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Maithili Sharan Gupt Biography In Hindi: भारत के 'राष्ट्रकवि' कहलाने वाले कवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय 

मैथिलीशरण गुप्त जीवन परिचय, बायोग्राफी, जन्म, जन्मस्थान,रचनाएँ, कवितायेँ, साहित्यिक परिचय, युग,राष्ट्रीय भावना पर लेख, Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi, rachna, janm, Poems, Kavita, Poems, Books, Rachnaye, Death, Essay, Awards In Hindi...
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मैथिली शरण गुप्त की कविता में राष्ट्र प्रेम की भावना भरी है तभी तो हिन्दी संसार ने इन्हें राष्ट्र कवि का सम्मान दिया। उनकी किताब भारत-भारती (1912) आज़ादी के स्वतंत्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली साबित हुई थी, और इसी वजह से महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि की पदवी भी दी थी। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से उन्होंने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया। इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण नये कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं, जो ‘पंचवटी’ से लेकर जयद्रथ वध, यशोधरा और साकेत तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं। साकेत उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है, तो आईये आज आपको मिलाएं इस महान कवि के जीवन परिचय से...

नाम मैथिलीशरण गुप्त
जन्म तिथि 3 अगस्त 1886
जन्म स्थान चिरगाँव, झाँसी (उत्तर प्रदेश)
मृत्यु तिथि 12 दिसम्बर 1964
मृत्यु स्थान झाँसी, उत्तर प्रदेश (भारत)
आयु (मृत्यु के समय) 78 वर्ष
राष्ट्रीयता भारतीय
व्यवसाय नाटककार, कवि, राजनेता, अनुवादक
भाषा खड़ीबोली, ब्रजभाषा
शिक्षा प्राथमिक चिरगाँव, मैकडोनाल्ड हाई स्कूल झांसी
पिता का नाम सेठ रामचरण गुप्त
माता का नाम काशीबाई गुप्त
भाई का नाम सियारामशरण गुप्त
पत्नी का नाम श्रीमती सरजू देवी
गुरु का नाम महावीरप्रसाद द्विवेदी। द्विवेदी युग के कवि
पुरस्कार 1954 में पद्म भूषण, डी.लिट्. की उपाधि, साहित्य वाचस्पति, हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार।

मैथिलीशरण गुप्त का संक्षिप्त जीवन परिचय | Maithili Sharan Gupt Ka Jivan Parichay

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म सन् 1886 ई॰ में चिरगांव जिला झाँसी में हुआ था। इनके पिता सेठ रामचरण जी रामभक्त और काव्यप्रेमी थे। उन्हीं से गुप्तजी को काव्य-संस्कार प्राप्त हुआ। इन्होंने कक्षा 9 तक ही विद्यालयीय शिक्षा प्राप्त की थी, किन्तु स्वाध्याय से अनेक भाषाओं के साहित्य का ज्ञान प्राप्त किया। इन्होंने बचपन में ही काव्य-रचना करके अपने पिता से महान् कवि बनने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। महावीरप्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में आने के बाद उनको अपना काव्य-गुरु मानने लगे। पैतृक सम्पत्ति के रूप में प्राप्त गुप्तजी के संस्कार को द्विवेदीजी ने सँवारा एवं सजाया। द्विवेदीजी के आदेश पर गुप्तजी ने सर्वप्रथम 'भारत-भारती' नामक काव्य-ग्रन्थ की रचना कर युवाओं में देश-प्रेम की सरिता बहा दी। गुप्तजी गाँधीजी के स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रभाव में आये और उसमें सक्रिय भाग लिया। इन्होंने देश-प्रेम, समाज-सुधार, धर्म, राजनीति, भक्ति आदि सभी विषयों पर रचनाएं कीं। राष्ट्रीय विषयों पर लिखने के कारण ये 'राष्ट्रकवि' कहलाये सन् 1948 ई॰ में आगरा विश्वविद्यालय तथा सन् 1958 ई॰ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने डी॰ लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया। सन् 1954 ई॰ में भारत सरकार ने 'पद्मभूषण' की उपाधि से इन्हें अलंकृत किया। दो बार ये राज्यसभा के सदस्य भी मनोनीत हुए। इनका देहावसान 12 दिसम्बर, सन् 1964 ई॰ को हुआ।

