Akhlaq Mohammed Khan 'Shahryar' Shayari: मशहूर उर्दू शायरों में शामिल अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार' की मशहूर शायरियां
शहरयार की नज्मों और गजलों ने मोहब्बत को कभी रुसवा नहीं होने दिया। उनकी शायरी का अंदाज ही कुछ ऐसा था कि उसमें उनके जज्बात कभी अकेले दिखाई नहीं दिए। जिंदगी को समझने के लिए उन्होंने किसी का मानसिक सहारा नहीं लिया। तो आईये पढ़ें इनकी मशहूर नज्में...
बुझने के बाद जलना गवारा नहीं किया,
हमने कोई भी काम दोबारा नहीं किया।अच्छा है कोई पूछने वाला नहीं है यह
दुनिया ने क्यों ख़याल हमारा नहीं किया।जीने की लत पड़ी नहीं शायद इसीलिए
झूठी तसल्लियों पे गुज़ारा नहीं किया।यह सच अगर नहीं तो बहुत झूठ भी नहीं
तुझको भुला के कोई ख़सारा नहीं किया।
जो कहते हैं कहीं दरिया नहीं है
सुना उन से कोई प्यासा नहीं हैदिया लेकर वहाँ हम जा रहे हैं
जहाँ सूरज कभी ढलता नहीं हैन जाने क्यों हमें लगता है ऎसा
ज़मीं पर आसमाँ साया नहीं हैथकन महसूस हो रुक जाना चाहें
सफ़र में मोड़ वह आया नहीं हैचलो आंखों में फिर से नींद बोएं
कि मुद्दत से उसे देखा नहीं है
अब वक़्त जो आने वाला है किस तरह गुज़रने वाला है
वो शक्ल तो कब से ओझल है ये ज़ख़्म भी भरनेवाला हैदुनिया से बग़ावत करने की उस शख़्स से उम्मीदें कैसी
दुनिया के लिए जो ज़िन्दा है दुनिया से जो डरने वाला हैआदम की तरह आदम से मिले कुछ अच्छे-सच्चे काम करे
ये इल्म अगर हो इंसाँ को कब कैसे मरने वाला हैदरिया के किनारे पर इतनी ये भीड़ यही सुनकर आई
इक चाँद बिना पैराहन के पानी में उतरने वाला है

