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भारत के जाने माने साहित्यकार लल्लू लालजी का जीवन परिचय

भारत के जाने माने साहित्यकार लल्लू लालजी का जीवन परिचय

लल्लू लाल का जन्म 1763 ई. में आगरा उत्तर प्रदेश में और मृत्यु 1835 कलकत्ता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। ये हिन्दी गद्य के निर्माताओं में से एक और 'प्रेम सागर' के रचनाकार के रूप में प्रसिद्ध थे। इन्हें 'लालचंद', 'लल्लूजी' या 'लाल कवि' के नाम से भी जाना जाता था। एक साहित्यकार के रूप में लल्लू लालजी किस पायदान पर थे, इसका मूल्यांकन करना तो आलोचकों का काम है, लेकिन यह सब मानते हैं कि हिन्दी के विकास में उनका बहुत योगदान था, तो चलिए जाने इनके बारे में विस्तार से.......

लल्लू लालजी

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पूरा नाम लल्लू लाल
अन्य नाम 'लालचंद', 'लल्लूजी' या 'लाल कवि'
जन्म 1763 ई.
जन्म भूमि आगरा, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1835
मृत्यु स्थान कोलकाता, पश्चिम बंगाल
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ 'सिंहासन बत्तीसी', 'बैताल पच्चीसी', 'शंकुतला', 'माधवानल', 'प्रेम सागर', 'ब्रज भाषा व्याकरण' आदि।
भाषा हिन्दी
प्रसिद्धि साहित्यकार
विशेष योगदान हिन्दी के विकास में लल्लू लालजी का बहुत योगदान था।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी लल्लू लाल द्वारा लिखी गई कृति 'प्रेमसागर' कृष्ण की लीलाओं व भागवत पुराण के दसवें अध्याय पर आधारित थी। डब्लू. होलिंग्स ने सन् 1848 में अंग्रेज़ी में 'प्रेमसागर' का अनुवाद किया था।

परिचय

लल्लू लाल का जन्म 1763 ई. में ब्रिटिश कालीन उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था। इनके पूर्वज गुजरात से आकर यहाँ बसे थे। कहा जाता है कि लल्लू लाल आगरा शहर की 'सुनार गली' में ही कहीं रहते थे। आगरा की 'नागरी प्रचारिणी सभा' में भी उनका विवरण नहीं है।

व्यावसायिक संघर्ष

लल्लू लाल को आजीविका के लिए बहुत भटकना पड़ा। वे मुर्शिदाबाद, कोलकाता, जगन्नाथपुरी आदि स्थानों में गए, पर नियमित आजीविका की कोई व्यवस्था नहीं हो पाई तो वे घूम-फिर कर फिर कोलकाता आ गए।[2]

अध्यापन कार्य

लल्लू लालजी तैरना बहुत अच्छा जानते थे। कहते हैं कि एक दिन उन्होंने तैरते समय एक अंग्रेज़ को डूबने से बचाया था। इस पर उस अंग्रेज़ ने इनकी बड़ी सहायता की और इन्हें 'फ़ोर्ट विलियम कॉलेज' में हिन्दी पढ़ाने और हिन्दी गद्य ग्रंथों की रचना का काम मिल गया। उनका काम ब्रिटिश राज के कर्मचारियों के लिए पाठन सामग्री तैयार करना भी था।

रचनाएँ

एक साहित्यकार के रूप में लल्लूजी किस पायदान पर थे, इसका मूल्यांकन करना तो आलोचकों का काम है, लेकिन यह सब मानते हैं कि हिन्दी के विकास में उनका बहुत योगदान था। इनके द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार हैं-

  • सिंहासन बत्तीसी
  • बैताल पच्चीसी
  • शंकुतला
  • माधवानल
  • प्रेम सागर

ब्रज भाषा व्याकरण

इनमें व्याकरण ग्रंथ को छोड़कर कोई रचना इनकी मौलिक नहीं मानी जाती है। सभी ब्रजभाषा में प्रकाशित किसी न किसी पुस्तक के आधार पर लिखी गई थीं। फिर भी इन पुस्तकों ने हिन्दी गद्य के आरम्भिक काल में खड़ी बोली के प्रचार में योगदान दिया। 'बिहारी सतसई' की टीका भी इन्होंने ‘लाल चंद्रिका’ नाम से की थी।

प्रेमसागर

1804 से 1810 के बीच लिखी गई कृति 'प्रेमसागर' कृष्ण की लीलाओं व भागवत पुराण के दसवें अध्याय पर आधारित थी। डब्लू. होलिंग्स ने सन् 1848 में अंग्रेज़ी में 'प्रेमसागर' का अनुवाद किया। 47वीं रेजीमेंट लखनऊ में कैप्टन हाँलिंग्स ने प्रस्तावना में लिखा था- "हिन्दी भाषा का ज्ञान हिन्दुस्तान(तत्कालीन भारत) में रहने वाले सभी सरकारी अफ़सरों के लिए ज़रूरी है, क्योंकि यह देश के ज़्यादातर हिस्से में बोली जाती है।" प्राइस ने 'प्रेमसागर' के कठिन शब्दों का हिन्दी-अंग्रेज़ी कोष तैयार किया था।

