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Majrooh Sultanpuri Biography In Hindi: शब्दों के जादूगर कहलाने वाले मजरूह सुल्तान पुरी का जीवन परिचय 

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मजरूह सुल्तानपुरी (Majrooh Sultanpuri) का जन्म 1 अक्टूबर, 1919 को उत्तर प्रदेश में हुआ था और इनकी मृत्यु 24 मई, 2000 को मुम्बई में हुई। ये भारतीय हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध शायर और गीतकार थे। इनका पूरा नाम 'असरार उल हसन ख़ान' था। इनके लिखे हुए कलाम में ज़िंदगी के अनछुए पहलुओं से रूबरू कराने की ज़बरदस्त क्षमता थी। मजरूह की कलम की स्याही नज्मों के रूप में एक ऐसी गाथा के रूप में चारों ओर फैली, जिसने उर्दू शायरी को महज मोहब्बत के सब्जबाग़ों से निकालकर दुनिया के दीगर स्याह सफ़ेद पहलुओं से भी जोड़ा। इसके साथ ही उन्होंने रूमानियत को भी नया रंग और ताजगी प्रदान करने की पूरी कोशिश की, जिसमें वह काफ़ी हद तक सफल भी हुए। मजरूह सुल्तानपुरी ने चार दशक से भी ज़्यादा अपने लंबे सिने कैरियर में क़रीब 300 फ़िल्मों के लिए लगभग 4000 गीतों की रचना की है, तो आईये आज आपको मिलाएं इनके जीवन परिचय से...

मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म | Majrooh Sultanpuri Birth And Early Life

मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर शहर में अक्टूबर, 1919 को हुआ था। हिंदी फ़िल्मों के मशहूर गीतकार और प्रसिद्ध शायर मजरूह सुल्तानपुरी ‘हमें तुमसे प्यार कितना’, ‘एक लड़की भीगी भागी सी’, ‘ओ मेरे दिल के चैन’, ‘चुरा लिया है तुमने जो दिल को’ जैसे सदाबहार गीतों के रचनाकार हैं।

मजरूह सुल्तानपुरी का परिवार | Majrooh Sultanpuri Family 

इनका पूरा नाम 'असरार उल हसन ख़ान' था। मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म असरार उल हसन खान के रूप में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में एक राजपूत मुस्लिम परिवार में हुआ था, जहाँ उनके पिता 1919/1920 में पुलिस विभाग में उप-निरीक्षक थे। 

मजरूह सुल्तानपुरी की शिक्षा | Majrooh Sultanpuri Education

इनके पिता एक पुलिस उप-निरीक्षक थे। पिता मजरूह सुल्तानपुरी को ऊंची से ऊंची तालीम देना चाहते थे। मजरूह ने लखनऊ के "तकमील उल तीब कॉलेज' से यूनानी पद्धति की मेडिकल की परीक्षा उर्तीण की थी। हालाँकि, पिता के जोर देने पर उन्होंने आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा पद्धति का अध्ययन किया। पर उनके मन में तो कुछ और करने का था, इसलिए वो पूरी तरह लेखन में डूब गए। इस दौरान उन्होंने अपने लिए एक नया नाम भी चुन लिया- मजरूह, जिसका अर्थ होता है घायल।

मजरूह सुल्तानपुरी का शुरुवाती करियर | Majrooh Sultanpuri Career

करियर के शुरुवाती दिनों में ये, यूनानी पद्धति की मेडिकल की परीक्षा उर्तीण के बाद में एक हकीम के रूप में काम करने लगे थे। बचपन के दिनों से ही मजरूह सुल्तानपुरी को शेरो-शायरी करने का काफ़ी शौक़ था और वे अक्सर सुल्तानपुर में हो रहे मुशायरों में हिस्सा लिया करते थे। इस दौरान उन्हें काफ़ी नाम और शोहरत भी मिली। उन्होंने अपनी मेडिकल की प्रैक्टिस बीच में ही छोड़ दी और अपना सारा ध्यान शेरो-शायरी की ओर लगाना शुरू कर दिया। इसी दौरान उनकी मुलाकात मशहूर शायर 'जिगर मुरादाबादी' से हुई।

