Qateel Shifai Biography In Hind: उर्दू भाषा के मशहूर कवि क़तील शिफ़ाई का जीवन परिचय
कतील शिफाई उर्दू के मशहूर शायर हैं, कतील शिफाई साहब का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। पाकिस्तान के मशहूर शायर क़तील साहब का जन्म भारत में हुआ था, लेकिन बंटवारे में उनका पारिवार रावलपिंडी, पाकिस्तान चला गया। क़तील शिफ़ाई का जन्म भले पाकिस्तान में हुआ था, लेकिन उर्दू के इस बेहद मक़बूल ग़जलगो के दीवाने दोनों मुल्कों में भरे पड़े हैं। अपनी कविता में क़तील शिफ़ाई ने इंसानी जज़्बातों के कई रंग उकेरे। उनकी कई ग़जलों को गायकों ने आवाज़ भी दी है, तो आईये जाने इनके जीवन को करीब से....
क़तील शिफ़ाई का जन्म | Qateel Shifai Birth
क़तील शिफ़ाई का जन्म 1919 में ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान) में मुहम्मद औरंगजेब के रूप में हुआ था। क़तील शिफाई 24 दिसंबर 1919 को हरीपुर हज़ारा में पैदा हुए थे । उनका असली नाम था औरंगज़ेब ख़ान था । क़तील उनका तख़ल्लुस था, क़तील यानी वो जिसका क़त्ल हो चुका है । अपने उस्ताद हकीम मुहम्मद शिफ़ा के सम्मान में क़तील ने अपने नाम के साथ शिफ़ाई शब्द जोड़ लिया था ।
क़तील शिफ़ाई की शिक्षा और शुरुवाती जीवन | Qateel Shifai Education And Early Life
उन्होंने रावलपिंडी में हाईस्कूल तक की पढ़ाई की, पर पिता की असमय मौत के चलते स्कूली पढ़ाई छूट गई। पिता के असमय निधन की वजह से पढ़ाई बीच में ही छोड़कर क़तील को खेल के सामान की अपनी दुकान शुरू करनी पड़ी, इस धंधे में बुरी तरह नाकाम रहने के बाद क़तील पहुंच गये रावलपिंडी और एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में उन्होंने साठ रूपये महीने की तनख्वाह पर काम करना शुरू किया । सन 1946 में नज़ीर अहमद ने उन्हें मशहूर पत्रिका ‘आदाब-ऐ-लतीफ़’ में उप संपादक बनाकर बुला लिया । ये पत्रिका सन 1936 से छप रही थी । क़तील की पहली ग़ज़ल लाहौर से निकलने वाले साप्ताहिक अख़बार ‘स्टार’ में छपी, जिसके संपादक थे क़मर जलालाबादी । जनवरी 1947 में क़तील को लाहौर के एक फिल्म प्रोड्यूसर ने गाने लिखने की दावत दी, उन्होंने जिस पहली फिल्म में गाने लिखे उसका नाम है ‘तेरी याद’ । क़तील ने कई पाकिस्तानी और कुछ हिंदुस्तानी फिल्मों में गीत लिखे । जगजीत सिंह-चित्रा सिंह और गुलाम अली ने उनकी कई ग़ज़लें और नज़्में गाई हैं । उनकी बीस से भी ज्यादा किताबें शाया हो चुकी हैं ।
क़तील शिफ़ाई और देश का बटवारा | Qateel Shifai Life
साल 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ और दंगे फैले तो वह रावलपिंडी छोड़ लाहौर चले गए. वहां उन्होंने शायरी में ही हाथ आजमाना चाहा, पर पाकिस्तान में बंटवारे के पहले साल तो कोई फ़िल्म बनी नहीं. वह निराश से होने लगे, पर मेहनत रंग लाई. 1948 में जब पहली फ़िल्म 'तेरी याद' बनी, तो तनवीर नक़वी और सैफ़ुद्दीन सैफ़ के साथ क़तील शिफ़ाई को भी गीत लिखने का मौका मिला. उनका वह गीत चल निकला, और लाहौर की साहित्यिक जमात में उठक-बैठक बढ़ गई. यहीं वह साहिर लुधियानवी, ए. हमीद और अहमद राही के दोस्त बने. सबब बना फि़ल्मी रिसाला 'अदाकार', जिसके संपादन से शिफ़ाई जुड़ चुके थे.
