। वह हिंदी भाषा को लोगों के बीच लोकप्रिय करना चाहते थे। वह कहते थे कि हिंदी भाषा हम सभी भारतीयों की राजभाषा है। हमें इस भाषा पर गर्व होना चाहिए। हिंदी काव्य जगत में उनकी एक अलग ही पहचान थी। वह हिंदी भाषा को पूरे विश्व में फैलाना चाहते थे। प्रकृति, नारी और कलात्मक सौंदर्य इनके महत्वपूर्ण विषय थे। हालांकि यह समाज की हर प्रकार की सच्चाई पर लिखते थे।

सुमित्रानंदन पंत का करियर | Sumitranandan Pant Career

सुमित्रानंदन पंत ने अपने जीवनकाल में कई पदों पर काम किया। पर अगर कोई बड़ा कार्यभार उन्होंने संभाला था तो वह था हिन्दी चीफ़ प्रोड्यूसर का। उन्होंने रेडियो विभाग में बतौर हिन्दी चीफ़ प्रोड्यूसर का पद संभाला था। 1950 का वह दौर उनके लिए बड़ा ही सुनहरा था। उस समय उनको बड़ी उपलब्धियां हासिल हुई। इसी दौर में उन्होंने साहित्य सलाहकार के रूप में भी काम किया।

सुमित्रानंदन पंत के नाम संग्रहालय | literary introduction Museum 

क्या आपको पता है कि सुमित्रानंदन पंत के नाम एक संग्रहालय भी है जो लोगों के बीच प्रसिद्ध है। जी हां, एक ऐसा संग्रहालय उत्तराखंड की कुमाऊँ की पहाड़ियों पर स्थित है। वहां पर लोग सुमित्रानंदन पंत के इतिहास के बारे में जानने के लिए आते हैं। इस संग्रहालय का नाम सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक विधिका है। इस संग्रहालय में उनकी यादों से जुड़ी कई चीजें रखी हुई है।

सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय | Sumitranandan Pant Literary Introduction

सुमित्रानंदन पंत छायावादी युग के प्रमुख कवियों में से एक हैं जिन्होंने साहित्य में अपनी अद्वितीय रचनाएँ प्रस्तुत करी जो पाठकों में कल्पना लोक की अलौकिक छवि उत्पन्न करने में परितृप्त है। आपने साहित्य के क्षेत्र में बहुत कम आयु में अपना अमूल्य योगदान दिया आप महज 7 वर्ष की अल्पायु से पाठकों हेतु भावपूर्ण रचनाओं को गढ़ने में जुट गए थे। उन्होंने किशोर अवस्था में अपने घर के ऊपर घाटी में सड़क किनारे स्थित गिरजा घर के रोज बजने वाले घंटे की ध्वनि सुनकर उस पर "गिरजे का घंटा" नामक एक कविता लिख डाला जो उनका 1916 की पहली कविता थी। 

पन्त जी बाल्यावस्था से ही प्रकृति के बीच पले बढ़े हैं इसलिए लड़कपन में ही विभिन्न छंदों के प्रयोग से कुछ न कुछ लिखते रहते थे। जब "म्योर कॉलेज" में दाखिला हुआ तो वहां अच्छी तरह से अध्ययन के पश्चात उनकी साहित्यिक रुचि सुगठित हो गई। 1919 में आपने वीणा काव्य का सृजन किया जिसमें गीतों से प्रकृति के सौंदर्य का बखान किया। 1920 में ग्रंथी काव्य संग्रह, 1926 में पल्लव और 1932 में गुंजन आदि सुमित्रानंदन पंत रचित रचनाएँ हैं। गुंजन, उच्छ्वास, ज्योत्सना, स्वर्णधूलि, वीणा, युगांत आदि आपके सर्वोच्तम रचनाएं हैं। आप 'रूपाभ' नामक पत्रिका के संपादक भी रहे। कला और बूढ़ा चांद नामक रचना के लिए पंत जी को "साहित्य अकादमी पुरस्कार", लोकायतन हेतु "सोवियत भूमि पुरस्कार" और आपके श्रेष्ठ कविता संग्रह "चिदंबरा" हेतु  भारतीय 'ज्ञानपीठ' पुरस्कार प्रदान दिया गया। आपको भारत सरकार द्वारा तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पुरस्कार - 'पदम भूषण' की उपाधि से सम्मानित किया गया है। 

सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ | Sumitranandan Pant Writings, Books, Literature 

सुमित्रानंदन पंत को बचपन से ही प्रकृति से बहुत लगाव था उन्होंने प्रकृति को लेकर कई रचनाएं कई सुंदर कविताएं लिखी जिसे आज के सदी में छात्र पुस्तक में पढ़ा करते हैं। प्रकृति से जुड़ी सुंदर कविताओं का वर्णन करने में उन्हें बहुत आनंद आता था प्रकृति के बारे में कई कृतियां लिखने की वजह से ही उन्हें प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है जो प्रकृति में मौजूद वृक्ष, पेड़ - पौधे, लताओं, नदी, चांद इत्यादि को जीवंत रूप प्रदान करते हैं, अपनी कल्पनाओं में प्रकृति प्रदत्त चीजों का अलग ही स्वरूप अपनी कविताओं में बताते हैं जो पाठकों को अत्यंत रोचक प्रतीत होता है।

सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख रचनाएँ कुछ इस प्रकार हैं -

  • गुंजन
  • ग्राम्या
  • बूढ़ा चाँद
  • मुक्ति यज्ञ
  • स्वर्णधूलि
  • सत्यकाम
  • स्वर्णकिरण
  • युगांत
  • कला
  • लोकायतन
  • चिदंबरा
  • युगपथ
  • तारापथ
  • स्वर्णकिरण
  • स्वर्ण-धूलि
  • रजत-रश्मि
  • गीतहंस
  • सांध्य वंदना
  • मोह
  • काले बादल
  • अनुभूति
  • अतिमा
  • उत्तरा
  • आजाद
  • चाँदनी
  • पतझड़
  • गीत विहग
  • मधु ज्वाला
  • उच्छावास
  • सत्यकाम
  • मानसी
  • वाणी
  • मेघनाथ वध
  • सौवर्ण
  • अवगुंठित
  • ज्योत्सना
  • दो लड़के
  • रजतशिखर
  • शिल्पी
  • लहरों का गीत
  • नौका-विहार
  • चींटी
  • मछुए का गीत
  • तप रे
  • बापू
  • यह धरती कितना देती है
  • चंचल पग दीप-शिखा-से
  • धरती का आँगन इठलाता
  • बाँध दिए क्यों प्राण

दुनिया में जितने भी कवि हैं वे अपने कवितावों, रचनाओं या कृतियों में विभिन्न विषयों पर लेख लिखते हैं, सुमित्रानंदन पंत जिन्होंने अपनी लेख के लिए अधिकतर प्रकृति को ही चुना है नौका - विहार इनकी एक कविता है जो लोगों को प्रेरणा देती है, इस कविता में भी प्रकृति का वर्णन आता है।

सुमित्रानंदन पंत का चिदंबरा प्रकाशन | Sumitranandan Pant Publication 

सुमित्रानंदन पंत रचित "चिदंबरा" अत्यंत प्रचलित कविता संग्रह है जिसके लिए सन 1968 उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से पुरस्कृत किया जा चूका है। चिदंबरा में उन्होंने अपने द्वारा रचित कई रचनाओं का उल्लेख किया, जिनमें स्वर्णधूलि, स्वर्ण-किरण, ग्राम्या, युगपथ, युगांतर, रजतशिखर और शिल्पी इत्यादि का संकलन दिखता है।  चिदंबरा कविता का प्रथम संस्करण 1958 में प्रकाशित हुआ था। 

सुमित्रानंदन पंत का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान | Sumitranandan Pant In Indian Independence Movement

