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Habib Jalib Shayari: मशहूर क्रांतिकारी शायर हबीब जालिब की लिखी कुछ सबसे मशहूर शायरियां 

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हबीब जालिब पाकिस्तान के क्रांतिकारी कवि और राजनीतिज्ञ थे. उनकी नज़्में पाकिस्तान में दमन के खिलाफ आवाज बनीं. हबीब जालिब की कलम हमेशा गरीब, मजलूम और मजदूर के अधिकारों की मांग में उठती थी. उनकी कलम की धार और बुलंद आवाज को शांत करने के लिए तत्कालीन सरकार ने सत्ता के बल पर तमाम कोशिशें की लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके. क्योंकि वे ना तो हुक्म मानते थे और ना ही सत्ता के आगे झुकते थे. असल मायनों में जालिब आम जनता का कवि थे. वे सीधे-सपाट शब्दों में जालिमों की खिलाफत करते थे.

हुक्मरान चाहे जिस देश और रंग के रहे हों,  हुक्मरानों के बरक्स प्रतिरोध की आवाज़ का दूसरा नाम है हबीब जालिब। हबीब जालिब के शब्दकोश से शक और वहम तब गायब हो जाता है जब वे सियासतदारों से बात करते हैं। गहरे आत्मविश्वास के रथ पर सवार बेख़ौफ़ गूंजती हुई आवाज़, तो आईये आज आपको मिलाएं हबीब के कुछ चुनिंदा शेरों से ....

अपनों ने वो रंज दिए हैं बेगाने याद आते हैं
देख के उस बस्ती की हालत वीराने याद आते हैं

 

लुट गई इस दौर में अहल-ए-क़लम की आबरू
बिक रहे हैं अब सहाफ़ी बेसवाओं की जगह

 

इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे

 

हम हँसे तो आँखों में तैरने लगी शबनम
तुम हँसे तो गुलशन ने तुम पे फूल बरसाए

 

उस रऊनत से वो जीते हैं कि मरना ही नहीं
तख़्त पर बैठे हैं यूँ जैसे उतरना ही नहीं

और सब भूल गए हर्फ़ सदाक़त लिखना
रह गया काम हमारा ही बग़ावत लिखना

कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ
बीते हुए दिन रात न याद आएँ तो सोएँ

क्या क्या लोग गुज़र जाते हैं रंग-बिरंगी कारों में
दिल को थाम के रह जाते हैं दिल वाले बाज़ारों में

कराहते हुए इंसान की सदा हम हैं
मैं सोचता हूँ मेरी जान और क्या हम हैं

कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत
रात भी अपने साथ साथ आँसू बहा चुकी बहुत

कहीं आह बन के लब पर तिरा नाम आ न जाए
तुझे बेवफ़ा कहूँ मैं वो मक़ाम आ न जाए

कौन बताए कौन सुझाए कौन से देस सिधार गए
उन का रस्ता तकते तकते नैन हमारे हार गए

बना है शाह का मुसाहिब फिरे है इतराता, 
वगरना शहर में ‘ग़ालिब’ की आबरू क्या है

कहीं गैस का धुआं है, कहीं गोलियों की बारिश 
शब-ए-अहद-ए-कमनिगाही तुझे किस तरह सुनाएं

दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है
दोस्तों ने भी क्या कमी की है

वो देखने मुझे आना तो चाहता होगा
मगर ज़माने की बातों से डर गया होगा

पा सकेंगे न उम्र भर जिस को
जुस्तुजू आज भी उसी की है

और सब भूल गए हर्फ़-ए-सदाक़त लिखना
रह गया काम हमारा ही बग़ावत लिखना

हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम
किसी के डर से तक़ाज़ा नहीं बदलते हम

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