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Jaun Elia Birthday: जाने उस पाकिस्तानी शायर की कहानी जो अपनी बर्बादी सुना-सुना कर हुआ मशहूर

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साहित्य न्यूज़ डेस्क, जौन एलिया पाकिस्तान के अग्रणी आधुनिक शायरों में से एक हैं, जो अपने अलग अंदाज़ के लिए ख़ासा मशहूर हैं। 14 दिसंबर 1931 में जन्मे जौन की रचनाओं में वो बात थी, जो आज भी लोगों को अपनी ओर खींचती है। उन्होंने 8 साल की उम्र में अपना पहला उर्दू शेर लिखा, लेकिन पहला काव्य संग्रह 'हो सकता है' 60 बरस की उम्र में जाकर प्रकाशित हुआ। सोशल मीडिया के इस ज़माने में सिर्फ मीम, जोक, ट्रोल की बात होती है, इस ज़माने में कोई पुरानी चीज़ें कम ही सामने आती हैं, नई पीढ़ी अपने तरीके से ही ज़िंदगी जीती है। लेकिन यकीन मानिए इस नई पीढ़ी में भी काफी लोग ऐसे हैं जो पुरानी चीज़ों से जुड़े रहते हैं। इस ज़माने में भी आपको आज मुकेश, किशोर, रफी, लता को सुनने वाले मिलेंगे तो वहीं नुसरत, अज़ीज मियां की कव्वाली के दीवाने भी भरपूर होंगे। आज ऐसे ही एक शायर का जन्मदिन है जो जो जवानी में ही मर जाना चाहता था.

इस बीच जब बात इश्क की होती है तो दिल से सिर्फ शेर निकलता है। शायरी और इश्क का सबसे बड़ा शायर जो अपने अल्हड़पन, पागलपन, बर्बादी के लिए मशहूर हुआ। नाम है जौन एलिया, जौन 20वीं सदी के आखिरी में पाकिस्तान के मशहूर शायरों में से एक रहे। लेकिन आज भी सोशल मीडिया पर आपको जौन के चाहने वाले मिलेंगे. यूट्यूब पर उनके वीडियो वायरल हैं, ट्विटर पर वो ट्रेंड करते हैं, फेसबुक पर उनके शेर लिखे जाते हैं। जौन आज ना होकर भी हिंदुस्तान और पाकिस्तान के युवाओं में काफी मशहूर हैं। 

ये है एक जब्र कोई इत्तेफाक़ नहीं,
जौन होना कोई मज़ाक नहीं

जौन एलिया का जन्म 14 दिसंबर, 1931 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में हुआ था. जौन, मशहूर निर्देशक कमाल अमरोही के छोटे चचेरे भाई थे. कुल पांच भाईयों में जौन सबसे छोटे थे. उनके और भाई भी लेखक-शायर ही थे. पैदाइश के कुछ समय बाद जब बात देश के बंटवारे तक पहुंचने लगी तो जौन के परिवार ने भारत छोड़ दिया और कराची में जा बसे, ना चाहते हुए जौन भी गए. शुरुआत में उन्होंने वहां पर उर्दू पढ़ाई, उसके बाद उर्दू अखबार जंग के एडिटर भी रहे. इस दौरान जौन का लिखना चालू रहा, कहा जाता है जौन ने अपना पहला शेर 8 साल की उम्र में ही लिख दिया था.

शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी, नाज़ से काम क्यों नहीं लेती,
आप, वो, तुम, जी ये सब क्या है तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेती

इस दौरान लिखना जारी रहा, तब एक उर्दू पत्रिका थी इंशा. इसको निकालने के दौरान जौन की मुलाकात जाहिदा हिना से हुई. मुलाकात हुई, बात हुई, इश्क हुआ और शादी भी. तीन बच्चे हुए, दो बेटी और एक बेटा. लेकिन 1984 में कुछ विवाद हुआ और दोनों का तलाक हो गया. बस, ये ही वो पल था जब दुनिया ने एक नए जौन को देखा. वो जौन जो देवदास बन चुका था, बस इश्क में नाकामी की बात को छाती पीट-पीटकर दुनिया के सामने गाता था. पूरी दुनिया को अपनी बर्बादी बताता था, और जिस तरह बताता था लोग खुश होते और इसी अल्हड़पन ने जौन एलिया को सैयद-ए-जौन एलिया बना दिया.

उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा.
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे.
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का.
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे.