1921 के असहयोग आंदोलन में उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया था, पर देश के स्वतंत्रता संग्राम की गंभीरता के प्रति उनका ध्यान 1930 के नमक सत्याग्रह के समय से अधिक केंद्रित होने लगा, इन्हीं दिनों संयोगवश उन्हें कालाकांकर में ग्राम जीवन के अधिक निकट संपर्क में आने का अवसर मिला। उस ग्राम जीवन की पृष्ठभूमि में जो संवेदन उनके हृदय में अंकित होने लगे, उन्हें वाणी देने का प्रयत्न उन्होंने युगवाणी (1938) और ग्राम्या (1940) में किया। यहाँ से उनका काव्य, युग का जीवन-संघर्ष तथा नई चेतना का दर्पण बन जाता है। स्वर्णकिरण तथा उसके बाद की रचनाओं में उन्होंने किसी आध्यात्मिक या दार्शनिक सत्य को वाणी न देकर व्यापक मानवीय सांस्कृतिक तत्त्व को अभिव्यक्ति दी, जिसमें अन्न प्राण, मन आत्मा, आदि मानव-जीवन के सभी स्वरों की चेतना को संयोजित करने का प्रयत्न किया गया।

सुमित्रानंदन पंत की विचारधारा | Sumitranandan Pant Thoughts 

पंत जी ने अपनी रचनाओं में समय के साथ अलग विचारधारा प्रकट की, प्रारंभिक दौर में उन्होंने प्रकृति का सुन्दर वर्णन अपनी ज्यादातर कविताओं में किया बाद में उन्होंने अपनी कविताओं में छायावाद की सूक्ष्म कल्पनाओं को प्रकट किया, अपनी रचनाओं में गहराई से विचारशीलता भरी लेख प्रकशित किया, सुमित्रानंदन पंत की विचारधारा सत्यम शिवम् सुन्दरम से प्रभावित रहा, पंत जी ने मानव कल्याण की भावनाओं को अपनी रचनओं में स्थान दिया, इनकी कविताएँ, कहानियां और उपन्यास लिखने का ढंग वास्तव में प्रसंशनीय है। 

सुमित्रानंदन पंत को मिले पुरस्कार और उपाधियाँ | Sumitranandan Pant Awards

  • सन् 1960 ई० में हिन्दी-साहित्यकारों ने अज्ञेय द्वारा सम्पादित मानग्रन्थ- रूपाम्बरा, राष्ट्रपित-भवन में तत्कलीन राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने पन्त जी को दिया था। पन्त जी की षष्टि पूर्ति पर दिया गया रूपाम्बरा जैसा मानग्रन्थ अभी तक शायद ही किसी अन्य को प्राप्त हुआ हो।
  • भारत सरकार द्वारा उनकी साहित्यिक-कलात्मक उपलब्धियों हेतु पदम-भूषण सम्मान सन् 1961 में प्रदान किया गया।
  • कला और बूढ़ा चाँद पर सन् 1961 में ही साहित्यिक अकादमी का पाँच हजार रुपये का अकादमी पुरस्कार मिला।
  • लोकायतन महाकाव्य पर नवम्बर, 1965 में प्रथम सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार प्राप्त हुआ।
  • सन् 1965 में ही उत्तर प्रदेश सरकार का विशिष्ट साहित्यिक सेवा हेतु दस हजार रुपये का पुरस्कार मिला।
  • पन्त जी को सन् 1967 ई० में विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी० लिट० की मानद उपाधि से विभूषित किया।
  • पन्त जी को सन् 1968 में चिदम्बरा पर भारतीय ज्ञानपीठ का एक लाख रुपये का पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु | Sumitranandan Pant Death

28 दिसंबर 1977 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में सुमित्रानंदन पंत ने उस दिन आखिरी साँस ली थी। उस समय उनकी आयु 77 के आसपास थी। उन्होंने शादी नहीं की थी। उनके कोई खास मित्र भी नहीं थे। इसलिए आखिरी दिनों में वह अकेले ही थे।

