Munawwar Rana Shayari: मुनव्वर राना वो बेहतरीन शायरियां जिसमें इन्होंने 'माशूका' से ज्यादा 'मां' को मुकाम दिया
मुनव्वर राना सहाब उर्दू के मशहूर शायर और कवि हैं. उन्होंने उर्दू, हिंदी और अवधी भाषा में खूब लिखा है. साहित्य में विशेष योगदान के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. राना साहब मुशायरों और कवि सम्मेलनों की शान हुआ करते हैं. मुनव्वर का जन्म 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुआ था. उनका मूल नाम सय्यैद मुनव्वर अली है. मुनव्वर राना ऐसे शायर हैं जिन्होंने रिश्तों और संबंधों को गीत-गज़ल की जुबान दी है. उन्होंने मां, पिता, बेटा, बेटी, बहन और दोस्ती पर खूब शेर लिखे हैं. मां पर लिखी गई उनकी गज़ल बहुत ही मशहूर है. रिश्तों पर केंद्रित गीत-गज़लों पर उनका एक संग्रह ‘मां’ वर्ष 2015 में प्रकाशित हुआ. इस संग्रह को पाठकों ने हाथों-हाथ लिया. मां पर लिखीं मुनव्वर राना के कुछ शेर इस प्रकार हैं....
कुछ नहीं होगा तो आंचल में छुपा लेगी मुझे
मां कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी
ऐसे तो उससे मोहब्बत में कमी होती है,
मां का एक दिन नहीं होता है सदी होती है।
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
मां बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊं,
मां से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊं
पहले ये काम बड़े प्यार से मां करती थी,
अब हमें धूप जगाती है तो दुःख होता है
उम्र मां की कभी बेटे से ना पूछी जाए,
मां तो जब छोड़ के जाती है तो दुःख होता है
सुख देती हुई माओं को गिनती नहीं आती,
पीपल की घनी छांव को गिनती नहीं आती
जीवन के फलसफे पर भी मुनव्वर राना जी खूब कलम चलाई है. उनकी रचनाओं में जीवन का गहरा दर्शन देखने को मिलता है....
ज़िंदगी ताश के पत्तों की तरह है मेरी,
और पत्तों को बहरहाल बिखर जाना है।
एक दिन को दूर दिल से हर एक ग़म भी हो गया
एक साल ज़िन्दगी का मगर कम भी हो गया
मौत उस की है करे जिस का ज़माना अफ़सोस,
यूं तो दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए।
मुफलिसी के बोझ तले दम घोंटते बचपन को पर मुनव्वर राणा ने क्या खूब लिखा है...
घर का बोझ उठाने वाले बच्चे की तक़दीर न पूछ
बचपन घर से बाहर निकला और खिलौना टूट गया।
मुफलिसी इनसान के दामन पर लगा सबसे बड़ा कलंक होती है. जब दिन गुरबत में होते हैं, सारी बदकिस्मती और दुनियाभर की तोहमतें इनसान को आ घेरती हैं. मुनव्वर राना ने गुरबत पर भी कुछ रचनाएं लिखी हैं...
घर की दीवार पे कौवे नहीं अच्छे लगते
मुफ़लिसी में ये तमाशे नहीं अच्छे लगते।
मुफ़लिसी ने सारे आंगन में अंधेरा कर दिया
भाई ख़ाली हाथ लौटे और बहनें बुझ गईं।
आमतौर पर कवि और शायर अपनी रचनाओं में माशूका को समर्पित रचनाएं रचते हैं, लेकिन मुनव्वर राना ने अपनी शायरी में मां को तरजीह दी. मां, बहन, पिता या अन्य पारिवारिक रिश्तों में जितना मुनव्वर राना ने लिखा है, शायद ही किसी और शायर ने लिखा हो.