मजरूह सुल्तानपुरी का मुम्बई आगमन

वर्ष 1945 में 'सब्बो सिद्धकी इंस्टीट्यूट' द्वारा संचालित एक मुशायरे में हिस्सा लेने के लिए मजरूह सुल्तानपुरी मुम्बई (भूतपूर्त बम्बई) आए। मुशायरे के कार्यक्रम में उनकी शायरी सुनकर मशहूर निर्माता ए.आर. कारदार उनसे काफ़ी प्रभावित हुए और उन्होंने मजरूह सुल्तानपुरी से अपनी फ़िल्म के लिए गीत लिखने की पेशकश की। मजरूह ने कारदार साहब की इस पेशकश को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि फ़िल्मों के लिए गीत लिखना वे अच्छी बात नहीं समझते थे।

मजरूह सुल्तानपुरी के फ़िल्मी करियर की शुरुवात | Majrooh Sultanpuri Bollywood Career

वर्ष 1945 में मुंबई में आयोज‍ित एक मुशायरे के दौरान फ‍िल्‍म निर्माता ए.आर. कारदार की नज़र उन पर पड़ी और उन्हें फिल्मों में लिखने के लिए मना लिया। इसके बाद वर्ष 1946 में उनकी फिल्‍म ‘शाहजहां’ के ल‍िए मजरूह ने ही गाने ल‍िखे थे। यहीं से उनका बॉलीवुड फिल्मों के लिए गीत लिखने का सिलसिला चल पड़ा।

मजरूह सुल्तानपुरी की पहली सफलता | Majrooh Sultanpuri Success Story 

'जिगर मुरादाबादी' ने मजरूह सुल्तानपुरी को तब सलाह दी कि फ़िल्मों के लिए गीत लिखना कोई बुरी बात नहीं है। गीत लिखने से मिलने वाली धन राशि में से कुछ पैसे वे अपने परिवार के खर्च के लिए भेज सकते हैं। जिगर मुरादाबादी की सलाह पर मजरूह सुल्तानपुरी फ़िल्म में गीत लिखने के लिए राजी हो गए। संगीतकार नौशाद ने मजरूह सुल्तानपुरी को एक धुन सुनाई और उनसे उस धुन पर एक गीत लिखने को कहा। मजरूह ने उस धुन पर 'गेसू बिखराए, बादल आए झूम के' गीत की रचना की। मजरूह के गीत लिखने के अंदाज़से नौशाद काफ़ी प्रभावित हुए और उन्होंने उन्हें अपनी नई फ़िल्म 'शाहजहाँ' के लिए गीत लिखने की पेशकश कर दी। मजरूह ने वर्ष 1946 में आई फ़िल्म शाहजहाँ के लिए गीत 'जब दिल ही टूट गया' लिखा, जो बेहद लोकप्रिय हुआ। इसके बाद मजरूह सुल्तानपुरी और संगीतकार नौशाद की सुपरहिट जोड़ी ने 'अंदाज', 'साथी', 'पाकीजा', 'तांगेवाला', 'धरमकांटा' और 'गुड्डू' जैसी फ़िल्मों में एक साथ काम किया। फ़िल्म 'शाहजहाँ' के बाद महबूब ख़ान की 'अंदाज' और एस. फाजिल की 'मेहन्दी' जैसी फ़िल्मों में अपने रचित गीतों की सफलता के बाद मजरूह सुल्तानपुरी बतौर गीतकार फ़िल्म जगत् में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।

मजरूह सुल्तानपुरी की जेलयात्रा | Majrooh Sultanpuri In Jail

अपनी वामपंथी विचार धारा के कारण मजरूह सुल्तानपुरी को कई बार कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा। कम्युनिस्ट विचारों के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। मजरूह सुल्तानपुरी को सरकार ने सलाह दी कि अगर वे माफ़ी मांग लेते हैं, तो उन्हें जेल से आज़ाद कर दिया जाएगा, लेकिन मजरूह सुल्तानपुरी इस बात के लिए राजी नहीं हुए और उन्हें दो वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया। जेल में रहने के कारण मजरूह सुल्तानपुरी के परिवार की माली हालत काफ़ी ख़राब हो गई।