सुमित्रानंदन पंत के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण वर्ष | Interesting Facts About Sumitranandan Pant

  • 1916 में ही उन्होंने ‘गिरजे का घंटा’ नामक एक रचना लिखी।
  • 1918 सिया में सुमित्रानंदन जी ने अपने भाई के साथ काफी आ गए और वहां के क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे। मैट्रिक पास करने के बाद वह अपने 12वीं पढ़ाई के लिए इलाहाबाद म्योर कॉलेज चले गए।
  • 1919 में महात्मा गांधी से प्रेरित होकर असहयोग आंदोलन को सहयोग करने के लिए अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी।
  • 1931 में कुंवर सुरेश सिंह के साथ कालाकांकर प्रतापगढ़ चले गए और अनेक वर्षों तक वही रहे।
  • 1938 में सुमित्रानंदन पंत जी ने रूपाभ नामक पत्रिका का संपादन किया। फिर बहुत श्री अरविंद आश्रम की यात्रा की और वहां उन्होंने अपने चेतना का विकास किया और आजीवन अविवाहित रहने का फैसला लिया।
  • 1950 से 1957 तक वह आकाशवाणी का परामर्शदाता रहे।
  • 1958 में उन्होंने वाणी काव्य संग्रह की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन चितांबरा प्रकाशित हुआ जिसके वजह से उन्हें उसी साल भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • 1960 में “कला और बूढ़ा चांद” काव्य संग्रह के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
  • 1961 में उन्हें पद्मभूषण उपाधि  मिली।
  • 1964 में उनका विशाल महाकाव्य लोकायतन का प्रकाशन हुआ।
  • 1977 दिसंबर 28 तारीख को उनका निधन हुआ ।

Sumitranandan Pant FAQ's

Q. सुमित्रानंदन पंत का जन्म कब हुआ था ?
Ans. सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 मे हुआ था
Q. सुमित्रानंदन पंत का जन्म कहाँ हुआ था ?
Ans. सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तराखण्ड के कुमायूँ की पहाड़ियों पर बसे कौसानी गांव मे हुआ था ।
Q. सुमित्रानंदन पंत का जन्म किस भारत के किस राज्य मे हुआ था ?
Ans. उत्तराखण्ड
Q. सुमित्रानंदन जी की शादी किससे हुई ?
Ans. सुमित्रानंदन पंत जी अविवाहित है ।
Q. सुमित्रानंदन पंत जी की मृत्यु कब हुई ?
Ans. 29 दिसम्बर 1997 को
Q. सुमित्रानंदन पंत जी की काव्य भाषा क्या है ?
Ans. खडी भाषा
Q. सुमित्रानंदन पंत की कुछ प्रसिद्ध कविताओं का नाम बताइए?
Ans. सन्ध्या, तितली, ताज, मानव, बापू के प्रति, अँधियाली घाटी में, मिट्टी का गहरा अंधकार, ग्राम श्री आदि सुमित्रानंदन पंत की प्रसिद्ध कविताएं हैं।
Q. सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम क्या था?
Ans. सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम गोंसाई दत्त था। उनको अपना पसंद नहीं आया इसलिए कॉलेज के दिनों में उन्होंने अपना नाम बदल लिया।
Q. सुमित्रानंदन पंत को किन पुरस्कारों से नवाजा गया था?
Ans. सुमित्रानंदन पंत को पद्म भूषण (1961), ज्ञानपीठ अवार्ड (1969), साहित्य अकैडमी अवॉर्ड (1960) जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।
Q. युगपथ किसकी रचना है?
Ans: युगपथ सुमित्रानन्दन पंत की रचना है।
Q. पंत की पहली कविता कौन सी है?
Ans: वीणा, यह इनकी पहली रचना है जिसे 1927 ई. में प्रकाशित किया गया था।

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