लेकिन क्या जौन सचमुच में अल्हड़ ही थे. नहीं, पाकिस्तान में वो उर्दू बोर्ड की भाषा के सरकारी बोर्ड के अध्यक्ष रहे. जिसका काम पाकिस्तान में उर्दू भाषा को आगे ले जाना था. इसके बावजूद जौन की कोशिश रही कि उन्हें बस एक फकीर के तौर पर ही याद किया जाए. जौन की ये फकीरी आपको उनके मुशायरों में मिल जाएगी, फिर चाहे वो पाकिस्तान में हो या फिर दुबई में या फिर कभी लखनऊ में भी. जौन जिस तरह शेर पढ़ते, किस्से सुनाते वो किसी किताबी शायर के जैसा बिल्कुल भी नहीं था. लेकिन देखने-सुनने वालों को जौन का ये ही अंदाज पसंद आया.

एक ही हवस रही है हमें,
अपनी हालत तबाह की जाए

अब सवाल है कि आखिर जौन में ऐसा क्या है जो किसी और में नहीं. और आज की युवा पीढ़ी जौन की इतनी दीवानी है. दरअसल, जौन ने जिस तरह अपनी बेवफाई, टूटे दिल की बात करते जो युवाओं को अच्छा लगता. शायद लोगों जौन में खुद को देखते थे. इसके अलावा जौन का तरीका लोगों को सबसे अच्छा लगता था. एक फकीर आदमी जो स्टेज़ पर शराब पीता है, सिगरेट पीते हुए अपने बालों को बिखेरते हुए चिल्लाते हुए कुछ कहता है तो दुनिया पागल हो जाती है.

वो जो ना आने वाला है उससे हमको मतलब था,
आने वालों का क्या, आते हैं आते होंगे.

आज जौन को पढ़ने वाले, जौन को सुनने वालों की कमी नहीं है. जौन की किताब यानी, गुमान, लेकिन, गोया को काफी पढ़ा जाता है. शायद जौन के रहते हुए उन्हें जितना जाना गया होगा, लेकिन उनके जाने के बाद सोशल मीडिया ने एक बार फिर उन्हें जिंदा कर दिया. हिंदुस्तान, पाकिस्तान या सऊदी में आज भी जौन सोशल मीडिया के जरिए जिंदा हैं. जौन ने अपनी शायरी के बारे में भी कुछ कहा है. जौन ने कहा है कि अपनी शायरी का जितना मुन्किर मैं हूं, उतना मुन्किर कोई बदतरीन दुश्मन भी न होगा. कभी-कभी मुझे अपनी शायरी, बुरी और बेतुकी लगती है इसलिए अबतक मेरा मज्मूआ शाये नहीं हुआ और जब तक खुदा ही शाये नहीं कराएगा, उस वक्त तक शाये भी नहीं होगा.

अभी कुछ वक्त पहले फिल्म एनिमल आई थी, उसके बारे में कई तरह की बातें हुईं और बेटे-पिता के रिश्ते को भी दिखाया गया. ऐसा ही एक रिश्ता जौन एलिया और उनके बेटे का भी था, हमने आपको बताया कि वो अपने परिवार से काफी पहले ही अलग हो गए थे. ऐसे में जौन एलिया अपने बेटे से मिल ही नहीं पाए, कभी छुटपन में देखा तो बात अलग है.

लेकिन शायर क्या कर सकता है, जौन ने अपने बेटे के लिए कुछ लिखा क्यूंकि वो उन्हें पहचान नहीं पाते थे, क्यूंकि वो उन्हें जान नहीं पाते थे. लेकिन अपने लफ्ज़ों के जरिए उन्होंने अपने बेटे को याद किया. जौन ने एक नज्म लिखी जिसका नाम दरख्त ए ज़र्द था. किस्सा यूं था कि जब जौन के बेटे जिनका नाम जरयून था, वो अपने लड़कपन में कभी जौन एलिया के सामने आए तो जौन उन्हें पहचान नहीं पाए क्योंकि कभी मिले ही नहीं थे. बेटे ने भी इतना प्यार नहीं दिखाया, बाद में जौन को मालूम पड़ा. तब उनसे ये नज्म निकली, इस कहानी के आखिर में उसी नज्म का एक शेर सुनाते हैं.

तुम्हारी अर्जुमंद अम्मी को मैं भूला बहुत दिन में
मैं उन की रंग की तस्कीन से निमटा बहुत दिन में
वही तो हैं जिन्हों ने मुझ को पैहम रंग थुकवाया
वो किस रग का लहू है जो मियाँ मैं ने नहीं थूका

 

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