Saadat Hasan Manto Shayari: औरत बिकी तो तवायफ और मर्द बिका तो दूल्हा, पढ़िए सआदत हसन मंटो की दिल छू लेने वाली शायरी
उर्दू के जाने माने लेखक सादत हसन मंटो का जन्म 11 मई 1912 को हुआ था। उन्होंने बहुत सी कहानियां और अफ्साने लिखे हैं जो समाज की बुराइयों पर चोट करते हैं. मंटो ने ऐसी कई कहानियां लिखी हैं जो मर्दवादी समाज पर चोट करती हैं. यहां हम पेश कर रहे हैं मंटो की की औरतों के बारे में कही गई बातें.....
बेटी कोई पैदा नहीं करना चाहता
लेकिन बिस्तर सारे मर्द औरत चाहते हैं.
मर्द औरत से अदाएं तवायफ वाली
और वफाएं कुत्तों वाली चाहता है.
वेश्या का मकान ख़ुद एक जनाज़ा है,
जो समाज अपने कंधों पर उठाए हुए है.
वेश्या और बा-इस्मत औरत का मुक़ाबला
हर्गिज़ हर्गिज़ नहीं करना चाहिए.
इन दोनों का मुक़ाबला हो ही नहीं सकता।
वेश्या ख़ुद कमाती है और बा-इस्मत औरत के पास
कमा कर लाने वाले कई मौजूद होते हैं.
हर औरत वेश्या नहीं होती
लेकिन हर वेश्या औरत होती है।
इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए.
औरत हाँ और ना का एक निहायत ही दिलचस्प मुरक्कब है.
इन्कार और इक़रार कुछ इस तरह औरत के वुजूद में
ख़ल्त-मल्त हो गया है कि बाअज़-औक़ात इक़रार इन्कार मालूम
होता है और इन्कार इक़रार.
वेश्याओं के इशक़ में एक ख़ास बात काबिल-ए-ज़िक्र है.
उनका इशक़ उनके रोज़मर्रा के मामूल पर बहुत कम असर डालता है.
मर्द का तसव्वुर हमेशा औरतों को इस्मत के
तने हुए रस्से पर खड़ा कर देता है.
वेश्या अपनी तारीक तिजारत के बावजूद
रौशन रूह की मालिक हो सकती है.
वेश्या पैदा नहीं होती, बनाई जाती है.
या ख़ुद बनती है.
जिस चीज़ की मांग होगी मंडी में ज़रूर आएगी.
मर्द की नफ़सानी ख़्वाहिशात की मांग औरत है.
ख़्वाह वो किसी शक्ल में हो.
चुनांचे इस मांग का असर ये है कि
हर शहर में कोई ना कोई चकला मौजूद है.
अगर आज ये मांग दूर हो जाये तो
ये चकले ख़ुद बख़ुद ग़ायब हो जाऐंगे.