मजरूह सुल्तानपुरी की दूसरी कामयाबी 

जिस समय मजरूह जेल में अपने दिन काट रहे थे, राजकपूर ने उनकी सहायता करनी चाही, लेकिन मजरूह सुल्तानपुरी ने उनकी सहायता लेने से इंकार कर दिया। इसके बाद राजकपूर ने उनसे एक गीत लिखने की पेशकश की। मजरूह सुल्तानपुरी ने जेल में ही 'एक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल' गीत की रचना की, जिसके एवज में राजकपूर ने उन्हें एक हज़ार रुपये दिए। लगभग दो वर्ष तक जेल में रहने के बाद मजरूह सुल्तानपुरी ने एक बार फिर से नए जोश के साथ काम करना शुरू कर दिया। वर्ष 1953 मे प्रदर्शित फ़िल्म 'फुटपाथ' और 'आरपार' में अपने रचित गीतों की कामयाबी के बाद मजरूह सुल्तानपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में पुन: अपनी खोई हुई पहचान बनाने में सफल हो गए।

मजरूह सुल्तानपुरी की जिद्द 

वर्ष 1949 में मजरूह सुल्तानपुरी पर सरकार विरोधी कविताएं लिखने के आरोप लगा और सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया। सुल्तानपुरी को सरकार इस शर्त छोड़ना चाहती थी कि अगर वह सरकार से लिखित माफी मांगते हैं तो उन्हें रिहा कर दिया जाएगा, परंतु वो भी अपनी जिद के पक्के थे। उन्होंने सरकार से किसी भी तरह की माफ़ी मांगने से इनकार कर दिया। इस तरह मजरूह साहब को अपनी जिंदगी के दो साल जेल में गुजारने पड़े, तब जाकर वो रिहा हो पाए।

मजरूह सुल्तानपुरी ने ठुकराई राज कपूर की मदद | Majrooh Sultanpuri And Raj Kapoor 

जब मजरूह सुल्तानपुरी को गलतफहमी के कारण दो साल जेल की सजा मिली, तो उनका परिवार की आर्थिक हालत काफी खराब हो गई। उनके परिवार की ऐसी हालत में बॉ​लीवुड के दिग्गज कलाकार राज कपूर मदद के लिए आगे आए। पर सुल्तानपुरी इतने खुद्दार थे कि उन्होंने किसी भी तरह की मदद लेने से इनकार कर दिया। इस पर राज कपूर ने हार नहीं मानी और इसका भी तोड़ निकाल लिया। उन्होंने मजरूह से कहा वह उनके लिए एक गीत लिखें। इसके बाद उन्होंने प्रसिद्ध गाना ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल’ लिखा और इस गीत के लिए राज कपूर ने उन्हें मेहनताने के रूप में एक हजार रुपये दिये। राज कपूर ने इस गाने को अपनी फिल्म ‘धरम करम’ में इस्तेमाल किया था।

मजरूह सुल्तानपुरी के पुरस्कार | Majrooh Sultanpuri Awards

मजरूह सुल्तानपुरी के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी संगीतकार एस.डी. बर्मन के साथ भी खूब जमी। एस.डी. बर्मन और मजरूह सुल्तानपुरी की जोड़ी वाली फ़िल्मों में 'पेइंग गेस्ट', 'नौ दो ग्यारह', 'सोलवां साल', 'काला पानी', 'चलती का नाम गाड़ी', 'सुजाता', 'बंबई का बाबू', 'बात एक रात की', 'तीन देवियां', 'ज्वैलथीफ़' और 'अभिमान' जैसी सुपरहिट फ़िल्में शामिल हैं। मजरूह सुल्तानपुरी के महत्त्वपूर्ण योगदान को देखते हुए वर्ष 1993 में उन्हें फ़िल्म जगत् के सर्वोच्च सम्मान 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से नवाजा गया। इसके अलावा वर्ष 1964 मे प्रदर्शित फ़िल्म 'दोस्ती' में अपने रचित गीत 'चाहूँगा मैं तुझे सांझ सवेरे' के लिए वह सर्वश्रेष्ठ गीतकार के 'फ़िल्म फ़ेयर' पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए।

‘दादासाहब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित पहले बॉलीवुड गीतकार | Majrooh Sultanpuri Dadasaheb Phalke Awards

मजरूह सुल्तानपुरी हिंदी फिल्मों के अपने समय के प्रसिद्ध गीतकारों में से एक थे। उन्होंने कई संगीत निर्देशकों के साथ मिलकर एक से बढ़कर एक सुपरहिट गीत दिए। वर्ष 1964 में आई फिल्म ‘दोस्ती’ के यादगार गाने ‘चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था। वर्ष 1993 में मजरूह के लिए यादगार बनकर आया, जब उन्हें फिल्मों का सबसे प्रतिष्ठित ‘दादासाहब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। वह बॉलीवुड के पहले ऐसे गीतकार थे, जिन्हें इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