जन्म और प्रारंभिक जीवन | Maithili Sharan Gupt Birth and Early Life

बाल कविताओं के प्रमुख कवि और खड़ी बोली को अपनी कविताओं का माध्यम बनाने वाले प्रमुख महत्वपूर्ण कवि मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म सन 3 अगस्त 1886 ई. को झाँसी जिले के चिरगांव नामक स्थान पर एक संपन्न वैश्य परिवार में हुआ था. इनके पिताजी का नाम सेठ रामचरण गुप्त और माता का नाम कशीवाई था. इनके पिता रामचरण गुप्त जी एक निष्ठावान् प्रसिद्ध राम भक्त और काव्यानुरागी थे. ये दोनों ही गुण गुप्त जी को पैतृक संपत्ति के रूप में प्राप्त हुए थे. गुप्त जी ने अपने पिताजी से भी बड़ा कवि बनने का आशीर्वाद अपनी एक प्रमुख रचना द्वारा पिताजी से ही अर्जित किया था.

मैथिलीशरण गुप्त की शिक्षा | Maithili Sharan Gupt Education 

मैथिलीशरण गुप्त एक विद्यार्थी के रूप में साधारण ही रहे। उनका पढ़ाई के प्रति कोई गहरा लगाव नहीं था। उन्होंने पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई अपने चिरगांव गाँव में ही रहकर की। जब आगे की पढ़ाई की बात आई तो उनके पिताजी ने उन्हें झाँसी के मेक्डोनल हाई स्कूल में दाखिला दिलवाया। जब वह कक्षा में होते थे तो पढ़ाई की जगह कहानी और कविताएं लिखने में उनका मन लगता था। उनके शिक्षक उनकी इसी बात से बड़े ही परेशान रहते थे। कविताएं लिखने के अलावा इनको इधर-उधर घूमना बहुत ही पसंद था। वह अपने दोस्तों को भी कविताएं लिखने के लिए प्रेरित किया करते थे। हालांकि 10 -11 साल तक आते आते उन्होंने पढ़ाई ही छोड़ दी। हिन्दी, बंगला, संस्कृत साहित्य पर इनकी अच्छी पकड़ हो गई थी। वह घर पर ही सारे विषयों को पढ़ा करते थे। जब वह 12 साल के हुए तो ब्रजभाषा में कविता भी लिखने लग गए थे। वह अपनी कविताएं सरस्वती मैग्जीन में छपवाने के लिए देते थे।

मैथिलीशरण गुप्त के गुरु | Maithili Sharan Gupt Teacher

मैथिलीशरण गुप्त के गुरु आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी थे। वह एक महान कवि और लेखक थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में खूब कविताएं लिखी। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ही मैथिलीशरण गुप्त को लिखने की प्रेरणा दी थी। मैथिलीशरण गुप्त ने हालांकि बचपन से ही लिखना शुरू कर दिया था पर उनको लिखने की असली प्रेरणा आचार्य महावीर प्रसाद से ही मिली। मैथिलीशरण ने उनको अपना गुरु मान लिया था। मैथिलीशरण ने उनको अपना आदर्श मान लिया था। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने मैथिलीशरण गुप्त पर बहुत मेहनत की। उन्होंने मैथिलीशरण की कविता लिखने की शैली को और भी ज्यादा निखारा। वह मैथिलीशरण के प्रेरणा स्तोत्र रहे थे। उनके मार्गदर्शन के चलते ही मैथिलीशरण की कविताएं छोटी सी उम्र में ही सरस्वती पत्रिका में छपने लगी थी।

मैथिलीशरण गुप्त ,शिक्षा, उम्र, जन्मदिन, माता पिता अन्य | Maithili Sharan Gupt Birthplace , Age, Birthday and more

वास्तविक नाम (Real Name) मैथिलीशरण गुप्त
पेशा (Profession ) कवि, लेखक
जन्म (Date of Birth) 3 अगुस्त 1886
निधन 12 दिसंबर 1964
जन्मस्थान (Birth Place) झांसी ( चिरगांव )
प्रमुख रचनाएं भारत भारती, साकेत, यशोधरा, द्वापर,
जयभारत, विष्णुप्रिया
परिवार ( Family ) पिता ( Father ) – सेठ रामनारायण गुप्त
माता (Mother ) – 
ज्ञात नहीं
धर्म (Religion ) हिन्दू


