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Kabir Das Biography in Hindi: पढ़िए कबीर दास के प्रेरक दोहे जो बतायेगें जीने का सही तरीका 

Kabir Das Biography in Hindi: पढ़िए कबीर दास के प्रेरक दोहे जो बतायेगें जीने का सही तरीका

'गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय...' आज भी इस दोहे का स्मरण हर बच्चे को करवाया जाता है। कबीर दास के दोहे लोगों के जीवन को एक नई राह दिखाते हैं। आज यानी 4 जून 2023 को संत कबीर दाय की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। वह संत के साथ-साथ समाज सुधार भी थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर दास जी ने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रज भाषा का समावेश देखने को मिलता है। कबीर दास जी भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनका मत था कि जिस परमात्मा की तलाश में हम दर-दर भटकते रहते हैं वह तो हमारे अंदर है, बस हम अज्ञानवश उसे देख नहीं पाते। 

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

'गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय...' आज भी इस दोहे का स्मरण हर बच्चे को करवाया जाता है। कबीर दास के दोहे लोगों के जीवन को एक नई राह दिखाते हैं। आज यानी 4 जून 2023 को संत कबीर दाय की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। वह संत के साथ-साथ समाज सुधार भी थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर दास जी ने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रज भाषा का समावेश देखने को मिलता है। कबीर दास जी भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनका मत था कि जिस परमात्मा की तलाश में हम दर-दर भटकते रहते हैं वह तो हमारे अंदर है, बस हम अज्ञानवश उसे देख नहीं पाते।   माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।  धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।   तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय, कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय.   बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।  जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।  दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।  जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।  साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।  पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।  बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।  जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

'गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय...' आज भी इस दोहे का स्मरण हर बच्चे को करवाया जाता है। कबीर दास के दोहे लोगों के जीवन को एक नई राह दिखाते हैं। आज यानी 4 जून 2023 को संत कबीर दाय की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। वह संत के साथ-साथ समाज सुधार भी थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर दास जी ने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रज भाषा का समावेश देखने को मिलता है। कबीर दास जी भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनका मत था कि जिस परमात्मा की तलाश में हम दर-दर भटकते रहते हैं वह तो हमारे अंदर है, बस हम अज्ञानवश उसे देख नहीं पाते।   माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।  धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।   तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय, कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय.   बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।  जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।  दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।  जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।  साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।  पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।  बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।  जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

'गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय...' आज भी इस दोहे का स्मरण हर बच्चे को करवाया जाता है। कबीर दास के दोहे लोगों के जीवन को एक नई राह दिखाते हैं। आज यानी 4 जून 2023 को संत कबीर दाय की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। वह संत के साथ-साथ समाज सुधार भी थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर दास जी ने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रज भाषा का समावेश देखने को मिलता है। कबीर दास जी भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनका मत था कि जिस परमात्मा की तलाश में हम दर-दर भटकते रहते हैं वह तो हमारे अंदर है, बस हम अज्ञानवश उसे देख नहीं पाते।   माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।  धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।   तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय, कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय.   बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।  जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।  दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।  जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।  साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।  पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।  बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।  जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय,

कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय.

'गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय...' आज भी इस दोहे का स्मरण हर बच्चे को करवाया जाता है। कबीर दास के दोहे लोगों के जीवन को एक नई राह दिखाते हैं। आज यानी 4 जून 2023 को संत कबीर दाय की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। वह संत के साथ-साथ समाज सुधार भी थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर दास जी ने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रज भाषा का समावेश देखने को मिलता है। कबीर दास जी भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनका मत था कि जिस परमात्मा की तलाश में हम दर-दर भटकते रहते हैं वह तो हमारे अंदर है, बस हम अज्ञानवश उसे देख नहीं पाते।   माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।  धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।   तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय, कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय.   बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।  जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।  दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।  जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।  साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।  पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।  बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।  जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,

हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।

'गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय...' आज भी इस दोहे का स्मरण हर बच्चे को करवाया जाता है। कबीर दास के दोहे लोगों के जीवन को एक नई राह दिखाते हैं। आज यानी 4 जून 2023 को संत कबीर दाय की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। वह संत के साथ-साथ समाज सुधार भी थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर दास जी ने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रज भाषा का समावेश देखने को मिलता है। कबीर दास जी भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनका मत था कि जिस परमात्मा की तलाश में हम दर-दर भटकते रहते हैं वह तो हमारे अंदर है, बस हम अज्ञानवश उसे देख नहीं पाते।   माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।  धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।   तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय, कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय.   बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।  जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।  दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।  जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।  साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।  पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।  बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।  जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

'गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय...' आज भी इस दोहे का स्मरण हर बच्चे को करवाया जाता है। कबीर दास के दोहे लोगों के जीवन को एक नई राह दिखाते हैं। आज यानी 4 जून 2023 को संत कबीर दाय की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। वह संत के साथ-साथ समाज सुधार भी थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर दास जी ने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रज भाषा का समावेश देखने को मिलता है। कबीर दास जी भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनका मत था कि जिस परमात्मा की तलाश में हम दर-दर भटकते रहते हैं वह तो हमारे अंदर है, बस हम अज्ञानवश उसे देख नहीं पाते।   माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।  धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।   तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय, कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय.   बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।  जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।  दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।  जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।  साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।  पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।  बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।  जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

'गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय...' आज भी इस दोहे का स्मरण हर बच्चे को करवाया जाता है। कबीर दास के दोहे लोगों के जीवन को एक नई राह दिखाते हैं। आज यानी 4 जून 2023 को संत कबीर दाय की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। वह संत के साथ-साथ समाज सुधार भी थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर दास जी ने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रज भाषा का समावेश देखने को मिलता है। कबीर दास जी भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनका मत था कि जिस परमात्मा की तलाश में हम दर-दर भटकते रहते हैं वह तो हमारे अंदर है, बस हम अज्ञानवश उसे देख नहीं पाते।   माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।  धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।   तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय, कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय.   बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।  जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।  दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।  जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।  साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।  पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।  बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।  जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

'गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय...' आज भी इस दोहे का स्मरण हर बच्चे को करवाया जाता है। कबीर दास के दोहे लोगों के जीवन को एक नई राह दिखाते हैं। आज यानी 4 जून 2023 को संत कबीर दाय की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। वह संत के साथ-साथ समाज सुधार भी थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर दास जी ने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रज भाषा का समावेश देखने को मिलता है। कबीर दास जी भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनका मत था कि जिस परमात्मा की तलाश में हम दर-दर भटकते रहते हैं वह तो हमारे अंदर है, बस हम अज्ञानवश उसे देख नहीं पाते।   माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।  धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।   तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय, कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय.   बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।  जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।  दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।  जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।  साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।  पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।  बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।  जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

'गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय...' आज भी इस दोहे का स्मरण हर बच्चे को करवाया जाता है। कबीर दास के दोहे लोगों के जीवन को एक नई राह दिखाते हैं। आज यानी 4 जून 2023 को संत कबीर दाय की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। वह संत के साथ-साथ समाज सुधार भी थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर दास जी ने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रज भाषा का समावेश देखने को मिलता है। कबीर दास जी भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनका मत था कि जिस परमात्मा की तलाश में हम दर-दर भटकते रहते हैं वह तो हमारे अंदर है, बस हम अज्ञानवश उसे देख नहीं पाते।   माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।  धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।   तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय, कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय.   बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।  जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।  दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।  जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।  साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।  पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।  बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।  जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

'गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय...' आज भी इस दोहे का स्मरण हर बच्चे को करवाया जाता है। कबीर दास के दोहे लोगों के जीवन को एक नई राह दिखाते हैं। आज यानी 4 जून 2023 को संत कबीर दाय की जयंती मनाई जा रही है। संत कबीरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। वह संत के साथ-साथ समाज सुधार भी थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर दास जी ने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रज भाषा का समावेश देखने को मिलता है। कबीर दास जी भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनका मत था कि जिस परमात्मा की तलाश में हम दर-दर भटकते रहते हैं वह तो हमारे अंदर है, बस हम अज्ञानवश उसे देख नहीं पाते।   माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।  धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।   तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय, कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय.   बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।  जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।  दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।  जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।  साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।  पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।  बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।  जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। 
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

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