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तू मिला है तो ये अहसास हुआ है मुझको,
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है |

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रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है |

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मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं,
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं |

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कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर–ए–नीम–कश को,
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता |

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तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो,
हज़र करो मिरे दिल से कि उस में आग दबी है |

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इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा,
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं |

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रोक लो गर ग़लत चले कोई,
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई |

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भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी,
बादल सा इक निचोड़ के सिरहाने रख लिया |

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कुछ लम्हे हमने ख़र्च किए थे मिले नहीं,
सारा हिसाब जोड़ के सिरहाने रख लिया ||

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दिल–ए–नादाँ तुझे हुआ क्या है,
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है |