Sahir Ludhianvi Death Anniversary: मशहूर शायर साहिर लुधियानवी के कुछ सबसे चुनिंदा शेर
साहिर लुधियानवी की शायरी एक वक़्त पे युवाओं के सर पे चढ़ के बोलती थी और देश का समूचा युवा वर्ग उनकी शायरी और उनके गीतों का दीवाना हुआ करता था। पंजाब के लुधियाना शहर में साहिर लुधियानवी का जन्म 01 Mar 1921 को हुआ था। अपनी रूमानी शायरी की बदौलत Sahir Ludhianvi साहब ने बहोत जल्दी अपना एक ख़ास मुकाम बना लिया था। खासकर के नौजवानों के दिलों में। उनके वक़्त के बहोत सारे शायर उनकी शायरी को कमतर कर के आंकते थे, और उनकी भी अपनी वजहें थीं ऐसा करने की। मगर इन बातों से साहिर लुधियानवी की सेहत, शायरी, और लोकप्रियता पर रत्ती हर का फर्क नहीं पड़ता था, और साहिर साहब अपनी शर्तों पे अपने ज़िन्दगी जीते रहे थे, साहिर साहब ने जन फिल्मों के लिए लिखना शुरू किया तो उन्हे हाथों हाथ लिया गया और उनका लिखा हर गीत ज़बरदस्त हिट हुआ करता था। साहिर साहब की शायरी में आप अपने खवाबों और भावनाओं को एक बेहद खूबसूरत अंदाज़ में बयां होते महसूस करते हैं। उनकी शायरी में जहाँ रूमानियत, पल पल छलकती है वहीँ उनके अशआर जब एक विद्रोह की शक्ल में आते हैं तो आप उनका एक नया रूप एक नए अंदाज़ में देखते हैं..
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहां
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं
तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूं देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम
अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
अभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं
हम ग़म-ज़दा हैं लाएं कहां से ख़ुशी के गीत
देंगे वही जो पाएंगे इस ज़िंदगी से हम
बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया
माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके
कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम
संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
इक धुंद से आना है इक धुंद में जाना है
जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
अरे ओ आसमां वाले बता इस में बुरा क्या है
ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएं
इस तरफ़ से गुज़रे थे क़ाफ़िले बहारों के
आज तक सुलगते हैं ज़ख़्म रहगुज़ारों के
वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बरबाद किया है
इल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा
तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएं
वही आंसू वही आहें वही ग़म है जिधर जाएं
पेड़ों के बाज़ुओं में महकती है चांदनी
बेचैन हो रहे हैं ख़यालात क्या करें
राह कहां से है ये राह कहां तक है
ये राज़ कोई राही समझा है न जाना है
ये भोग भी एक तपस्या है तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचियता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे
ज़मीं सख़्त है आसमां दूर है
बसर हो सके तो बसर कीजिए
किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे
हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमां न कर सके
यूं ही दिल ने चाहा था रोना-रुलाना
तिरी याद तो बन गई इक बहाना

