Akbar Allahabdi Biography In Hindi: उर्दू के मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी का जीवन परिचय
शायरी की दुनिया के बेताज बादशाह "अकबर इलाहाबादी" किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं, उर्दू में हास्य-व्यंग के सबसे बड़े शायर , इलाहाबाद में सेशन जज थे।समाज के हर तबके में पल रही बुराइयों के खिलाफ अपनी शायरी /कविताओं के माध्यम से कुठाराघात करने और आलोचनात्मक शैली में शायरी करना उनकी बहुत बड़ी पहचान रही है। इलाहाबाद में रहकर इलाहाबादी रंग में रंग जाना अकबर इलाहाबादी से अच्छा कोई नहीं जानता होगा। तभी तो उनका इलाहाबादी होना उनके नाम से ही झलकता है।
सैयद अकबर हुसेन का जन्म 1846 ई. को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश और मृत्यु 1921 ई. को हुई थी। इन्हें भारत के प्रसिद्ध न्यायधीशों में गिना जाता था। इसके साथ ही वे उर्दू के जाने माने कवि भी थे। वे समाज में हर ऐसे अच्छे-बुरे परिवर्तन के विरोधी थे, जो अंग्रेज़ी प्रभाव से प्रेरित था। उर्दू शायरी में अकबर पहले शख्स थे जिनको बदलते हुए ज़माने, उस ज़माने से अपने सांस्कृतिक मूल्यों के लिए ख़तरा और अंग्रेज़ी तालीम को अंग्रेज़ी साम्राज्य के ताक़तवर हथियार होने का एहसास शिद्दत से था, तो आईये आज आपको मिलाएं इनके जीवन से....
अकबर इलाहाबादी का जन्म | Akbar Allahabdi Birth And Early Life
सैयद अकबर हुसैन का जन्म 1846 ई. में इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश के एक सम्मानजनक परिवार में हुआ था। अकबर 1846 में पैदा हुए थे यानी महात्मा गांधी से 23 साल और अल्लामा इक़बाल से 31 साल पहले। इन दोनों की पढ़ाई यूरोप में हुई थी।
अकबर इलाहाबादी का परिवार | Akbar Allahabdi Family
इनका पूरा नाम सैयद अकबर हुसैन रिजवी था। इनके पिता का नाम मौलवी तफ़ज़्ज़ुल हुसैन था। जो कि पर्सिया से एक आर्मी थे । वो बाद में हिंदुस्तान आ गए । इनकी मा एक बिहार के गया जिला के जगदीशपुर गाँव के एक जमींदार की बेटी थी।
अकबर इलाहाबादी की शिक्षा | Akbar Allahabdi Education
अकबर इलाहाबादी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपन पिता द्वारा घर पर ही प्राप्त की थी। साल 1856 में जा कर इन्हें जमुना मिशन स्कूल में दाखिला मिला जो कि एक अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल था । लेकिन इन्होंने साल 1859 में स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी लेकिन इन्हें अंग्रेज़ी पढ़ना और लिखना आ चुका था । पश्चिमी शिक्षा के बारे में अकबर की पहली शिकायत ये थी कि वो इंसान को उदार न बनाकर केवल नौकरी पाने का एक ज़रिया बनाती है. तभी तो उन्होंने लिखा था...
