Mir Taqi Mir Shayari: उर्दू जगत के सबसे मशहूर शायरों में शुमार मीर तक़ी मीर की मशहूर शायरियां
मीर तकी “मीर” का जन्म 1723 में हुआ था, महीना तो फरवरी था लेकिन इनके जन्म की तारीख़ के बारे में कहीं कुछ नहीं लिखा है। मीर तक़ी मीर उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। उर्दू शायरी में जो मकाम मिर्ज़ा ग़ालिब का है उससे ऊंचा मकाम मीर का है। ख़ुद मिर्ज़ा ग़ालिब ने भी कहा है - “रेख़्ता के तुम ही उस्ताद नहीं हो ग़ालिब, कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था।” उन्हें आलचकों और शायरों ने ख़ुदा-ए-सुखन का ख़िताब दिया था। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो। मीर के पूर्वज हेजाज़, सउदी अरब से हिंदुस्तान में आए थे।
मीर जब सिर्फ 10 साल के थे तभी उनके पिता की मौत हो गई थी। इसके बाद मीर नौकरी खोजने दिल्ली चले गए, जहां नवाब सम्सामुद्दौला ने उन्हें एक रुपया रोज़ गुजारे का दिया। नवाब सम्सामुद्दौला के यहां ही इन्होंने उर्दू की अदब और ज़ुबान पर पकड़ मज़बूत की। दिल्ली में थे तो कुछ अच्छे शायरों की सोहबत भी मिल गई। 1739 में फ़ारस के जब नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला किया तो नवाब सम्सामुद्दौला उसमें मारे गए। अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आंखों से देखा था, जो उनकी ग़ज़लों में भी देखतने को मिलता है, तो आईये आपको मिलाते हैं इनकी लिखी कुछ सबसे मशहूर शायरियों से...
इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या
आगे आगे देखिये होता है क्या
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है

आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम
अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये
देख तो दिल कि जाँ से उठता है
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है

अब तो जाते हैं बुत-कदे से 'मीर'
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है

याद उस की इतनी ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़ आ
नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा
इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर है
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है

क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़
जान का रोग है बला है इश्क़
मीर' साहब तुम फ़रिश्ता हो तो हो
आदमी होना तो मुश्किल है मियाँ