मजरूह सुल्तानपुरी सदाबहार गीतों के बादशाह | Majrooh Sultanpuri Famous Songs

जाने-माने निर्माता-निर्देशक नासिर हुसैन की फ़िल्मों के लिए मजरूह सुल्तान पुरी ने सदाबहार गीत लिखकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मजरूह सुल्तानपुरी ने सबसे पहले नासिर हुसैन की फ़िल्म 'पेइंग गेस्ट' के लिए सुपरहिट गीत लिखा। उनके सदाबहार गीतों के कारण ही नासिर हुसैन की अधिकतर फ़िल्में आज भी याद की जाती हैं। इन फ़िल्मों में ख़ासकर 'फिर तीसरी मंजिल', 'बहारों के सपने', 'प्यार का मौसम', 'कारवाँ', 'यादों की बारात', 'हम किसी से कम नहीं' और 'जमाने को दिखाना है' जैसी कई सुपरहिट फ़िल्में शामिल हैं।

बॉलीवुड में मजरूह मजरूह सुल्तानपुरी | Majrooh Sultanpuri Bollywood Work

मजरूह सुल्तानपुरी ने बॉलीवुड के लिए लगभग चार-पांच दशक तक काम किया था। इस दौरान उन्होंने तीन सौ से अधिक फिल्मों के लिए 4 हजार से ज्यादा गाने लिखें। उनके द्वारा लिखे गाने सदाबहार हैं और आज भी लोगों की जुबान पर सुनने को मिल जाते हैं। मजरूह साहब के मशहूर गानों में ‘तेरे मेरे मिलन की ये रैना’, ‘हमें तुमसे प्यार कितना’, ‘गुम है किसी के प्यार में’, ‘एक लड़की भीगी भागी सी’, ‘ओ मेरे दिल के चैन’, ‘चुरा लिया है तुमने जो दिल को’, ‘इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा’, ‘बाहों में चले आओ’, ‘हमसे सनम क्या पर्दा’ जैसे एक से बढ़कर एक शानदार और सुपरहिट गाने लिखे। मजरूह साहब के लिए 1960 और 1970 का दशक उनके द्वारा लिखे गीतों का स्वर्णिम युग बनकर आया। इस काल में उन्होंने ‘चुरा लिया है तुमने’, ‘बांहों में चले आओ’, ‘हमसे क्या पर्दा’, ‘ऐसे न मुझे तुम देखो’, ‘अंग्रेजी में कहते हैं’ से लेकर ‘छोड़ो सनम’, ‘काहे का ग़म…’ तक हर बार नये अंदाज में दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाले गाने लिखे।

मजरूह सुल्तानपुरी की फिल्में | Majrooh Sultanpuri Movies

  • अंदाज
  • साथी
  • पाकीजा
  • तांगेवाला
  • धरमकांटा
  • गुड्डू
  • फुटपाथ
  • आरपार
  •  पेइंग गेस्ट
  • नौ दो ग्यारह
  • चलती का नाम गाड़ी
  • सुजाता
  • सोलवां साल
  • बंबई का बाबू
  • काला पानी
  • बात एक रात की
  • तीन देवियां
  • अभिमान
  • ज्वैलथीफ
  • तीसरी मंजिल
  • बहारों के सपने
  • प्यार का मौसम
  • कारवां
  • हम किसी से कम नहीं
  • जमाने को दिखाना है

मजरूह सुल्तानपुरी और नासिर हुसैन | Majrooh Sultanpuri And Nasir Husain 

मजरुह और नासीर हुसैन ने पहली बार फिल्म पेइंग गेस्ट पर सहयोग किया, जिसे नासीर ने लिखा था। नासीर के निदेशक और बाद में निर्माता बनने के बाद वे कई फिल्मों में सहयोग करने गए, जिनमें से सभी के पास बड़ी हिट थीं और कुछ महारूह के सबसे यादगार काम हैं...