मैथिलीशरण गुप्त का विवाह | Maithili Sharan Gupt Marriage 

मैथिलीशरण गुप्त का वैवाहिक जीवन बिल्कुल भी अच्छा नहीं रहा था। उनका जीवन कठिनाइयों से भरा पड़ा था। उनका पहला विवाह किसके साथ हुआ यह ज्ञात नहीं। उनकी दूसरी पत्नी का नाम भी कोई नहीं जानता। उनकी दोनों शादियों से उन्हें कोई संतानें नहीं हुई। वह दोनों पत्नियां भी इस दुनिया से जल्दी ही चल बसी। इनका तीसरा विवाह 1917 में सरजू देवी के साथ संपन्न हुआ था। सरजू देवी से उन्हें संतान प्राप्ति तो हुई पर वह ज्यादा दिन तक जिंदा नहीं रह सकी। उनका शादीशुदा जीवन बहुत उतार चढ़ाव के साथ गुजरा।

साहित्यिक जीवन परिचय | Maithili Sharan Gupt Literature Life

मैथिलीशरण गुप्त के जीवन में राष्ट्रीयता के भाव कूट – कूट कर भरे थे. इसी कारण उनकी सभी रचनाएं राष्ट्रीय विचारधारा से ओत – प्रोत हैं. राष्ट्र कवि गुप्त जी की प्रारभिक शिक्षा इनके अपने गाँव में ही संपन्न हुईं. इन्होंने मात्र 9 वर्ष की आयु में शिक्षा छोड़ दी थी. इसके उपरांत इन्होने स्वाध्याय द्वारा अनेक भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया था. गुप्त जी का मार्गदर्शन मुंशी अजमेरी जी से हुआ और 12 वर्ष की आयु में ब्रजभाषा में ‘कनकलता’ नाम से पहली कविता लिखना आरंभ किया था. महादेवी वर्मा जी के संपर्क में आने से उनकी कवितायेँ खाड़ी बोली सरस्वती में प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गया था. प्रथम काव्य संग्रह “रंग में भंग” तथा बाद में “जयद्रथ वध” प्रकाशित हुई. उन्होंने बंगाली भाषा के काव्य ग्रन्थ में ‘मेघनाथ बध’ अथवा ‘’ब्रजांगना’’ का भी अनुवाद किया था. 1912 व 1913 में राष्ट्रीयता की भावनाओं से परिपूर्ण ‘’भारत भारती’’ काव्य ग्रन्थ भी प्रकाशित हुआ था. इसमें गुप्त जी ने स्वदेश प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान में देश की दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का सम्पूर्ण प्रयोग किया था. संस्कृत भाषा का प्रमुख काव्य ग्रन्थ “स्वप्नवासवदत्ता”, महाकाव्य साकेत, उर्मिला आदि काव्य भी प्रकाशित हुए.

मैथिलीशरण गुप्त की उपलब्धियां | Maithili Sharan Gupt Achievements

मैथिलीशरण गुप्त अपने दौर के महान कवि थे। उनकी कलम से शानदार शब्द निकलते थे जो कि भारत के नागरिकों में राष्ट्र प्रेम जगा देते थे। सिर्फ यही नहीं उन्होंने समाज-सुधार, धर्म, राजनीति, भक्ति जैसे विषयों पर भी बहुत अच्छी कविताएं लिखी। 1948 ई॰ में आगरा विश्वविद्यालय और 1958 ई॰ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने मैथिलीशरण गुप्त को डी॰ लिट् की मानद उपाधि प्रदान की थी। इन्होंने राज्यसभा के सदस्य के रूप में पदभार ग्रहण किया। यही नहीं सन् 1954 में उन्हें पद्मभूषण से भी नवाजा गया।

मैथिलीशरण गुप्त की भाषा शैली | Maithili Sharan Gupt Language Style

मैथिलीशरण गुप्त एक राष्ट्र भक्ति से ओत-प्रोत कवि और लेखक थे। उनकी भाषा बड़ी ही सुंदर और निर्मल थी। वह अपने पूरे मन से लिखते थे। उनका कविता लिखने का सरल और सीधा स्वभाव लोगों को बहुत ज्यादा पसंद आता था। उनके विचार सीधे दिल से निकलते थे। वह अपनी कविताओं में लोकोक्तियां एवं मुहावरे का बहुत अच्छे से इस्तेमाल करते थे। वह अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों में देश प्रेम के बीज़ बो देते थे। वह अपनी रचनाओं में संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू जैसी भाषाओं का अच्छे से इस्तेमाल करते थे।

मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं के पात्र

मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं के जितने भी पात्र रहे हैं वह सब सच्चे होते थे। वह अपनी रचनाओं में काल्पनिक पात्रों को कम महत्त्व देते थे। उनके दिल में देश प्रेम कूट कूट के भरा हुआ था। वह देश भक्ति पर भी खूब लिखते थे। उन्होंने भारत भारती जैसी रचना में प्राचीन भारत की संस्कृति को बहुत खूबसूरती से पेश किया है। उनकी रचनाओं में महिलाओं को भी उच्च स्थान दिया गया है। उन्होंने भारत की महिलाओं की स्थिति को अपनी कविताओं के माध्यम से अच्छे से समझाया है। उनकी कविताओं में महिलाओं की पीड़ा और व्यथा को अच्छे से समझा जा सकता है।

मैथिलीशरण गुप्त का राष्ट्र प्रेम | Maithili Sharan Gupt’s Country-Love

मैथिलीशरण गुप्त को हम केवल कवि कहकर ही नहीं बुला सकते हैं।वह तो कवि होने के साथ-साथ एक सच्चे देशभक्त भी थे। उनकी देशभक्ति को हम एक सच्ची घटना के माध्यम से भी समझ सकते हैं। क्योंकि मैथिलीशरण गुप्त गाँधी जी को अपना आदर्श मानते थे इसलिए उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भी सक्रियता से भाग लिया। सच्चे देश प्रेम के लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। परंतु उनको इस बात से कोई शिकायत भी नहीं हुई। वह अपने पूरे जीवनकाल में देश के प्रति बहुत वफादार रहे। उन्होंने देश के खिलाफ कोई भी काम नहीं किया।

मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि क्यों कहा जाता है ?

आचार्य महावीर द्विदेदी जी से मुलाकात और संपर्क में आने पर उनके आदेश, उपदेश और स्नेहमय परामर्श से के इनके काव्य में बहुत ही निखार आया। द्विदेदी जी को मैथलीशरण गुप्त जी अपना गुरु मानते थे। राष्ट्रीय विशेषताओं के भरी हुयी रचनाएँ करने के कारण महात्मा गाँधी जी ने इन्हें 'राष्ट्रकवि' की भी उपाधि प्रदान किया।  इनकी प्रसिद्ध महाकाव्य के लिए इन्हें हिन्दी साहित्य सम्मलेन द्वारा 'मंगलप्रसाद' पारितोषिक' पुरस्कार से भी नवाजा गया। इसके बाद भारत सरकार द्वारा मैथिलीशरण गुप्त जी को पद्मभूषण से भी सम्मानित गया। 12 दिसम्बर 1964 को मैथलीशरण गुप्त का का देहांत हो गया था। 

मैथिलीशरण गुप्त का कवि जीवन | Maithili Sharan Gupt Poet Life

मुंशी अजमेरी जी ने उनका मार्गदर्शन किया। उन्होंने 12 वर्ष की अवस्था में ब्रजभाषा में कविता रचना आरम्भ किया। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में भी आये। उनकी कवितायें खड़ी बोली में मासिक “सरस्वती” में प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गई। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जब झाँसी के रेलवे ऑफिस में चीफ़ क्लर्क थे, तब गुप्तजी अपने बड़े भाई के साथ उनसे मिलने गए और कालांतर में उन्हीं की छत्रछाया में मैथिलीशरण जी की काव्य प्रतिभा पल्लवित व पुष्पित हुई। वे द्विवेदी जी को अपना काव्य गुरु मानते थे और उन्हीं के बताये मार्ग पर चलते रहे तथा जीवन के अंत तक साहित्य साधना में रहे। उन्होंने राष्ट्रीय आंदलनों में भी भाग लिया, जिस कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

बहुत सी पत्रिकाओ में हिंदी कविताए लिखकर गुप्त ने हिंदी साहित्य में प्रवेश किया था, जिनमे सरस्वती भी शामिल है। 1910 में उनका पहला मुख्य कार्य, रंग में भंग था जिसे इंडियन प्रेस ने पब्लिश किया था। इसके बाद भारत-भारती की रचना के साथ ही उनकी राष्ट्रिय कविताए भारतीयों के बीच काफी प्रसिद्ध हुई। मैथिलीशरण गुप्त जी स्वभाव से ही लोकसंग्रही कवि थे और अपने युग की समस्याओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील रहे। उनका काव्य एक ओर वैष्णव भावना से परिपोषित था, तो साथ ही जागरण व सुधार युग की राष्ट्रीय नैतिक चेतना से अनुप्राणित भी था। लाला लाजपतराय, बाल गंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल, गणेश शंकर विद्यार्थी और मदनमोहन मालवीय उनके आदर्श रहे।

