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Bahadur Shah Zafar Shayari: बादशाह बहादुर शाह जफर की वो मशहूर शायरियां जो आज भी हैं जिंदा

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इतिहास बहादुर शाह को शायर के नाम से ही जानता लेकिन 11 मई 1857 को सुबह कुछ विद्रोही सिपाहियों का गुट मेरठ आ पहुंचा. उन्होंने बहादुर शाह II से कहा कि वे हिंदुस्तान के बादशाह हैं और उन्हें अपनी गद्दी संभालनी चाहिए. सिपाहियों के आग्रह पर चांदी का सिंहासन बंद पड़े कमरे से निकलवाया गया, उसे साफ किया गया. बहादुर शाह ''ज़फ़र'' से शहंशाह-ए-हिंद हो गए. लोगों ने कहा 'चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात'.

बहादुर शाह ने फ़रमान जारी किया कि हिंदू और मुसलमानों को मिलकर विद्रोहियों का साथ देना चाहिए. लोग साथ आए भी, कार्ल मार्क्स ने 1857 की क्रांति की तुलना फ्रांस की क्रांति से की. इस विद्रोह ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा. लेकिन अंग्रेजों ने इस विद्रोह को कुचलने के लिए बर्बरता की सारी हदें पार कर दीं. पेड़ों से लटकाकर लोगों को फांसी दी जा रही थी, लोगों को तोप से बांधकर उड़ाया जा रहा था. गांव के गांव जलाकर ख़ाक किए जा रहे थे. सड़कें कब्रिस्तान हो गईं थीं, चारों ओर सिर्फ लाशें दिख रही थीं... क्रांति ज़्यादा दिनों तक नहीं चल सकी, तो आईये आज आपको पढ़ाएं इनके कुछ सबसे बेहरीन शेर...

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