  • तुमसा नहीं देखा (1957)
  • दिल देके देखो
  • फिर वोही दिल लया हुन
  • तेसरी मंजिल (1966)
  • बहार के सपने
  • प्यार का मौसम
  • कारवां (गीत पिया तू अब टू अजा)
  • याददान की बारात (1973)
  • हम किसिस कुम नाहेन (1977)
  • ज़मान को दीखाना है
  • कयामत से कयामत तक (1988)
  • जो जीता वोही सिकंदर (1992)
  • अकेले हम अकेले तुम
  • कही हन कही ना

मजरूह भी तीसरी मंजिल के लिए नासीर को आरडी बर्मन पेश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। तीनों ने उपर्युक्त फिल्मों में से 7 में काम किया। बर्मन ज़मीन को दीखाना है के बाद 2 और फिल्मों में काम करने के लिए चला गया।

मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे मशहूर गीत | Majrooh Sultanpuri Songs

  • आसमाँ के नीचे, हम आज अपने पीछे 
  • ऐसे न मुझे तुम देखो, सीने से लगा लूँगा 
  • बाबूजी धीरे चलना 
  • दुख हो या सुख, जब सदा संग रहे ना कोए 
  • इन बहारों में अकेले न फिरो
  • इतना हुस्न पे हुज़ूर न ग़ुरूर कीजिए
  • उठेगी तुम्हारी नज़र धीरे-धीरे 
  • चलो सजना, जहाँ तक घटा चले
  • छलकाएँ जाम, आइए आपकी आँखों के नाम
  • छोड़ दो आँचल जमाना क्या कहेगा
  • चुरा लिया है तुमने जो दिल को 
  • दिल का भँवर करे पुकार, प्यार का राग सुनो 
  • दिल पुकारे, आरे आरे आरे
  • दिलबर दिल से प्यारे 
  • इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल 
  • हम हैं राही प्यार के
  • होठों में ऐसी बात मैं दबा के चली आई 
  • इक लड़की भीगी भागी सी
  • इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा 
  • जब तक रहे तन में जिया 
  • ख़्वाब हो तुम या कोई हकीकत 
  • कोई जब राह न पाए, मेरे सँग आए 
  • क्या हुआ तेरा वादा
  • लेके पहला पहला प्यार
  • माना जनाब ने पुकारा नहीं 
  • मेरी भीगी भीगे सी, पलकों पे रह गए
  • मीत ना मिला रे मन का 
  • ओ हसीना जुल्फ़ों वाली जाने जहाँ 
  • ओ मेरे दिल के चैन
  • ओ मेरे सोना रे, सोना रे, सोना रे
  • पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा 
  • पत्थर के सनम 
  • पुकारता चला हूँ मैं 
  • राही मनवा दुख की चिंता क्यूँ सताती है
  • रात कली इक ख़्वाब में आई
  • रहें न रहें हम, महका करेंगे
  • रुला के गया सपना मेरा 
  • तौबा ये मतवाली चाल, झुक जाए फूलों की डाल
  • तेरे मेरे मिलन की ये रैना 
  • तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है 
  • तेरी बिंदिया रे
  • तुम बिन जाऊँ कहाँ 
  • तूने ओ रँगीले कैसा जादू किया
  • वादियाँ मेरा दामन
  • ये दिल न होता बेचारा
  • ये रातें ये मौसम नदी का किनारा 
  • चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे 
  • मेरा तो जो भी कदम है 
  • रुला के गया सपना मेरा 
  • रुक जाना नहीं तू कहीं हार के
  • हमसे का भूल हुई जो इ सजा हमका मिली 
  • रूठ के हमसे कहीं जब चले जाओगे तुम 
  • दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ 
  • लागी छूटे ना अब तो सनम 
  • चला जाता हूँ किसी की घुन में
  • हुई शाम उनका ख़याल आ गया 
  • सलाम-ए-इश्क़ मेरी जाँ ज़रा क़ुबूल कर लो 
  • ये है रेशमी जुल्फ़ों का अँधेरा न घबराइये 
  • ठाढ़े रहियो ओ बाँके यार 
  • माना जनाब ने पुकारा नहीं 
  • दिल-विल प्यार-व्यार मैं क्या जानूँ रे 
  • है अपना दिल तो आवारा, न जाने किस पे आयेगा 
  • हमें तुम से प्यार कितना, ये हम नहीं जानते 
  • गुम है किसी के प्यार में, दिल सुबह शाम 
  • कहीं करती होगी, वो मेरा, इंतज़ार 
  • फिर वही दिल लाया हूँ 
  • हमराही जब हो मस्ताना 
  • लूटे कोई मन का नगर बन के मेरा साथी
  • नदिया किनारे हेराए आई कँगना
  • कभी आर कभी पार लागा तीर-ए-नज़र 
  • कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी 
  • दिल लेना खेल है दिलदार का 
  • ओ हँसनी मेरी हँसनी, कहाँ उड़ चली 
  • लेकर हम दीवाना दिल 
  • यादों की बारात निकली है आज दिल के द्वारे 
  • रहते थे कभी जिनके दिल में 
  • मेरा तो जो भी कदम है, वो तेरी राह में है 
  • कहीं बेख़याल होकर, यूँ ही छू लिया किसी ने 
  • झुका-झुका के निगाहें मिलाए जाते हैं 
  • साथी न कोई मंज़िल
  • बहारें हमको ढूंढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे
  • हम हैं राही प्यार के, हमसे कुछ ना बोलिए