काव्य के क्षेत्र में अपनी लेखनी से संपूर्ण देश में राष्ट्रभक्ति की भावना भर दी थी। राष्ट्रप्रेम की इस अजस्र धारा का प्रवाह बुंदेलखंड क्षेत्र के चिरगांव से कविता के माध्यम से हो रहा था। बाद में इस राष्ट्रप्रेम की इस धारा को देश भर में प्रवाहित किया था, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने। मैथिलीशरण गुप्त यद्यपि बालसाहित्य की मुख्यधारा में सम्मिलित नही तथापि उन्होंने कई बाल-कविताओं से हिन्दी बाल-काव्य को समृद्ध किया है। उनकी ‘माँ, कह एक कहानी’ कविता के अतिरिक्त ‘सर्कस’ व ‘ओला’ बाल-कविताएँ अत्यंत लोकप्रिय रचनाएं हैं। मैथिली शरण गुप्त जी के काव्य का मूल्यांकन करते हुए आचार्य राम चन्द्र शुक्ल जी ने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास में ठीक ही लिखा है कि “गुप्त जी वास्तव में सामंजस्यवादी कवि हैं। प्रतिक्रिया का प्रदर्शन करने वाले अथवा मद में झूमने वाले कवि नहीं हैं। सब प्रकार की उच्चता से प्रभावित होने वाला ह्रदय उन्हें प्राप्त है। प्राचीन के प्रति पूज्य भाव और नवीन के प्रति उत्साह, दोनों इनमें है।”

मैथिलीशरण गुप्त की काव्यगत विशेषताएँ

विविधतापूर्ण काव्य

गुप्त जी का काव्य विविधतापूर्ण है। इनकी रचनाओं में वर्तमान एवं अतीत दोनों को वस्तु रूप में अपनाया गया है। एक ओर इन्होंने ख्यातिप्रधान पात्रों अभिमन्यु आदि का चित्रण किया है तो दूसरी ओर साहित्य में उपेक्षित पात्रों- उर्मिला, यशोधरा आदि का सजीव वर्णन कर विशेष ख्याति अर्जित की है। इस दृष्टि से इन्हें अमर चरित्र सृष्टा भी कहा जा सकता है। नयी कल्पनाएँ, नयी उद्भावनाएँ एवं प्रभावपूर्ण प्रसंगों की पहचान इनके काव्य-सौन्दर्य की विविधता का उल्लेखनीय अंग हैं।

जीवन से सम्बन्धित

गुप्त जी का काव्य-भाषा एवं भाव की दृष्टि से जीवन से सम्बन्धित है। खंडकाव्य जीवन के अधिक निकट है। इन्होंने सरल, सुबोध एवं व्यवहारानुकूल भाषा का प्रयोग किया है। तत्कालीन जीवन की प्रमुखताओं का वर्णन कर इन्होंने काव्य को जीवन से जोड़ने का प्रयास किया है। राष्ट्रीयता इस प्रवृत्ति का सर्वप्रमुख अंग है।

कालानुसार काव्य

क्षमता- कालानुसरण क्षमता गुप्त जी की एक अन्य विशेषता है। अपने समय की सभी प्रवृत्तियों को अपने में आत्मसात् कर अपनी रचनाओं में उनका प्रणयन करना गुप्त जी की निजी विशेषता है। इनके काव्य में एक ओर भारतेन्दुयुगीन देश-प्रेम है तो दूसरी ओर छायावाद की प्रेम-प्रतीति। कहीं राष्ट्रीय आन्दोलनों का प्रभाव है तो कहीं रहस्यवादिता। समय के साथ बदलती हुई भावनाओं का वर्णन कर गुप्त जी ने अपनी अद्भुत काव्य क्षमता का परिचय दिया है।

समन्वयवादी कवि

गुप्त जी समन्वयवादी कवि हैं। मूलतः राम-भक्त होकर भी इन्होंने अन्य धर्मों के प्रति अपने छन्द सुमन अर्पित किए हैं। ‘साकेत’ इनकी राम-भक्ति का प्रतीक है, जबकि द्वापर में इन्होंने कृष्ण के प्रति अपनी मधुर भावना का निरूपण किया है। ‘काबा और कर्बला’ में इस्लाम धर्म तथा ‘गुरुकुल’ में सिक्ख-मत के प्रति इसकी सहानुभूति एवं उदारता का उल्लेख हुआ है। इनके काव्य में भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग, छायावाद, रहस्यवाद आदि का समन्वित रूप दिखायी देता है।

ऐतिहासिक काव्य

गुप्त जी के काव्यं का ऐतिहासिक महत्त्व भी है। इस विषय में उन्होंने खड़ी बोली को अपनाकर उसकी काव्योपमुक्तता सिद्ध की है तथा अन्य कवियों को इस भाषा के प्रति आकृष्ट किया है। खड़ी बोली की प्रकृति के सहज-सौन्दर्य का उद्घाटन कर उसे काव्य-भाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने वालों में गुप्त जी अग्रगण् य हैं।

सभी रसों की योजना

गुप्त जी के काव्य में प्रायः सभी रसों की योजना मिलती है। ‘साकेत’ में शृंगार, करुण आदि है तो ‘यशोधरा’ में शृंगार, करुण, वात्सल्य आदि ‘जयद्रथ-वध’ में वीर, रौद्र आदि उल्लेखनीय हैं । तुलसीदास के समान गुप्त जी ने रसों का मर्यादापूर्ण वर्णन किया है।

द्विवेदी-युग के सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में श्री मैथिलीशरण गुप्त

गुप्त जी द्विवेदी-युग के देदीप्यमान नक्षत्र है । यद्यपि गुप्तजी के पौढ़ काव्यों की रचना 1920 ई. के उपरान्त हुई है और उनकी काव्य रचना का आरम्भ 1900 ई. के आस-पास हुआ, परन्तु उनके काव्य जिन प्रवृत्तियों का विकास हुआ है, उनका जन्म द्विवेदी-काल में ही हुआ। मैथिलीशरण गुप्त जी अपनी काव्य-रचना के आरम्भ के कुछ समय बाद लगभग 1903 ई. में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के सम्पर्क में आ गये थे तथा गुप्त जी द्विवेदी-युग के सबसे बड़े और प्रतिनिधि कवि हैं। विषय, रीति और परिणाम- सभी दृष्टियों से वे इस काल के सबसे बड़े कवि सिद्ध होते हैं। द्विवेदी युग के श्रेष्ठ रचनाकारों में कविवर मैथिलीशरण गुप्तजी को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। इस प्रकार गुप्त जी द्विवेदी युग के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं।

मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रीय कवि क्यों कहा जाता है?

राष्ट्र की आत्मा को वाणी देने के कारण मैथिलीशरण गुप्त जी को राष्ट्रकवि कहा जाता है। हिन्दी काव्य को श्रृंगार रस की दलदल से निकालकर उसमें राष्ट्रीय भावनाओं की पुनीत गंगा को बहाने का श्रेय गुप्त जी को ही है। इस प्रकार गुप्त जी को राष्ट्रकवि होने का भी गौरव प्राप्त हुआ था।

मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रीय कवि किसने कहा

महात्मा गाँधी ने इनकी राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत रचनाओं के आधार पर ही इन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि से विभूषित किया था ।

एक सच्चे युग-प्रतिनिधि कवि के रूप में गुप्त जी का परिचय

श्री मैथिलीशरण गुप्त के काव्य की कतिपय विशेषताएँ उन्हें समन्वयकारी युग-प्रतिनिधि और राष्ट्रीय कवि सिद्ध करती है। गुप्त जी राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत, आर्य संस्कृति के प्रति निष्ठावान् गाँधीवाद के समर्थक और युग-धर्म के संयोजक थे। साहित्य समाज का दर्पण है। देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनितिक, आर्थिक, धार्मिक सभी परिस्थितियाँ उसमें साफ-साफ दिखाई पड़ती हैं। जिस समय की सामाजिक स्थिति जैसी होती है उसी के अनुरूप उस समय का साहित्य रचा जाता है। गुप्त जी का साहित्य उच्च कोटि का साहित्य है। उन्होंने युगानुकूल साहित्य का सृजन किया है। गुप्त जी एक मर्यावादी कवि थे। प्राचीन बारतीय सामाजिक परम्पराओँ तथा नितिपरक मर्यादाओं में उनकी दृढ़ आस्था है। मर्यादावादी होते हुए भी गुप्त जी पुरुषार्थ में विश्वास करने वाले चिन्तक है। परम्परागत मर्यादाओं का ग्रहण भी वे युगीन परिवेश के अनुकूल ही करना चाहते थे। यही कारण है कि उनके काव्य प्राचीन कथानकों पर आधारित होते हुए भी नवीन दृष्टिकोणों एवं युगानुरूप सन्देशों से युक्त हैं। इस प्रकार गुप्त जी एक सच्चे युग-प्रतिनिधि कवि के रूप में भी जाने जाते हैं।