लल्लूजीलाल के ग्रंथों की सूची

  • सिंहासनबत्तीसी: इस पुस्तक में प्रसिद्ध राजा विक्रम के सिहासन की 32 पुतलियो की कहानियाँ हैं, जिसे सुंदरदास ने संस्कृत से ब्रज भाषा में लिखा था। उसी का वि॰ सं॰ 1856 में लल्लूजी ने हिंदी में अनुवाद किया। उदाहरण― खुदा ने जब से उसे दुनिया के परदे पर उतारा सब बेसहारों का किया सहारा और रूप उसको देखकर चौदहवीं रात के चाँद को चकाचौध आती, बड़ा चतुर सुघर और गुणी था, अच्छी जितनी बात सब उसमें समाई थी।
  • बैतालपचीसी: संस्कृत में शिवदास कृत वेलालपंचविंशतिका नामक ग्रंथ है, जिसका सुरति मिश्र ने ब्रज भाषा में अनुवाद किया था। उसी का हिंदी अनुवाद मजहरअली विला की सहायता से हुआ था। उदाहरण, इबतिदाय दास्तान यो है कि मुहम्मद शाह बादशाह के जमाने में राजा जैसिह सवाई ने जो मालिक जैनगर को थी सुरति नामक कवीश्वर से कहा कि वैतालपचीसी को जो जबान संस्कृत में है तुम ब्रजभाषा में कहो। तब मैने बमूजिब हुकुम राजा के ब्रज की बोली में कही। सो हम उसको ज़बान उर्दू में छापा करते हैं जो खास और आम के समझने में आवै।
  • शकुन्तला नाटक: संस्कृत से हिंदी अनुवाद, माधोनल-( माधवानल ) नामक संस्कृत की पुस्तक सं० 1587 वि० की लिखी हुई बंगाल एशाटिक सोसाएदी में सुरक्षित है। इसी के आधार पर सं० 1755 वि० के लगभग मोतीराम कवि ने ब्रज भाप में एक कहानी लिखी थी, जिसकी यह हिंदी अनुवाद है।
  • माधवविलास: रघुराम नामक गुजराती कवि के समासार और कृपाराम कवि द्वारा पद्मपुराण से संग्रहीत योगसार नामक दोनों ग्रंथो को मिलाकर लल्लूजी ने माधवविलास नाम से इस पुस्तक को पहले छपवाया । इस पुस्तक में गद्य पद्य दोनो हैं और यह ब्रज भाषा में है । रधुराम नागर की एक अन्य रचना माधव-विलास शतक खोज में मिली है।
  • सभाबिलास: यह एक प्रसिद्ध पुस्तक है जिसमें माना प्रकार के नीति विषयक पद्यों का संग्रह है। |
  • प्रेमसागर: सं० 1624 वि० में चतुभुजदास जी ने ब्रज भाषा में श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध का दोहों और चपाइयों में अनुवाद किया था। इसी ग्रंथ के आधार पर वि० सं० 1860 में लल्लूजी लाल ने प्रेमसागर की रचना की । यह भागवत का पूर्ण अनुवाद न होकर उसका संक्षिप्त रूप है। इसका प्रथम संस्करण वि० सं० 1867 में प्रकाशित हुआ था। यह एक प्रसिद्ध ग्रंथ है अर पाठ्य पुस्तक में इसका कुछ न कुछ अंश अवश्य संगृहीत रहता है।
  • राजनीति: ब्रज भाषा में हितोपदेश का सं० 1869 वि० में अनुवाद करके यह नाम रखा था। 
  • भाषा क़ायदा: हिंदी भाषा का व्याकरण: छोटे व्याकरण को कायदा कहते हैं। ऐसा नाम रखने से यह ज्ञात होता है कि इसके प्रणयन में इन्हें मुसलमान लेखको से सहायता मिली होगी। यह ग्रंथ छपा था, पर प्रकाशित नहीं हो सका। इसकी एक प्रति बंगाल एशाटिक सोसाएटी में सुरक्षित है।
  • लतायफ़ हिंदी: उर्दू, हिंदी और ब्रज भाषा की 100 कहानियों का संग्रह है। छोटी छोटी कहानियों और चुटकुले को लतीफ कहते हैं, जिसका बहुवचन लतायफ है। यह न्यू-एन्साइक्लोपीडिया-हिंदुस्तानी के नाम से प्रकाशित हुआ था।
  • लालचँद्रिका: सं० 1875 वि० में अनवरचंद्रिका अमरचंद्रिका, हरिप्रकाश टीका, कृष्ण कवि की कवितवाली टीका, कृष्णलाल की टीका, पठान सुलाने की कुँडलियो-वाली टीका और संस्कृत टीका की सहायता से उन्होंने महाकवि बिहारीलाल की सतसई पर इस नाम की गद्य टीका तैयार की। इसमें नायिका भेद और अलंकार भी दिए है और इसे आज़मशाही क्रम के अनुसार रखा है। डाक्टर ग्रियर्सन ने इसे संपादित करके सं॰ 1952 वि॰ में पुनः प्रकाशित किया।

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