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Jaun Elia Birthday: "ये है जब्र इत्तेफ़ाक़ नहीं, जौन होना कोई मज़ाक़ नहीं" पढ़ें शायर जौन एलिया के चुनिंदा शेर 

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साहित्य न्यूज़ डेस्क, उर्दू शायरी के चमिनस्तान में हज़ारों फूलों ने अपनी ख़ुशबू बिखेरी है. वक़्त तो गुज़रता गया और नए-नए फूल चमन को आबाद करते गए लेकिन कुछ ख़ुशबुओं का एहसास आज भी लोगों के दिलो-दिमाग़ पर छाया हुआ है. उन्हीं गुलों के हुजूम में एक फूल खिला जिसे दुनिया ने जौन एलिया के नाम से जाना और पहचाना. जौन उर्दू शायरी के एक आबाद शहर का नाम था. जिसकी दीवारों पर इश्क़ के क़िस्से लिखे थे. जिसकी मुंडेरों पर उल्फ़त के चराग़ जल रहे थे. जिसकी फ़सीलों पर मुहब्बत के परचम लहरा रहे थे. जिसकी गलियों में ग़ज़लें गश्त करती थीं. जिसकी जमीन शेर उगलती थी. जिसको अंधरों से मुहब्बत थी. जो उजालों से डर जाता था. कभी पहलू पर हाथ मारता था. कभी लंबी ज़ुल्फ़ों को चेहरों से झटक कर शेर सुनाता था. कभी रो पड़ता था. कभी जुनून के आलम में महफ़िल को लूट लिया करता था.

उस की उम्मीद-ए-नाज़ का हम से ये मान था
कि आप उम्र गुज़ार दीजिए उम्र गुज़ार दी गई

तुम जब आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझे
मेरी तनहाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं
मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं

चारासाज़ों की चारा-साज़ी से दर्द बदनाम तो नहीं होगा
हाँ दवा दो मगर ये बतला दो , मुझ को आराम तो नहीं होगा

उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या
दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या
अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं
हम ग़रीबों की आन-बान में क्या
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या

हो रहा हूँ मैं किस तरह बरबाद
देखने वाले हाथ मलते हैं
क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं

मत पूछो कितना गमगीं हूं गंगा जी और जमुना जी
ज्यादा मैं तुमको याद नहीं हूं गंगा जी और जमुना जी
अपने किनारों से कह दीजो आंसू तुमको रोते हैं
अब मैं अपना सोग-नशीं हूं गंगा जी और जमुना जी
अमरोहे में बान नदी के पास जो लड़का रहता था
अब वो कहाँ है? मैं तो वहीं हूँ गंगा जी और जमुना जी

इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊं
वगरना यूं तो किसी की नहीं सुनी मैंने  

मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस 
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं 

बहुत नज़दीक आती जा रही हो 
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या   

 

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