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Bahadur Shah Zafar Shayari: मशहूर शायर और बादशाह बहादुर शाह जफर की कुछ सबसे बेहरीन शायरियां 

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बहादुर शाह ज़फ़र (Bahadur Shah Zafar) का जन्म 24 अक्तूबर सन् 1775 ई में और मृत्यु 7 नवंबर सन् 1862 ई. में हुई थी, ये  मुग़ल साम्राज्य के अंतिम बादशाह थे। इनका शासनकाल 1837-57 तक था। बहादुर शाह ज़फ़र एक कवि, संगीतकार व खुशनवीस थे और राजनीतिक नेता के बजाय सौंदर्यानुरागी व्यक्ति अधिक थे। बहादुर शाह जफर भारत के अंतिम मुगल सम्राट थे जिनका जन्म 1775 में दिल्ली में हुआ था। वह अपने पिता कि दुसरी संतान थे। 28 सितंबर 1837 को उनकी मृत्यु के बाद अपने पिता अकबर द्वितीय के उत्तराधिकारी बने। वह नाममात्र सम्राट थे, क्योंकि मुगल साम्राज्य केवल नाम में मौजूद था और उनका अधिकार केवल सीमित था। दिल्ली शहर (शाहजहांबाद) 1857 के भारतीय विद्रोह में उनकी भागीदारी के बाद, अंग्रेजों ने उन्हें साजिश के आरोपों पर दोषी ठहराते हुए ब्रिटिश नियंत्रित बर्मा में रंगून में निर्वासित कर दिया, पेश हैं उनके लिखे मशहूर शेर.....

औरों के बल पे बल न कर इतना न चल निकल
बल है तो बल के बल पे तू कुछ अपने बल के चल

दौलत-ए-दुनिया नहीं जाने की हरगिज़ तेरे साथ
बाद तेरे सब यहीं ऐ बे-ख़बर बट जाएगी

इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल

इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल
दुनिया है चल-चलाव का रस्ता सँभल के चल

जो तू हो साफ़ तो कुछ मैं भी साफ़ तुझ से कहूँ
तेरे है दिल में कुदूरत कहूँ तो किस से कहूँ

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में

कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में

तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें

तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी

ये चमन यूँ ही रहेगा और हज़ारों बुलबुलें

ये चमन यूँ ही रहेगा और हज़ारों बुलबुलें
अपनी अपनी बोलियाँ सब बोल कर उड़ जाएँगी

हमदमो दिल के लगाने में कहो लगता है क्या
पर छुड़ाना इस का मुश्किल है लगाना सहल है

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