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Jigar Moradabadi Shayari: अपनी बेहतरीन गजलों के लिए जाने जाने वाले जिगर मुरादाबादी के इश्क़ के दर्द पर लिखे मशहूर शेर 

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जिगर मुरादाबादी उर्दू के मशहूर शायरों में से एक हैं. वह अपनी बेहतरीन गजलों के लिए जाने जाते हैं. उनकी पैदाइश 6 अप्रैल साल 1890 में मुरादाबाद में हुई. जिगर मुरादाबादी को उनकी किताब 'आतिश ए गुल' साल 1958 में साहित्य अकेडमी पुरस्कार से नवाजा गया. उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से डी लिट्ट की डिग्री दी गई. जिगर मुरादाबादी 9 सितंबर साल 1960 को इंतेकाल कर गए.........

यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तिरे बग़ैर 
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं 

भुलाना हमारा मुबारक मुबारक 
मगर शर्त ये है न याद आईएगा 

उस ने अपना बना के छोड़ दिया 
क्या असीरी है क्या रिहाई है 

दोनों हाथों से लूटती है हमें 
कितनी ज़ालिम है तेरी अंगड़ाई 

हसीं तेरी आँखें हसीं तेरे आँसू 
यहीं डूब जाने को जी चाहता है 

आदमी आदमी से मिलता है 
दिल मगर कम किसी से मिलता है 

इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा 
आदमी काम का नहीं होता 

तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं 
हाँ मुझी को ख़राब होना था 

आदमी के पास सब कुछ है मगर 
एक तन्हा आदमिय्यत ही नहीं 

हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है 
रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है 

उसी को कहते हैं जन्नत उसी को दोज़ख़ भी 
वो ज़िंदगी जो हसीनों के दरमियाँ गुज़रे 

बहुत हसीन सही सोहबतें गुलों की मगर 
वो ज़िंदगी है जो काँटों के दरमियाँ गुज़रे 

दिल है क़दमों पर किसी के सर झुका हो या न हो 
बंदगी तो अपनी फ़ितरत है ख़ुदा हो या न हो 

हाए रे मजबूरियाँ महरूमियाँ नाकामियाँ 
इश्क़ आख़िर इश्क़ है तुम क्या करो हम क्या करें 

इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का 
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम 

ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे 
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है 

हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका 
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया 

हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं 
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं 

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