Mirza Ghalib Shayari: मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की कुछ बेहतरीन सदाबहार शायरियां
मिर्जा गालिब उर्दू के महान लोकप्रिय शायरों में से एक थे. उर्दू शायरी के लिए इनकी पहचान विश्व स्तर पर हैं. आज भी शेर – ओ – शायरी की जब बात होती हैं. तब जुबान पर पहला नाम मिर्जा गालिब का ही आता हैं. 27 दिसम्बर 1797 को आगरा के एक सैनिक पृष्ठभूमि तुर्क परिवार में उनका जन्म हुआ था. इनका पूरा नाम “मिर्जा असद – उल्लाह बेग खां” हैं. गालिब साहब के बच्चपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया था. गालिब साहेब को बच्चपन से ही कविता और शायरी लिखने का शौक था. जब वह 11 वर्ष के थे तभी से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था, तो आईये Mirza Ghalib की कुछ मशहूर शायरी पढ़ते हैं...

हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ, जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा।
-मिर्जा गालिब

जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब ज़ख्म का एहसास तब हुआ जब कमान देखी अपनों के हाथ में।
-मिर्जा गालिब

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए, साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
-मिर्जा गालिब

बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब, तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है
-मिर्जा गालिब

ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे। वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है।।
-मिर्जा गालिब

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते है। कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते है।।
-मिर्जा गालिब

मोहब्बत में नहीं फर्क जीने और मरने का, उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले!
-मिर्जा गालिब

मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यूँ रात भर नहीं आती।
-मिर्जा गालिब

रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’, कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था।
-मिर्जा गालिब

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए, साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था।
-मिर्जा गालिब