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अकबर इलाहाबादी की शादी | Akbar Allahabdi Marriage
उन्होंने 15 साल की उम्र में अपने दो या तीन साल बड़ी लड़की से शादी की थी।
अकबर इलाहाबादी का करियर | Akbar Allahabdi Career
स्कूल छोड़ने के बाद रेलवे के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में क्लर्क की नौकरी को करने लगे फिर अपनी नौकरी के दरम्यान ही इन्होंने वकालत का परीक्षा पास किया और तहसीलदार की नौकरी करने लगे बाद में इलाहाबाद में सेशन जज नियुक्त हुए। थोड़ी शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1868 में मुख्तारी की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1869 ई. में नायब तहसीलदार हुए। कुछ समय बाद उच्च न्यायालय की वकालत उत्तीर्ण की और मुनसिफ हो गए, फिर क्रमश: उन्नति करते हुए सेशन जज हुए, जहाँ से 1920 ई. में उन्होंने अवकाश प्राप्त किया।
अकबर इलाहाबादी का संघर्ष | Akbar Allahabdi Life
हालांकि अकबर इलाहाबादी एक अनिवार्य रूप से एक जीवंत, आशावादी कवि थे, उसके बाद के जीवन में चीजों के बारे में उनकी दृष्टि घर पर उसकी त्रासदी के अनुभव से घिर गई थी। उन्के बेटे और पोते का निधन कम उम्र में ही हो गया। यह उसके लिये बड़ा झटका था और निराशा का कारण बना। फलस्वरूप वह अपने जीवन के अंत की ओर काफी, वश में हो गया और तेजी से चिंताग्रस्त और धार्मिक होने लगे थे। 75 साल की उम्र में 1921 में अकबर की मृत्यु हो गई। अकबर इलाहाबादी एक शानदार, तर्कशील, मिलनसार आदमी थे। और उनकी कविता हास्य की एक उल्लेखनीय भावना के साथ कविता की पहचान थी। वो चाहे गजल, नजम, रुबाई या क़ित हो उनका अपना ही एक अलग अन्दाज़ था। वह एक समाज सुधारक थे और उनके सुधारवादी उत्साह बुद्धि और हास्य के माध्यम से काम किया था। शायद ही जीवन का कोई पहलू है जो उन्के व्यंग्य की निगाहों से बच गया था।
अकबर इलाहबादी का उर्दू साहित्य मे योगदान | Akbar Allahabdi In literature
उर्दू के लंबे और शुरुआती प्रयासों के कारण उनकी शायरी का उर्दू शायरी में एक विशिष्ट स्थान है। उनकी कविता दर्शकों को अपने समय के बारे में सामाजिक स्थितियों के बारे में सोचने और मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करती है। उन्होंने पाठकों को अपनी सोच में शामिल करने के लिए हास्य की भावना का इस्तेमाल किया। दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए हास्य की भावना को महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता है। अकबर इलाहाबादी उन उर्दू कवियों में से एक हैं जिनकी हास्य की भावना समुदाय को विभिन्न सामाजिक मुद्दों के तर्क के बारे में प्रेरित करती है।
अकबर इलाहाबादी का उल्लेखनीय कार्य | Akbar Allahabdi Work
अकबर इलाहाबादी की कविताओं के लेखन और अन्य साहित्यिक कार्यों की एक अलग श्रृंखला है। उनकी कविता को सराहा जाता है। “कुल्लियतों” को उनका सबसे उल्लेखनीय काम माना जाता है। कुल्लियात का अर्थ है कविताओं का संग्रह। उनकी चौथी मात्रा कुल्लियात 1948 में प्रकाशित हुई।
अकबर इलाहाबादी का निजी और राजनीतिक मान्यताओं में विरोधाभास | Akbar Allahabdi On Politics
उर्दू साहित्य में अकबर की लोकप्रियता कम होने की एक वजह उनके निजी जीवन और राजनीतिक मान्यताओं के बीच विरोधाभास भी था. शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी लिखते हैं, "अपने शेर में तो अकबर खुद को तमाम अंग्रेज़ी तौर-तरीक़ों का सख़्त दुश्मन जाहिर करते हैं, लेकिन वो ख़ुद अंग्रेज़ी राज के एक वरिष्ठ पदाधिकारी थे." "उन्हें इस बात पर भी गर्व था कि टॉमस बर्न जो एक ज़माने में उत्तर प्रदेश के चीफ़ सेक्रेट्री थे, उनका बहुत लिहाज़ करते थे." "अंग्रेज़ों से सख़्त नफ़रत के बावजूद अकबर ने अपने बेटे इशरत हुसैन को उच्च शिक्षा के लिए लंदन भेजा था और उनकी रज़ामंदी से वो यूपी की सिविल सर्विस में बतौर डिप्टी कलक्टर शरीक हुए थे."
जज बनकर रिटायर हुए | Akbar Allahabdi Retirement
अकबर इलाहाबादी का जन्म 16 नवंबर, 1846 को इलाहाबाद के पास बारा गाँव में हुआ था. शुरू में वो नौकरी की तलाश में बहुत भटके. फिर वो जमुना पुल के निर्माण के समय पत्थरों की नाप-जोख के मुंशी बन गए. बाद में उन्हें नकलनवीस की नौकरी मिल गई. वर्ष 1867 में वो नायब तहसीलदार बन गए. उससे इस्तीफ़ा देकर उन्होंने हाइकोर्ट में काम किया. सन् 1873 में उन्होंने वकालत की परीक्षा पास की. उसके बाद उन्होंने सात साल तक इलाहाबाद, गोरखपुर, आगरा और गोंडा में वक़ालत भी की. सन 1880 में वो मुंसिफ़ हो गए और तरक्की पाते-पाते वो ज़िला जज के पद तक पहुंच गए. जस्टिस एकमन के रिटायर होने के बाद उनका हाइकोर्ट में जज होना भी तय था, लेकिन तभी उनकी आँखों की रोशनी कम होने लगी. इसलिए वो समय से पहले पेंशन लेकर इलाहाबाद की कोतवाली के पीछे अपनी आलीशान कोठी इशरत महल में रहने चले गए.
