Munawwar Rana Shayari: भारत के मशहूर कवि और शायर मुनव्वर राणा की कुछ सबसे मशहूर शायरी
मुनव्वर राना उर्दू के एक प्रसिद्ध शायर, कवि एवं साहित्यकार हैं उनकी रचनाएं देश विदेश में लोकप्रिय हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता शाहदाबा के लिये उन्हें सन् 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, तो आईये आज पेश है मुनव्वर राना की कुछ मशहूर शायरी...
अब मुझे अपनी पज़ीराई से डर लगता है
इतनी शोहरत हो तो रुस्वाई से डर लगता हैनये कमरों में अब चीजें पुरानी कौन रखता है
परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता हैज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें
टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिएकिसी भी मोड़ पर तुमसे वफ़ादारी नहीं होगी
हमें मालूम है तुमको यह बीमारी नहीं होगीअच्छा हुआ कि मेरा नशा भी उतर गया
तेरी कलाई से ये कड़ा भी उतर गयाचलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखि हैकई घरों को निगलने के बाद आती है
मदद भी शहर के जलने के बाद आती हैबरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग
इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिएकांटों से बच गया था मगर फूल चुभ गया
मेरे बदन में भाई का त्रिशूल चुभ गयाथकान को ओढ़कर बिस्तर में जा के लेट गए
हम अपनी क़ब्र–ए–मुक़र्ररमें जा के लेट गएमैं इस से पहले कि बिखरूँ इधर उधर हो जाऊँ
मुझे सँभाल ले मुमकिन है दर-ब-दर हो जाऊँये आब-ओ-ताब जो मुझ में है सब उसी से है
अगर वो छोड़ दे मुझ को तो मैं खंडर हो जाऊँकिसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरी हिस्से में माँ आईसिरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जां कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैंकभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
तुम्हारे बा’द किसी की तरफ़ नहीं देखा
ऐ ख़ुदा थोड़ी करम फ़रमाई होना चाहिए
इतनी बहनें हैं तो फिर इक भाई होना चाहिएआते हैं जैसे जैसे बिछड़ने के दिन क़रीब
लगता है जैसे रेल से कटने लगा हूँ मैंसाँसों का कारोबार बदन की ज़रूरतें
सब कुछ तो चल रहा है दुआ के बग़ैर भीएक क़िस्से की तरह वो तो मुझे भूल गया
इक कहानी की तरह वो है मगर याद मुझेकुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे
कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया थामैं इसके नाज़ उठाता हूँ सो यह ऐसा नहीं करती
यह मिट्टी मेरे हाथों को कभी मैला नहीं करतीकाले कपड़े नहीं पहने हैं तो इतना कर ले
इक ज़रा देर को कमरे में अँधेरा कर लेखिलौनों की दुकानों की तरफ़ से आप क्यों गुज़रे
ये बच्चे की तमन्ना है यह समझौता नहीं करती
तुम्हें भी नींद सी आने लगी है थक गए हम भी
चलो हम आज ये क़िस्सा अधूरा छोड़ देते हैंमेरी अना का कद ज़रा ऊंचा निकल गया
जो भी लिबास पहना वो छोटा निकल गयाआँखों को इंतज़ार की भट्टी पे रख दिया
मैंने दिये को आँधी की मर्ज़ी पे रख दियाकिसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगासिसकियां उसकी न देखी गईं मुझसे राना
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देतेअजब दुनिया है तितली के परों को नोच लेती है
अजब तितली है पर नुचने पे भी रोया नहीं करतीहम सायादार पेड़ ज़माने के काम आए
जब सूखने लगे तो जलाने के काम आएतलवार की नियाम कभी फेंकना नहीं
मुमकिन है दुश्मनों को डराने के काम आएपहले भी बे-लिबास थे इतने मगर न थे
अब जिस्म से लिबास-ए-हया भी उतर गया
हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं
जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैंतमाम उम्र हम एक दुसरे से लड़ते रहे
मगर मरे तो बराबर में जा के लेट गएहर चेहरे में आता है नज़र एक ही चेहरा
लगता है कोई मेरी नज़र बांधे हुए हैंदुनिया तेरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूं
तू चांद मुझे कहती थी मैं डूब रहा हूंहाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है
इन कटोरों में अभी थोड़ा सा पानी और हैमज़हबी मज़दूर सब बैठे हैं इन को काम दो
एक इमारत शहर में काफ़ी पुरानी और हैतुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैंकिसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई

