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Mahadevi Verma Biography In Hindi: छायावादी आंदोलन की कवयित्री व लेखिका महादेवी वर्मा का जीवन परिचय 

Mahadevi Verma Biography In Hindi: छायावादी आंदोलन की कवयित्री व लेखिका महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) का जन्म 26 मार्च 1907 को फ़र्रुख़ाबाद में और मृत्यु 11 सितम्बर 1987 को प्रयाग में हुई थी। ये हिन्दी भाषा की प्रख्यात कवयित्री हैं। महादेवी वर्मा की गिनती हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ सुमित्रानन्दन पन्त, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के साथ की जाती है। आधुनिक हिन्दी कविता में महादेवी वर्मा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरीं। महादेवी वर्मा ने खड़ी बोली हिन्दी को कोमलता और मधुरता से संसिक्त कर सहज मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का द्वार खोला, विरह को दीपशिखा का गौरव दिया, व्यष्टिमूलक मानवतावादी काव्य के चिंतन को प्रतिष्ठापित किया। महादेवी वर्मा के गीतों का नाद-सौंदर्य, पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है, तो आईये जानते हैं इनके जीवन परिचय को करीब से......

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय | Mahadevi Verma Biogarphy In Hindi

महादेवी वर्मा (1907-1987) को हिन्दी साहित्य की सबसे प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक माना जाता है। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग’ के चार प्रमुख स्तंभों, में एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी पुकारा जाता है। कवि निराला ने उन्हें हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती भी कहा है।

महादेवी वर्मा ने स्वतंत्रता से पूर्व भारत तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद का भी भारत देखा था। वे उन कवयित्रियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा समाज-सुधार तथा महिलाओं को जागरूक करने का प्रयास भी किया।

उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और श्रृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया। महादेवी वर्मा ने ब्रजभाषा के समान ही खड़ी बोली हिन्दी की कविता में भी कोमलता लाने का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर हिन्दी का जामा पहनाया। महादेवी जी छायावाद के चार स्तंभो में से एक हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है :-

महादेवी वर्मा ही छायावादी कहे जाने वाले कवियों में रहस्यवाद के भीतर रही हैं। 

महादेवी वर्मा का जीवन | Mahadevi Verma Life

महादेवी वर्मा हिंदी को सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिंदी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा’ के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती’ भी कहा है। महादेवी जी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं, जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अंधकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। न केवल उनका काव्य बल्कि उनके समाज-सुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं अपितु समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया।

महादेवी वर्मा का जन्म और परिवार | Mahadevi Verma Early Life

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 को प्रात: 8 बजे फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों या सात पीढियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था। अत: बाबा बाबू बाँके बिहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी – महादेवी मानते हुए पुत्री का नाम महादेवी रखा। उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था। हेमरानी देवी बड़ी धर्म परायण, कर्मनिष्ठ, भावुक एवं शाकाहारी महिला थीं। विवाह के समय अपने साथ सिंहासनासीन भगवान की मूर्ति भी लाई थीं। वे प्रतिदिन कई घंटे पूजा-पाठ तथा रामायण, गीता एवं विनय पत्रिका का पारायण करती थीं और संगीत में भी उनकी अत्यधिक रुचि थी। परंतु उनके पिता गोविंद प्रसाद वर्मा सुंदर, विद्वान, संगीत प्रेमी, नास्तिक, शिकार करने एवं घूमने के शौकीन, मांसाहारी तथा हँसमुख व्यक्ति थे। महादेवी वर्मा के मानस बंधुओ में सुमित्रानंदन पंत एवं निराला का नाम लिया जा सकता है, जो उनसे जीवन-पर्यंत राखी बंधवाते रहे। निराला जी से उनको अत्यधिक निकटता थी, उनकी पुष्ट कलाइयों में महादेवी जी लगभग चालीस वर्षों तक राखी बाँधती रहीं।

महादेवी वर्मा की शिक्षा | Mahadevi Verma Education

महादेवी जी की शिक्षा इंदौर में मिशन स्कूल से प्रारंभ हुई; साथ ही संस्कृत, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अध्यापकों जीजानीजानीनजात शिक्षा की अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही। बीच में विवाह आने पर शिक्षा स्थगित कर दी गई। विवाहोपरांत महादेवी जी ने 1919 में क्रॉस्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं। 1921 में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा में प्रांत भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया। यहीं पर उन्होंने अपने काव्य जीवन की शुरूआत की। वे सात वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखने लगी थीं और 1925 तक जब उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, वे एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कविताओं का प्रकाशन होने लगा था। कॉलेज में सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता हो गई। सुभद्रा कुमारी चौहान महादेवी जी का हाथ पकड़ कर सखियों के बीच में ले जाती और कहती- “सुनो, ये कविता भी लिखती हैं।” 1932 में जब उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम०ए० पास किया तब तक उनके दो कविता संग्रह ‘नोहार’ तथा ‘रश्मि’ प्रकाशित हो चुके थे।

महादेवी वर्मा का वैवाहिक जीवन | Mahadevi Verma Marriage 

सन् 1916 में उनके बाबा श्री बाँके बिहारी ने इनका विवाह बरेली के पास नवाब गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया, उस समय दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। श्री वर्मा इंटर करके लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। महादेवी जी उस समय क्रॉस्थवेट कॉलेज इलाहाबाद के छात्रावास में थीं। श्रीमती महादेवी वर्मा को विवाहित जीवन से विरक्ति थी। महादेवी जी का जीवन एक संन्यासिनी का जीवन था। 1966 में पति की मृत्यु के बाद वह स्थायी रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं। 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद में इनका देहांत हो गया। कृतित्व- महादेवी वर्मा की गणना हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवियों एवं गद्य-लेखकों में की जाती है।

महादेवी वर्मा के धार्मिक विचार | Mahadevi Verma Personal Views

महादेवी ने स्वयं लिखा है, ”मां से पूजा और आरती के समय सुने सूर, तुलसी तथा मीरा आदि के गीत मुझे गीत रचना की प्रेरणा देते थे। माँ से सुनी एक करुण कथा को मैंने प्रायः सौ छंदों में लिपिबद्ध किया था। पड़ोस की एक विधवा वधू के जीवन से प्रभावित होकर मैंने विधवा, अबला शीर्षकों से शब्द चित्र लिखे थे जो उस समय की पत्र्किाओं में प्रकाशित भी हुए थे। व्यक्तिगत दुःख समष्टिगत गंभीर वेदना का रूप ग्रहण करने लगा। करुणा बाहुल होने के कारण बौद्ध साहित्य भी मुझे प्रिय रहा है।“ महादेवी वर्मा ने अपने आराध्य को, प्रियतम को करुणामय (ब्रह्म) के रूप में सम्बोधित किया है। महादेवी पूजा और अर्चना के बाह्य उपकरणों को स्वीकार नहीं करती हैं। उनका लघुतम जीवन ही उस असीम का सुन्दर मंदिर है।

क्या पूजा क्या अर्चना रे
उस असीम का सुन्दर मंदिर
मेरा लघुतर जीवन रे।

आधुनिक मीरां

महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरां भी कहा जाता है। भक्ति काल में जो स्थान कृष्ण भक्त मीरां को प्राप्त है, आधुनिक काल में वह स्थान महादेवी वर्मा को मिला है। मीरां का प्रियतम सगुण, साकार गिरधर गोपाल है जिसके प्रति वे समर्पित रही, तो दूसरी ओर महादेवी के प्रियतम असीम निर्गुण निराकार (ब्रह्म) हैं और उसके प्रति वे समर्पित हैं। महादेवी अपने आप में एक जीवन गाथा हैं। महादेवी का प्रसिद्ध गीत, ‘मैं नीर भरी दुःख की बदली’ इस बात का परिचायक है कि उनका यह जीवन दर्शन है जो मीरांबाई जैसा ही है।

महादेवी वर्मा की भाषा | Mahadevi Verma Language 

महादेवी वर्मा की कविताओं में कल्पना की प्रधानता है परंतु गद्य में इन्होंने यथार्थ के धरातल पर स्थित रहकर ही अपनी रचनाओं का सृजन किया है। महादेवी जी की भाषा अत्यंत उत्कृष्ट, समर्थ तथा सशक्त है। संस्कृतनिष्ठता इनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। इन्होंने संस्कृतप्रधान शुद्ध साहित्यिक भाषा को ही अपनाया है। इनकी रचनाओं में कहीं-कहीं पर अत्यंत सरल और व्यावहारिक भाषा के दर्शन होते हैं। मुहावरों, लोकोक्तियों का प्रयोग किया गया है। लक्षणा और व्यंजना की प्रधानता इनकी भाषा की महत्वपूर्ण विशेषता है। महादेवी जी की भाषा में चित्रों को अंकित करने तथा अर्थ को व्यक्त करने की अदभुत क्षमता है। महादेवी जी की गद्य शैली बिलकुल अलग है। ये यथार्थवादी गद्य लेखिका थीं। इनको गद्य शैली में मार्मिकता, बौद्धिकता, भावुकता, काव्यात्मक सौष्ठव तथा व्यंग्यात्मकता विद्यमान है-

महादेवी वर्मा की शैली | Mahadevi Verma Writing Style

  • चित्रोपम वर्णनात्मक शैली – महादेवी जी चित्रोपम वर्णन करने में सिद्धहस्त हैं। वस्तु, व्यक्ति अथवा घटना का वर्णन करते समय इनकी लेखनी तूलिका बन जाती है, जिससे सजीव शब्दचित्र बनते चले जाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में संकलित ‘गिल्लू’ रेखाचित्र महादेवी जी की कृति ‘मेरा परिवार’ से लिया गया है। में संकलित ‘गिल्लू’ रेखाचित्र महादेवी जी की कृति ‘मेरा परिवार’ से लिया गया है। इनके निबंधों और रेखाचित्रों में अधिकतर इसी शैली का प्रयोग हुआ है। महादेवी जी की मुख्य शैली भी यही है।
  • विवेचनात्मक शैली – गंभीर और विचारप्रधान विषयों में महादेवी जी ने इस शैली का प्रयोग किया है। इसकी भाषा गंभीर और संस्कृतनिष्ठ है।
  • भावात्मक शैली – महादेवी जी भावुक हृदया होने के साथ-साथ भावमयी कवयित्री भी थीं। हृदय का आवेग जब रुक नहीं पाता, तब उनकी शैली भावात्मक हो जाती है।
  • व्यंग्यात्मक शैली – नारी जीवन की विषमताओं और उन्हें दुःखी देखकर उनकी कोमल लेखनी से तीक्ष्ण व्यंग्य निकलने लगते हैं। शृंखला की कड़ियाँ’, निबंध में इस व्यंग्यात्मक शैली के दर्शन होते हैं।

महादेवी वर्मा का साहित्यिक योगदान 

साहित्य में महादेवी वर्मा का स्थान अतुलनीय है। श्रृंखला की कड़ियाँ’ में स्त्रियों की मुक्ति और विकास के लिए महादेवी जी ने जिस साहस व दृढ़ता से आवाज उठाई है और जिस प्रकार सामाजिक रूढ़ियों की निंदा की है, उससे उन्हें महिला मुक्तिवादी भी कहा गया। महिलाओं व शिक्षा के विकास के कार्यों और जनसेवा के कारण उन्हें समाज सुधारक भी कहा जाता है। उनके संपूर्ण गद्य साहित्य में पीड़ा या वेदना के कहीं दर्शन नहीं होते बल्कि अदम्य रचनात्मक रोष, समाज में बदलाव की अदम्य आकांक्षा और विकास के प्रति सहज लगाव परिलक्षित होता है। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपने अभूतपूर्व योगदान के कारण महादेवी वर्मा चिरकाल तक स्मरणीय रहेंगी। हिंदी साहित्य जगत सदैव उनका आभारी रहेगा।

महिला कवि सम्मेलन की शुरुआत

भारत में महिला कवि सम्मेलन की शुरुआत सर्वप्रथम उन्हीं के द्वारा की गई थी। इस प्रकार का पहला अखिल भारतवर्षीय कवि सम्मेलन 15 अप्रैल 1933 को सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में प्रयाग महिला, विद्यापीठ में संपन्न हुआ। वे हिंदी साहित्य में रहस्याद की प्रवर्तिका भी मानी जाती हैं। महादेवी बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं । महात्मा गाँधी से प्रेरणा लेकर वे जनसेवा के कार्यों में लग गईं, जिसके अंतर्गत उन्होंने झूसी तथा आजादी के दौरान महत्त्वपूर्ण योगदान किया। 1936 में नैनीताल से 25 किलोमीटर दूर रामगढ़ कसबे के उमागढ़ नामक गाँव में महादेवी वर्मा ने एक बँगला बनवाया था। जिसका नाम उन्होंने मीरा मंदिर रखा था। जितने दिन वे यहाँ रहीं इस छोटे से गाँव की शिक्षा और विकास के लिए काम करती रहीं।

महिला शिक्षा प्रमुख उद्देश्य

महिलाओं को शिक्षित तथा आत्मनिर्भर बनाना मुख्य उद्देश्य था । आजकल इस बंगले को महादेवी साहित्य संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। श्रृंखला की कड़ियाँ में स्त्रियों की मुक्ति और विकास के लिए उन्होंने जिस साहस व दृढ़ता से आवाज उठाई हैं और जिस प्रकार सामाजिक रूढ़ियों की निंदा की है उससे उन्हें महिला मुक्तिवादी भी कहा गया।

शिक्षा के क्षेत्र में तथा स्त्रियों के सर्वांगीण विकास हेतु जो कार्य किये जिन्हें देखते हुए उन्हें समाज सुधारक कहना गलत नहीं होगा। उनके संपूर्ण गद्य साहित्य में पीड़ा या वेदना के कहीं दर्शन नहीं होते बल्कि अदम्य रचनात्मक रोष समाज में बदलाव की अदम्य आकांक्षा और विकास के प्रति सहज लगाव परिलक्षित होता है। अपने जीवन का ज्यादातर समय उन्होंने इलाहाबाद नगर में व्यतीत किया। 

महादेवी वर्मा का कैरियर |Mahadevi Verma Career

महादेवी ने 1930 में निहार, 1932 में रश्मि तथा 1933 में निरजा की रचना की। 1935 में उसकी कविताओं का एक समूह प्रकाशित किया गया। 1939 में कविताओं का अन्य समूह यम के नाम से प्रकाशित किया गया। उनके कई उपन्यास व कहानियां बहुत प्रसिद्ध हुई है जिनमें से मेरा परिवार, समृद्धि के रेहाए, पथ के साथी, अतीत के चलचित्र आदि हैं। उन्होंने महिला सशक्तिकरण पर आधारित कई सारी कहानियां और उपन्यास लिखे। 

वर्मा गौतम बुद्ध के विचारों से व महात्मा गांधी के कार्यों से प्रभावित हुई। 1937 में महादेवी ने उत्तराखंड के रामगढ़ के गांव उमागढ़ में एक घर का निर्माण किया जिसे मीरा मंदिर का नाम दिया गया। इस गांव में जितने वर्षों तक वर्मा रही, उन्होंने लोगों की भलाई व बच्चों को शिक्षा दिलाने में मदद की। उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए व आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए सबसे ज्यादा प्रयास किए। 

उन्होंने अपनी अनेकों रचनाओं में महिलाओं के जीवन, उनकी समस्याएं, व समस्याओं के निवारण के उपाय पर लिखा। वर्मा ने अपना अधिकांश जीवन उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (जिसे प्रयागराज के नाम से भी जाना जाता है) में ही बिताया।

महादेवी वर्मा की कविताएँ | Mahadevi Verma Writings

महादेवी वर्मा की कविताएं | Mahadevi Verma Poems 

  • निहार (1930)
  • रश्मी (1932)
  • नीरजा (1933)
  • संध्यागीत (1935)
  • प्रथम आयाम (1949)
  • सप्तपर्ण (1959)
  • दीपशिक्षा (1942)
  • अग्नि रेखा (1988)

महादेवी वर्मा की कहानियाँ | Mahadevi Verma Stories

  • अतीत के चलचित्र
  • पथ के साथी
  • मेरा परिवार
  • संस्मरण
  • संभाषण
  • स्मृति के रेहाये
  • विवेचमानक गद्य
  • स्कंध
  • हिमालय

महादेवी वर्मा के गद्य और रेखाचित्र

उनकी प्रमुख गद्य रचनाओं में शामिल हैं –

  • अतीत के चलचित्र (1961, रेखाचित्र)
  • स्मृति की रेखाएं (1943, रेखाचित्र)
  • पाठ के साथी (1956)
  • मेरा परिवार (1972)
  • संस्कारन (1943)
  • संभासन (1949)
  • श्रींखला के करिये (1972)
  • विवेचामनक गद्य (1972)
  • स्कंधा (1956)
  • हिमालय (1973)

महादेवी वर्मा की अन्य रचनाएँ | Mahadevi Verma Other Writings

महादेवी वर्मा की बाल कविताओं के दो संकलन इस प्रकार हैं-

  • ठाकुरजी भोले हैं
  • आज खरीदेंगे हम ज्वाला 

महादेवी वर्मा के पुरस्कार | Mahadevi Verma Awards

क्र.स. पुरस्कार का नाम वर्ष
1. पदम भूषण 1956
2. साहित्य अकादमी फेलोशिप 1979
3. ज्ञानपीठ अवार्ड 1982
4. पदम विभूषण 1988

महादेवी वर्मा की मृत्यु | Death of Mahadevi Verma

महादेवी वर्मा की मृत्यु 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद (प्रयागराज), उत्तर प्रदेश में हुई थी। मृत्यु के समय उनकी उम्र 80 वर्ष थी। उन्होंने अपने जीवन में गुलाम भारत व आजाद भारत दोनों को देखा था।

महादेवी वर्मा के पुरस्कार और सम्मान | Mahadevi Verma Awards

महादेवी वर्मा, मानव मन की भावनाओं को जिकर उन्हें शब्दों में पिरोती थीं। यह उनकी रचनाओं में देखने को मिलता था। उनकी उन जीवंत रचनाओं और समाजिक कार्यों के लिए उन्हें प्रशासनिक, अर्धप्रशासनिक और व्यक्तिगत सभी संस्थाओं से विभिन्न पुरस्कार व सम्मान मिले। उनमें से कुछ प्रमुख पुरस्कार और सम्मान इस प्रकार हैं –

  • 1943 में उन्हें ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ एवं ‘भारत भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद 1952 में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गयीं। 1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिये ‘पद्म भूषण’ की उपाधि दी।
  • 1971 में साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली वे पहली महिला थीं। 1988 में उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार की पद्म विभूषण उपाधि से सम्मानित किया गया।
  • सन 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय, 1977 में कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल, 1980 में दिल्ली विश्वविद्यालय तथा 1984 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने उन्हें डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया।
  • इससे पूर्व महादेवी वर्मा को ‘नीरजा’ के लिये 1934 में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’, 1942 में ‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये ‘द्विवेदी पदक’ प्राप्त हुए। 
  • ‘यामा’ नामक काव्य संकलन के लिये उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। वे भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं।
  • 1968 में सुप्रसिद्ध भारतीय फ़िल्मकार मृणाल सेन ने उनके संस्मरण ‘वह चीनी भाई’ पर एक बांग्ला फ़िल्म का निर्माण किया था जिसका नाम था नील आकाशेर था।
  • 16 सितंबर 1991 को भारत सरकार के डाकतार विभाग ने जयशंकर प्रसाद के साथ उनके सम्मान में 2 रुपये का एक युगल टिकट भी जारी किया है।

महादेवी वर्मा के जीवन से जुड़े अनसुने और रोचक तथ्य | Mahadevi Verma's Less Know Facts

कवियित्री महादेवी वर्मा के जीवन से जुड़े कुछ अनसुने और रोचक तथ्य यहां दिए गए हैं –

  • महादेवी वर्मा की शिक्षा इंदौर में मिशन स्कूल से प्रारम्भ हुई और साथ ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा उन्होंने अपने घर पर पूरी की थी। 1919 में विवाहोपरान्त उन्होंने क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं।
  • वह पढ़ाई में काफी निपूर्ण थी इसलिए उन्होंने 1921 में आठवीं कक्षा में प्रांत भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया था और क्या आप जानते हैं कि यहीं से उन्होंने अपने काव्य जीवन की शुरुआत भी की, 7 वर्ष की अवस्था से ही उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था। 1925 में जब तक उन्होंने मैट्रिक पास की तब तक वह काफी सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थी।
  • “मेरे बचपन के दिन” कविता में उन्होंने लिखा है कि जब बेटियाँ बोझ मानी जाती थीं, उनका सौभाग्य था कि उनका जन्म एक खुले विचार वाले परिवार में हुआ। उनके दादाजी उन्हें विदुषी बनाना चाहते थे। उनकी माँ संस्कृत और हिन्दी की ज्ञाता थीं और धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। माँ ने ही महादेवी को कविता लिखने, और साहित्य में रुचि लेने के लिए प्रेरित किया।
  • महादेवी वर्मा ने 1932 में प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए किया और तब तक उनकी दो कविता संग्रह नीहार तथा रश्मि प्रकाशित हो चुकी थीं। वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य बनीं।
  • विवाह के बाद भी वे क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद के छात्रावास में रहीं।उनका जीवन तो एक सन्यासिनी का जीवन था. उन्होंने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा।
  • उनका सबसे क्रांतिकारी कदम था महिला-शिक्षा को बढ़ावा देना और इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान। उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘चाँद’ का कार्यभार 1932 में संभाला। 1930 में नीहार, 1932 में रश्मि, 1934 में नीरजा, तथा 1936 में सांध्यगीत नामक उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए।
  • उन्होंने नए आयाम गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में स्थापित किये। इसके अलावा उनकी 18 काव्य और गद्य कृतियां हैं जिनमें प्रमुख हैं: मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, शृंखला की कड़ियाँ और अतीत के चलचित्र।
  • उन्होंने इलाहाबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना 1955 में की थी। भारत में महिला कवि सम्मेलनों की नींव भी उन्होंने ही रखी और 15 अप्रैल 1933 को सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में प्रयाग महिला विद्यापीठ में पहला अखिल भारतवर्षीय कवि सम्मेलन संपन्न हुआ।
  • क्या आप जानते हैं कि महादेवी वर्मा बौद्ध धर्म से काफी प्रभावित थीं। महात्मा गांधी के प्रभाव से उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था। उनको आधुनिक मीरा’ भी कहा जाता है।
  • महादेवी वर्मा को 27 अप्रैल, 1982 में काव्य संकलन “यामा” के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप, 1988 में पद्म विभूषण और 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

महादेवी वर्मा का गूगल डूडल | Mahadevi Verma Google Doodle

सर्च इंजन गूगल ने साहित्य जगत की आधुनिक 'मीरा' महादेवी वर्मा पर भी अपना डूडल बनाया। अक्सर गूगल किसी महान शख्स के जन्मदिवस या पुण्यतिथि पर डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि देता है, लेकिन 27 अप्रॅल, 2018 को गूगल ने महादेवी वर्मा पर किसी और वजह से डूडल बनाया। उल्लेखनीय है कि 27 अप्रॅल ही के दिन साल 1982 में महादेवी वर्मा को भारतीय साहित्य में योगदान के लिए 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। इस गूगल डूडल को कलाकार सोनाली ज़ोहरा ने बनाया था। डूडल में महान कवयित्री को हाथों में डायरी और कलम लिए अपने विचारों में खोया हुआ दिखाया गया है। महादेवी वर्मा को 'मॉडर्न मीरा' भी कहा जाता है। गूगल के ब्लॉग के मुताबिक़, 'माता-पिता दोनों ने ही महादेवी को उनकी पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन उनका मां ही थीं, जिन्होंने अपनी बेटी को संस्कृत और हिंदी में लिखने की प्रेरणा दी।' संस्कृत में मास्टर डिग्री की पढ़ाई के दौरान, उन्होंने अपना पहला छंद संस्कृत में लिखा, जिसे बाद में उनकी दोस्त और रूममेट रहीं जानी-मानी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने खोजा।

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