क़तील शिफ़ाई का फ़िल्मी सफर | Qateel Shifai Movie Career
फिल्मी पत्रिका का संपादन और फिल्मों में गीत लिखने का उन्हें बहुत फ़ायदा हुआ. मौके मिलने लगे, माली हालत मजबूत हुई और शोहरत भी मिली. 1955 की फिल्म 'क़ातिल' में इक़बाल बानो का गाया 'उल्फ़त की नई मंज़िल को चला, यूं डाल के बाहें बाहों में....1957 की फिल्म 'इश्क़-ए-लैला' में क़तील-इक़बाल बानो और संगीतकार सफ़दर हुसैन का 'परेशां रात सारी है, सितारों तुम तो सो जाओ' खूब चर्चित हुआ. इस गीत को बाद बाद में हिंदुस्तानी गज़ल गायक जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने भी अपनी आवाज दी.
1980 में जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने जब अपना अलबम 'ए माईलस्टोन' रिकॉर्ड किया, तो क़तील शिफ़ाई की गज़लों को अपनी आवाज से घरघर में पहुंचा दिया. इसमें 'अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको, मैं हूं तेरा, तू नसीब अपना बना ले मुझको'; 'परेशां रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ'; 'मिल कर जुदा हुए तो ना सोया करेंगे हम, इक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम'; 'ये मौज़्ज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाए मुझे, कि संग तुझ पे गिरे और ज़ख्म आए मुझे'; 'तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहां जाते, जो वाबस्ता हुए तुमसे वो अफ़साने कहां जाते'; 'पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइए, फिर जो निगाहे यार कहे मान जाइए' जैसी गज़लें शामिल हैं.
हिंदुस्तानी फ़िल्मों में क़तील ने फिल्म 'पेंटर बाबू', 'फिर तेरी कहानी याद आई', 'सर', 'नाराज़', 'नाजायज़' आदि के लिए गीत लिखे. इनमें से कई फिल्म चाहे न चली हों, पर उनके लिखे नगमें, 'तेरे दर पर सनम चले आए, तू ना आया तो हम चले आए'; 'आज हमने दिल का हर किस्सा तमाम कर दिया'; 'कब तलक शमा जली याद नहीं' 'दिल देता हैं रो रो दुहाई, किसी से कोई प्यार ना करे' और 'जब याद की बदली छाती है' काफी मशहूर हुए.
उनकी कामयाबी का आलम यह था कि उन्होंने एक गीत 'ज़िंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं, मैं तो मरकर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा,' 1973 में रिलीज़ हुई पाकिस्तानी फिल्म 'अज़मत' के लिए लिखा था, जिसे बाद में मेहंदी हसन ने इतने मन से गाया कि लोग इसे उन्हीं की मानने लगे. इसी तरह ग़ुलाम अली की आवाज़ में 'मेरी नज़र से न हो दूर एक पल के लिए, तेरा वज़ूद है लाज़िम मेरी ग़ज़ल के लिए,' इतनी मशहूर हुई का क्या कहना. उनकी गज़लों को कितने लोगों ने कितने अंदाज में, कितनी-कितनी बार गाया, लिखना मुश्किल है. उन्हीं में से एक है 'जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ, जाने क्यों लोग मेरे नाम से जल जाते हैं.'