मैथिलीशरण गुप्त का साहित्य में स्थान

गुप्त जी सच्चे अर्थों में राष्ट्र के महनीय मूल्यों के प्रतीक और आधुनिक भारत के सच्चे राष्ट्रकवि थे। राष्ट्र की आत्मा को वाणी देने के कारण ये राष्ट्रकवि कहलाये और आधुनिक हिन्दी काव्य की धारा के साथ विकास-पथ पर चलते हुए युग-प्रतिनिधि कवि स्वीकार किये गये। इन्होंने राष्ट्र को जगाया और उसकी चेतना को वाणी दी। गुप्त जी के अन्दर राष्ट्रीय चेतना की भावना तथा देशभक्ति बचपन से ही विद्यमान थी। गुप्त जी के हृदय में नारी के प्रति सदैव श्रद्धाभाव रहा है। इन्होंने नारी-जाति को समाज का अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग माना है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त भारतीय संस्कृति के यशस्वी उद्गाता एवं परम बैष्णव होते हुए भी विश्व-बंधुत्व की भावना से ओत-प्रोत थे। गुप्त जी की राष्ट्रीयता ऐसी थी, जिसमें देश की दुर्दशा पर आँसू नहीं बहाया जाता। हाथ-पर-हाथ रखकर अकर्मण्य बनकर नहीं बैठा जाता है। उनकी चेतना अतीतोन्मुखी है, किन्तु यह स्वर्णिम अतीत, भविष्य को उज्ज्वल अलोक प्रदान करता है।

मैथिलीशरण गुप्त के नाटक 

मैथिलीशरण गुप्त जी ने 5 मौलिक नाटक लिखे हैं- ‘अनघ’, ‘चन्द्रहास’, ‘तिलोत्तमा’, ‘निष्क्रिय प्रतिरोध’ और ‘विसर्जन’। उन्होने भास के चार नाटकों- ‘स्वप्नवासवदत्ता’, ‘प्रतिमा’, ‘अभिषेक’, ‘अविमारक’ का अनुवाद किया है। इन नाटकों में ‘अनघ’ जातक कथा से सम्बद्ध बोधिसत्व की कथा पर आधारित पद्य में लिखा गया नाटक है। नितांत तकनीकी दृष्टि से इसे ‘काव्य नाटक’ नहीं कहा जा सकता है। ‘चन्द्रहास’ इतिहास का आभास उत्पन्न करने वाला नाटक है। जिसमें नियति और सत्कर्म का महत्त्व संप्रेषित है। तिलोत्तमा पौराणिक नाटक है। ये नाटक पहले प्रकाशित हो चुके हैं, परन्तु ‘निष्क्रिय प्रतिरोध’ और ‘विसर्जन’ पहली बार प्रकाशित हो रहे हैं, इस अर्थ में नये हैं। भास के अनुदित नाटकों के चयन में भी गुप्त जी ने वैविध्य का ध्यान रखा है।

मैथिली शरण गुप्त जी की रचनाएं | Maithili Sharan Gupt Writings

महाकाव्य

  • साकेत 1931,
  • यशोधरा 1932

खण्डकाव्य

  • जयद्रथ वध 1910
  • भारत-भारती 1912
  • पंचवटी 1925
  • द्वापर 1936
  • सिद्धराज
  • नहुष
  • अंजलि और अर्घ्य
  • अजित
  • अर्जन और विसर्जन
  • काबा और कर्बला
  • किसान 1917
  • कुणाल गीत
  • गुरु तेग बहादुर
  • गुरुकुल 1929
  • जय भारत 1952
  • युद्ध
  • झंकार 1929
  • पृथ्वीपुत्र
  • वक संहार
  • शकुंतला
  • विश्व वेदना
  • राजा प्रजा,
  • विष्णुप्रिया,
  • उर्मिला
  • लीला
  • प्रदक्षिणा
  • दिवोदास
  • भूमि-भाग

