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Kumar Vishwas Poems: कुमार विश्वास की कुछ सबसे मशहूर प्रेम कविताएं- 'भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा'

Kumar Vishwas Poems: कुमार विश्वास की कुछ सबसे मशहूर प्रेम कविताएं- 'भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा'

कुमार विश्वास हिंदी के प्रसिद्ध कवि, वक्ता, रामकथा वाचक और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता हैं. 10 फरवरी, 1970 को उत्तर प्रदेश के पिलखुआ में जन्मे कुमार विश्वास युवाओं के अत्यन्त प्रिय कवि हैं. कुमार विश्वास कविता के मंचन, वाचन, गायन के साथ साथ वकतृत्व प्रतिभा के भी धनी हैं, तो आईये मिलाते हैं आपको कुमार विश्वास की कुछ सबसे फेमस प्रेम कवितों से...................

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल ऐसा इकतारा है,
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है।
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर,
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है।

जो धरती से अम्बर जोड़े, उसका नाम मोहब्बत है,
जो शीशे से पत्थर तोड़े, उसका नाम मोहब्बत है।
कतरा कतरा सागर तक तो ,जाती है हर उम्र मगर,
बहता दरिया वापस मोड़े, उसका नाम मोहब्बत है।

पनाहों में जो आया हो, तो उस पर वार क्या करना?
जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर अधिकार क्या करना?
मुहब्बत का मजा तो डूबने की कशमकश में है,
जो हो मालूम गहराई, तो दरिया पार क्या करना?

बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन,
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस-घिस रीता तनचंदन,
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज गजब की है,
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन। 

तुम्हारे पास हूं लेकिन जो दूरी है समझता हूं,
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूं।
तुम्हें मैं भूल जाऊंगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन,
तुम्हीं को भूलना सबसे जरूरी है समझता हूं।

बहुत बिखरा बहुत टूटा थपेड़े सह नहीं पाया,
हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया।
अधूरा अनसुना ही रह गया यूं प्यार का किस्सा,
कभी तुम सुन नहीं पायी, कभी मैं कह नहीं पाया।

-  कुमार विश्वास 

जब भी मुंह ढक लेता हूं 

जब भी मुंह ढक लेता हूं
तेरे जुल्फों के छांव में
कितने गीत उतर आते हैं
मेरे मन के गांव में

एक गीत पलकों पर लिखना
एक गीत होंठो पर लिखना
यानी सारी गीत हृदय की
मीठी-सी चोटों पर लिखना
जैसे चुभ जाता है कोई कांटा नंगे पांव में
ऐसे गीत उतर आते हैं, मेरे मन के गाँव में

पलकें बंद हुई तो जैसे
धरती के उन्माद सो गये
पलकें अगर उठीं तो जैसे
बिन बोले संवाद हो गये
जैसे धूप, चुनरिया ओढ़, आ बैठी हो छांव में
ऐसे गीत उतर आते हैं, मेरे मन के गांव में।

-  कुमार विश्वास 

मैं तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक

मैं तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक
रोज जाता रहा, रोज आता रहा
तुम ग़ज़ल बन गईं, गीत में ढल गईं
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहा

जिन्दगी के सभी रास्ते एक थे
सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक रही
अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद्
मन की गोपन कथाएं नयन तक रहीं
प्राण के पृष्ठ पर प्रीति की अल्पना
तुम मिटाती रहीं मैं बनाता रहा

एक खामोश हलचल बनी जिन्दगी
गहरा ठहरा हुआ जल बनी जिन्दगी
तुम बिना जैसे महलों मे बीता हुआ
उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी
दृष्टि आकाश में आस का इक दीया
तुम बुझाती रहीं, मैं जलाता रहा

तुम चली तो गईं, मन अकेला हुआ
सारी यादों का पुरजोर मेला हुआ
जब भी लौटीं नई ख़ुश्बुओं में सजीं
मन भी बेला हुआ, तन भी बेला हुआ
ख़ुद के आघात पर, व्यर्थ की बात पर
रूठतीं तुम रहीं मैं मनाता रहा।

- कुमार विश्वास 

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