क़तील दर्द और प्यार के शायर हैं. वह 17 साल के थे जब शादी हो गई, पर आशिकी ताउम्र बनी रही. दिल टूटता और गज़ल बन जाती. एक दौर में उनका इश्क़ हीरोइन चंद्रकांता से चला. मुंबई में रश्मि थी. मशहूर गायिका इक़बाल बानो से तो इश्केमज़ाजी का आलम शादी की खबरों तक जा पहुंचा. क़तील शिफ़ाई ने इसे नकारा भी नहीं. हालांकि उनका निकाह नहीं हुआ, पर दोनों उस मुहाने तक जा ही पहुंचे थे. साहिर लुधियानवी और क़तील के बीच खासा दोस्ताना था. साहिर ने क़तील की एक ग़ज़ल का मतला 'जब भी चाहें इक नई सूरत बना लेते हैं लोग, एक चेहरे पर कई चेहरे सजा लेते हैं लोग' को फिल्म 'दाग़' में थोड़ा बदलकर इस्तेमाल किया था.
क़तील शिफ़ाई के अवार्ड्स | Qateel Shifai Awards
क़तील शिफ़ाई को 1994 में पाकिस्तान सरकार द्वारा साहित्य में उनके योगदान के लिए
- प्राइड ऑफ़ परफॉरमेंस अवार्ड
- अदमजी अवार्ड
- नक़ोश अवार्ड
- अब्बासिन आर्ट्स काउंसिल अवार्ड
- स्पेशल मिलेनियम निगार अवार्ड
भारत में क़तील शिफ़ाई को साहित्य में उनके योगदान के लिए
- अमीर खुसरो पुरस्कार
क़तील शिफ़ाई की फिल्मोग्राफी | Qateel Shifai Movies
क़तील शिफ़ाई की फिल्मोग्राफी में पाकिस्तानी और भारतीय दोनों फिल्में शामिल हैं, आईये जाने इनके बारे में...
- बड़े दिलवाला (1999) (गीतकार)
- ये है मुंबई मेरी जान (1999) (गीतकार)
- औज़ार (1997) (गीतकार)
- तमन्ना (1996) (क़तील शिफ़ाई के रूप में)
- नाजायज़ (1995) (गीतकार) (क़ैतेल शिफाई के रूप में)
- नाराज़ (1994) (क़तील शिफ़ाई के रूप में)
- हम हैं बेमिसाल (क़तील शिफ़ाई के रूप में)
- सर (1993) (गीतकार) (क़तील शिफ़ाई के रूप में)
- फिर तेरी कहानी याद आई (1993) (आपकी यादें लौट आईं) (गीतकार) (क़तील शिफ़ाई के रूप में)
- तहकीकात (1993) (गीतकार) (क़तील शिफ़ाई के रूप में)
- पेंटर बाबू (1983) (गीतकार)
- शीरीं फ़रहाद (1975) (गीतकार)
- नैला (1965) (गीतकार)
- हवेली (1964) (गीतकार)
- ज़हर-ए-इश्क (1958) (गीतकार)
- इंतेज़ार (1956) (गीतकार)
- कातिल (1955) (गीतकार)
- गुमनाम (1954) (जूनियर गीतकार के रूप में हकीम अहमद शुजा की सहायता)
- गुलनार (1953) (सहायक गीतकार)
- तेरी याद (1948) (सहायक गीतकार) (पाकिस्तानी फिल्म उद्योग में पहली बार रिलीज हुई फिल्म)
क़तील शिफ़ाई की ग़ज़लें | Qateel Shifai Writings
- सारी बस्ती में ये जादू
- गम के सहराओ में
- बशर के रूप में एक दिलरूबा तलिस्म बनें
- आओ कोई तफरीह का सामान किया जाए
- हाथ दिया उसने मेरे हाथ में
- मुझे आई ना जग से लाज
- जब भी चाहें एक नई सूरत बना लेते हैं लोग
- अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
- अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझ को
- अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ
- बेचैन बहारों में क्या-क्या है
- चराग़ दिल के जलाओ कि ईद का दिन है
- दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
- दुनिया ने हम पे जब कोई इल्ज़ाम रख दिया
- गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
- गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे
- हिज्र की पहली शाम के साये
- इक-इक पत्थर जोड़ के मैनें जो दीवार बनाई है
- जो भी ग़ुंचा तेरे होंठों पर खिला करता है
- किया है प्यार जिसे हम ने ज़िंदगी की तरह
- मैनें पूछा पहला पत्थर मुझ पर कौन उठायेगा
- मिल कर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम
- पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइये
- परेशाँ रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ
- प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया ही नहीं
- रची है रतजगो की चांदनी जिन की जबीनों में
- रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में
- सदमा तो है मुझे भी के तुझसे जुदा हूँ मैं
- शाम के साँवले चेहरे को निखारा जाये
- तुम पूछो और मैं ना बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं
- तूने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है
- तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
- उल्फ़त की नई मंज़िल को चला तू
- वफ़ा के शीशमहल में सजा लिया मैनें
- वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
- यारो किसी क़ातिल से कभी प्यार न माँगो
- ये मोजज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे
- यों लगे दोस्त तेरा मुझसे ख़फ़ा हो जाना
- यूँ चुप रहना ठीक नहीं कोई मीठी बात करो
- ज़िन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं
- काम आ गई दीवानगी अपनी
- शम्मअ़-ए-अन्जुमन
- निगाहों में ख़ुमार आता हुआ महसूस होता है
- दुनिया ने हम पे जब कोई इल्ज़ाम रख दिया
- धूप है रंग है या सदा है
- नामाबर अपना हवाओं को बनाने वाले
- पत्थर उसे न जान पिघलता भी देख उसे
- दिल को ग़मे-हयात गवारा है इन दिनों
- उफ़ुक़ के उस पार ज़िन्दगी के उदास लम्हे उतार आऊँ
- तीन कहानियाँ
- हर बे-ज़बाँ को शोला नवा कह लिया करो
- लिख दिया अपने दर पे किसी ने इस जगह प्यार करना मना है
- किया इश्क था जो
- देखते जाओ मगर कुछ भी
- प्यार की राह में ऐसे भी मकाम आते हैं
- दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं
- हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ
- जब अपने एतिक़ाद के महवर से हट गया
- क्या जाने किस ख़ुमार में
- मंज़िल जो मैं ने पाई तो शशदर भी मैं ही था
- फूल पे धूल बबूल पे शबनम देखने वाले देखता जा
- शायद मेरे बदन की रुसवाई चाहता है
- सिसकियाँ लेती हुई ग़मगीं हवाओ चुप रहो
- तड़पती हैं तमन्नाएँ किसी आराम से पहले
- विसाल की सरहदों तक आ कर जमाल तेरा पलट गया है
- खुला है झूठ का बाज़ार आओ सच बोलें
- दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
क़तील शिफ़ाई की विरासत
कविता के 20 से अधिक संग्रह और पाकिस्तानी और भारतीय फिल्मों के लिए 2,500 से अधिक फिल्मी गीत प्रकाशित हुए। उन्होंने 201 पाकिस्तानी और भारतीय फिल्मों के लिए गीत लिखे। उनकी प्रतिभा सीमाओं को पार कर गई। उनकी कविता का हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी, रूसी और चीनी सहित कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है। 2012 में कतेल शिफाई की 11 वीं पुण्यतिथि पर, एक प्रमुख समाचार पत्र को दिए एक साक्षात्कार में, एक प्रमुख साहित्यकार डॉ सलाउद्दीन दरवेश ने कहा, "शिफाई 20 वीं सदी के उन महान कवियों में से एक थे जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय पहचान हासिल की थी।"
क़तील शिफ़ाई का निधन | Qateel Shifai Death
11 जुलाई, 2001 को क़तील शिफ़ाई का निधन हुआ, पर उससे पहले वह एक मशहूर शायर और गीतकार के अलावा पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ चुके थे. वह लाहौर के मासिक अदबे-लतीफ़, साप्ताहिक अदाकार, साप्ताहिक उजाला और पेशावर के मासिक संगे-मील के संपादकीय विभाग से जुड़े रहे. इसके अलावा वह दोबार पाकिस्तान राइटर्स गिल्ड के सचिव भी बने. उनकी चर्चित किताबों में हरियाली, गजर, जलतरंग, रौज़न, झूमर, मुतरिबा, छतनार, गुफ़्तगू, पैराहन, आमोख्ता, अबाबील, बरगद, बरगद, घुँघरू और समंदर में सीढ़ी शामिल था।