मजरूह सुल्तानपुरी की रचनाएँ | Majrooh Sultanpuri Writings 

  • मुझे सहल हो गईं मंज़िलें 
  • हम है मता-ए-कूचा-ओ-बज़ार की तरह 
  • हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो 
  • ख़त्म-ए-शोर-ए-तूफ़ाँ 
  • निगाह-ए-साक़ी-ए-नामहरबाँ 
  • दुश्मन की दोस्ती है 
  • जला के मशाल-ए-जान हम जुनूं सिफात चले 
  • कब तक मलूँ जबीं से 
  • मसर्रतों को ये अहले-हवस न खो देते 
  • पहले सौ बार इधर और उधर देखा है 
  • लिए बैठा है दिल इक अ़ज़्मे-बेबाकाना बरसों से 
  • आख़िर ग़मे-ज़ाना को ऐ दिल बढ़ के ग़मे-दौराँ होना था 
  • आ निकल के मैदां में दोरुख़ी के ख़ाने से 
  • दस्तेह-मुन्इम मेरी मेहनत का ख़रीदार सही 
  • हों, जो सारे दस्तो-पा हैं ख़ूं में नहलाए हुए 
  • आ ही जाएगी सहर मतला-ए-इम्काँ तो खुला 
  • आह-ए-जाँ-सोज़ की महरूमी-ए-तासीर न देख 
  • अब अहल-ए-दर्द ये जीने का एहतिमाम करें 
  • डरा के मौज ओ तलातुम से हम-नशीनों को 
  • गो रात मेरी सुब्ह की महरम तो नहीं है 
  • हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह 
  • हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुम से ज़्यादा 
  • हमें शुऊर-ए-जुनूँ है कि जिस चमन में रहे 
  • जब हुआ इरफ़ाँ तो ग़म आराम-ए-जाँ बनता गया 
  • जला के मशअल-ए-जाँ हम जुनूँ-सिफ़ात चले 
  • जलवा-ए-गुल का सबब दीदा-ए-तर है कि नहीं 
  • ख़ंजर की तरह बू-ए-सुमन तेज़ बहुत है 
  • मसर्रतों को ये अहल-ए-हवस न खो देते 
  • मुझे सहल हो गईं मंज़िलें वो हवा के रुख़ भी बदल गए 
  • निगाह-ए-साक़ी-ए-ना-मेहर-बाँ ये क्या जाने 
  • सिखाएँ दस्त-ए-तलब को अदा-ए-बे-बाकी 
  • सू-ए-मक़तल कि पए सैर-ए-चमन जाते हैं 
  • तक़दीर का शिकवा बे-मानी जीना ही तुझे मंज़ूर नहीं 
  • वो तो गया ये दीदा-ए-ख़ूँ-बार देखिए 
  • ये रुके रुके से आँसू ये दबी दबी सी आहें 

मजरूह सुल्तानपुरी का निधन | Majrooh Sultanpuri Death

मजरूह सुल्तानपुरी ने अपने चार दशक से भी अधिक लंबे सिने कैरियर में लगभग 300 फ़िल्मों के लिए 4000 गीतों की रचना की। अपने रचित गीतों से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले इस महान् शायर और गीतकार ने 24 मई, 2000 को इस दुनिया को अलविदा दिया।

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