Samachar Nama
×

Khumar Barabankvi Shayari: मशहूर शायर ख़ुमार बाराबंकवी के लिखे कुछ दिल को छू लेने वाले कलाम

Khumar barabankvi poetry, khumar barabankvi shayari in hindi, khumar barabandkvi songs, film lyrics, film lyricist, ख़ुमार बाराबंकवी, ख़ुमार बाराबंकवी के गीत, Khumar barabankvi, khumar barabankvi ki gazal, husn jab meharbaan ho to kya kijiye, khumar barabankvi shayari, khumar barabankvi poetry, khumar barabankvi best, खुमार बाराबंकवी, खुमार बाराबंकवी ग़ज़ल, हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए, खुमार बाराबंकवी शायरी हिंदी, खुमार बाराबंकवी की शायरी, खुमार बाराबंकवी पोएट्री, कुमार बाराबंकवी बेस्ट

उर्दू शायरी (Urdu Shayari) के फ़लक पर सितारें की तरह चमकने वाले 'ख़ुमार' बाराबंकवी (Khumar Barabankvi) का जन्‍म 15 सितंबर, 1919 को हुआ था. उनका असल नाम मुहम्मद हैदर खान (Mohammad Haider Khan) था, लेकिन शायरी (Shayari) में वह ख़ुमार बाराबंकवी (Khumar Barabankvi) के नाम से पहचाने गए. हालांकि उनके करीबी उन्‍हें प्यार से 'दुल्लन' कह कर भी बुलाते थे. मुशायरों में उनका तरन्‍नुम में ग़ज़ल (Ghazal) पढ़ना सामाईन को बहुत भाता था. उन्‍होंने फि़ल्‍मों के लिए गीत भी लिखे. आज हम 'कविता कोश' के साभार से हाजि़र हुए हैं 'ख़ुमार' बाराबंकवी का दिलकश कलाम लेकर, तो पढ़िए और लुत्‍फ़ उठाइए...

याद आने लगे हैं...


वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं
वो हैं पास और याद आने लगे हैं
मुहब्बत के होश अब ठिकाने लगे हैं
सुना है हमें वो भुलाने लगे हैं
तो क्या हम उन्हें याद आने लगे हैं
हटाए थे जो राह से दोस्तों की
वो पत्थर मेरे घर में आने लगे हैं
ये कहना था उन से मुहब्बत है मुझ को
ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं
हवाएं चलीं और न मौजें ही उठीं
अब ऐसे भी तूफ़ान आने लगे हैं
क़यामत यक़ीनन क़रीब आ गई है
'ख़ुमार' अब तो मस्जिद में जाने लगे हैं

मज़ा हम से पूछिए...


इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए
दो दिन की ज़िंदगी का मज़ा हम से पूछिए
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए
आग़ाज़-ए-आशिक़ी का मज़ा आप जानिए
अंजाम-ए-आशिक़ी का मज़ा हम से पूछिए
जलते दियों में जलते घरों जैसी ज़ौ कहां
सरकार रौशनी का मज़ा हम से पूछिए
वो जान ही गए कि हमें उन से प्यार है
आंखों की मुख़बिरी का मज़ा हम से पूछिए
हंसने का शौक़ हम को भी था आप की तरह
हंसिए मगर हंसी का मज़ा हम से पूछिए
हम तौबा कर के मर गए बे-मौत ऐ 'ख़ुमार'
तौहीन-ए-मय-कशी का मज़ा हम से पूछिए

शिद्दत नहीं रही...


ऐसा नहीं कि उन से मुहब्बत नहीं रही
जज़्बात में वो पहली सी शिद्दत नहीं रही
ज़ोफ़-ए-क़ुवा ने आमद-ए-पीरी की दी नवेद
वो दिल नहीं रहा वो तबीअत नहीं रही
सर में वो इंतिज़ार का सौदा नहीं रहा
दिल पर वो धड़कनों की हुकूमत नहीं रही
कमज़ोरी-ए-निगाह ने संजीदा कर दिया
जल्वों से छेड़-छाड़ की आदत नहीं रही
हाथों से इंतिक़ाम लिया इर्तिआश ने
दामान-ए-यार से कोई निस्बत नहीं रही
पैहम तवाफ़-ए-कूचा-ए-जानां के दिन गए
पैरों में चलने फिरने की ताक़त नहीं रही
चेहरे को झुर्रियों ने भयानक बना दिया
आईना देखने की भी हिम्मत नहीं रही
अल्लाह जाने मौत कहां मर गई 'ख़ुमार'
अब मुझ को ज़िंदगी की ज़रूरत नहीं रही

Share this story

Tags