नाटक

  • रंग में भंग 1909
  • राजा-प्रजा
  • वन वैभव
  • विकट भट
  • विरहिणी
  • वैतालिक
  • शक्ति
  • सैरन्ध्री
  • स्वदेश संगीत
  • हिड़िम्बा
  • हिन्दू
  • चंद्रहास

फुटकर रचनाएँ

  • केशों की कथा
  • स्वर्गसहोदर

अन्य भाषा की रचानाएं

  • स्वप्नवासवदत्ता
  • प्रतिमा
  • अभिषेक
  • अविमारक रत्नावली
  • मेघनाथ वध
  • विहरिणी वज्रांगना
  • पलासी का युद्ध

अन्य रचानाएं

  • जीवन की ही जय हो
  • नहुष का पतन
  • चारु चंद्र की चंचल किरणें
  • सखि वे मुझसे कह कर जाते
  • आर्य
  • किसान
  • नर हो, न निराश करो मन को
  • कुशलगीत
  • अर्जुन की प्रतिज्ञा
  • दोनों ओर प्रेम पलता है
  • मनुष्यता
  • प्रतिशोध
  • मुझे फूल मत मारो
  • शिशिर न फिर गिरि वन में
  • निरख सखी ये खंजन आए
  • मातृभूमि
  • भारत माता का मंदिर यह

काविताओं का संग्रह

  • उच्छवास

पत्रों का संग्रह

  • पत्रावली

मैथिलीशरण गुप्त के सम्मान एवं पुरस्कार | Maithili Sharan Gupt Honor and Awards

  • सन् 1914 ई. में राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत “भारत-भारती” का प्रकाशन किया, जिसके बाद गांधी जी ने उन्हें “राष्टकवि” की संज्ञा प्रदान की.
  • सन् 1954 ई. में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण ( Padma Vibhushan ) से सम्मानित किया.
  • राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने सन् 1962 ई. में अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया तथा हिन्दू विश्वविद्यालय के द्वारा डी.लिट. से सम्मानित किये गये.
  • आगरा विश्वविद्यालय से उन्हें डी.लिट. से सम्मानित किया गया.
  • सन् 1952-1964 तक राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए.

मैथिलीशरण गुप्त की मृत्यु | Maithili Sharan Gupt Death

मैथिलीशरण गुप्त जी पर गांधी जी का भी गहरा प्रभाव पड़ा था इसलिए उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया और कारावास की यात्रा भी की थी. यह एक सच्चे राष्ट्र कवि भी थे. इनके काव्य हिंदी साहित्य की अमूल निधी माने जाते हैं. महान ग्रन्थ ‘भारत भारती’ में उन्होंने भारतीय लोगों की जाति और देश के प्रति गर्व और गौरव की भावना जगाई है. अंतिम काल तक राष्ट्र सेवा में अथवा काव्य साधना में लीन रहने वाले और राष्ट्र के प्रति अपनी रचनाओं को समर्पित करने वाले राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी 12 दिसम्बर सन 1964 ई. को अपने राष्ट्र को अलविदा कह गए.

मैथिलीशरण गुप्त से सम्बंधित FAQ

Q.1-गुप्त जी का जन्म कहाँ हुआ था?
Ans-चिरगावं
Q.2-साकेत का प्रकाशन कब हुआ?
Ans-25 सितम्बर , 2005 
Q.3-रंग में भंग का प्रकाशन वर्ष क्या है?
Ans-1909
Q.4-साकेत रचना किसकी है?
Ans-मैथिलीशरण गुप्त 
Q.5-मैथिली शरण गुप्त का जन्म कहाँ और कब हुआ?
Ans-मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झाँसी जिले के चिरगांव नामक जगह पर 1886 ई० (सम्वत 1943 वि०) में हुआ था। 
Q.6-साकेत रचना पर गुप्त जी को कौन सा पुरस्कार प्राप्त हुआ?
Ans-साकेत रचना पर गुप्त जी को मंगला प्रसाद पारितोषिक तथा साहित्य वाचस्पति की उपाधि से नवाजा गया 
Q.7-रंग में भंग रचना किसकी है?
Ans-मैथलीशरण गुप्त 
Q.8-भारत के प्रथम राष्ट्रकवि कौन हैं?
Ans-भारत के प्रथम राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी हैं। 
Q.9-मैथिलीशरण गुप्त के पिता जी का क्या नाम था?
Ans-रामचरण गुप्ता
Q.10-मैथिलीशरण गुप्त की मृत्यु कब हुई?
Ans-12 दिसंबर 1964

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