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Muneer Niyazi Shayari: "किसी अकेली शाम की चुप में " पढ़ें मशहूर शायर मुनीर नियाजी के चुनिंदा शेर

Muneer Niyazi Shayari: "किसी अकेली शाम की चुप में " पढ़ें मशहूर शायर मुनीर नियाजी के चुनिंदा शेर

मुनीर नियाज़ी (Muneer Niyazi) उर्दू और पंजाबी के मशहूर शायर थे. उनका असली नाम मुनीर अहमद (Muneer Ahmad) था. उनके निराले अंदाज को सुनने मुशायरों में आये लोग झूम उठते थे. उन्होंने कई अख़बारों और रेडियो के लिए भी काम किया. 1960 के दशक में उन्होंने फिल्मों के लिए गाने लिखे जो बहुत मशहूर हुए. उन्होंने मशहूर गीत ‘उस बेवफ़ा का शहर है’ लिखा. मुनीर नियाजी को मार्च 2005 में ‘सितार-ए-इम्तियाज’ के अवार्ड से नवाज़ा गया....

किसी अकेली शाम की चुप में 
गीत पुराने गा के देखो 

पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को 
हुस्न वालों की सादगी न गई 

तुम मेरे लिए इतने परेशान से क्यूँ हो 
मैं डूब भी जाता तो कहीं और उभरता 

कुछ वक़्त चाहते थे कि सोचें तिरे लिए 
तू ने वो वक़्त हम को ज़माने नहीं दिया 

रहना था उस के साथ बहुत देर तक मगर 
इन रोज़ ओ शब में मुझ को ये फ़ुर्सत नहीं मिली 

ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं

वो जिस को मैं समझता रहा कामयाब दिन
वो दिन था मेरी उम्र का सब से ख़राब दिन

घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ
छतों पर खिले फूल बरसात के

किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते
सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते

देखे हुए से लगते हैं रस्ते मकाँ मकीं
जिस शहर में भटक के जिधर जाए आदमी

मैं बहुत कमज़ोर था इस मुल्क में हिजरत के बाद
पर मुझे इस मुल्क में कमज़ोर-तर उस ने किया

जिन के होने से हम भी हैं ऐ दिल
शहर में हैं वो सूरतें बाक़ी

तेज़ थी इतनी कि सारा शहर सूना कर गई
देर तक बैठा रहा मैं उस हवा के सामने

शायद कोई देखने वाला हो जाए हैरान
कमरे की दीवारों पर कोई नक़्श बना कर देख

कटी है जिस के ख़यालों में उम्र अपनी 'मुनीर'
मज़ा तो जब है कि उस शोख़ को पता ही न हो

 

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