गौहर जान के लिए शेर | Akbar Allahabdi On Gohar Jaan
एक बार कलकत्ता की मशहूर गायिका गौहर जान इलाहाबाद आईं तो वो अकबर इलाहाबादी से मिलने गईं. अकबर साहब ने उनसे कहा, "पहले मैं जज हुआ करता था. अब रिटायर होकर सिर्फ़ अकबर रह गया हूँ. मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं आपको कौन सा तोहफ़ा पेश करूँ." उसी मुलाकात में उन्होंने गौहर जान पर शेर लिख कर उनके हाथों में पकड़ा दिया था
ख़ुशनसीब आज भला कौन है गौहर के सिवा सब कुछ अल्लाह ने दे रखा है शौहर के सिवा
अकबर इलाहाबादी की गजलें | Akbar Allahabdi Shayari
- हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
- दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
- आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
- ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता
- चर्ख़ से कुछ उमीद थी ही नहीं
- दिल मिरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला
- फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं
- हाल-ए-दिल मैं सुना नहीं सकता
- आह जो दिल से निकाली जाएगी
- हूँ मैं परवाना मगर शम्अ तो हो रात तो हो
- इक बोसा दीजिए मिरा ईमान लीजिए
- अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके
- हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
- गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन
- बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
- वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे
- साँस लेते हुए भी डरता हूँ
- बिठाई जाएँगी पर्दे में बीबियाँ कब तक
- तेरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है
- दर्द तो मौजूद है दिल में दवा हो या न हो
- जहाँ में हाल मिरा इस क़दर ज़बून हुआ
- हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए
- ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे
- उम्मीद टूटी हुई है मेरी जो दिल मेरा था वो मर चुका है
- आज आराइश-ए-गेसू-ए-दोता होती है
- न रूह-ए-मज़हब न क़ल्ब-ए-आरिफ़ न शाइ'राना ज़बान बाक़ी
- जज़्बा-ए-दिल ने मिरे तासीर दिखलाई तो है
- कहाँ वो अब लुत्फ़-ए-बाहमी है मोहब्बतों में बहुत कमी है
- फिर गई आप की दो दिन में तबीअ'त कैसी
- बे-तकल्लुफ़ बोसा-ए-ज़ुल्फ़-ए-चलीपा लीजिए
- रंग-ए-शराब से मिरी निय्यत बदल गई
- ख़ुदा अलीगढ़ के मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे
- अपनी गिरह से कुछ न मुझे आप दीजिए
- न बहते अश्क तो तासीर में सिवा होते
- न हासिल हुआ सब्र-ओ-आराम दिल का
- ख़ुशी है सब को कि ऑपरेशन में ख़ूब निश्तर ये चल रहा है
- उन्हें निगाह है अपने जमाल ही की तरफ़
- दिल-ए-मायूस में वो शोरिशें बरपा नहीं होतीं
- अगर दिल वाक़िफ़-ए-नैरंगी-ए-तब-ए-सनम होता
- क्या जानिए सय्यद थे हक़ आगाह कहाँ तक
- इश्क़-ए-बुत में कुफ़्र का मुझ को अदब करना पड़ा
- हवा-ए-शब भी है अम्बर-अफ़्शाँ उरूज भी है मह-ए-मुबीं का
- शेख़ ने नाक़ूस के सुर में जो ख़ुद ही तान ली
- मा'नी को भुला देती है सूरत है तो ये है
- तरीक़-ए-इश्क़ में मुझ को कोई कामिल नहीं मिलता
- ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी
- हल्क़े नहीं हैं ज़ुल्फ़ के हल्क़े हैं जाल के
- जब यास हुई तो आहों ने सीने से निकलना छोड़ दिया
- दिल हो ख़राब दीन पे जो कुछ असर पड़े
- जो तुम्हारे लब-ए-जाँ-बख़्श का शैदा होगा
- तुम ने बीमार-ए-मोहब्बत को अभी क्या देखा
- दश्त-ए-ग़ुर्बत है अलालत भी है तन्हाई भी
- ख़ुशी क्या हो जो मेरी बात वो बुत मान जाता है
- हर इक ये कहता है अब कार-ए-दीं तो कुछ भी नहीं
- जल्वा अयाँ है क़ुदरत-ए-परवरदिगार का
- सदियों फ़िलासफ़ी की चुनाँ और चुनीं रही
- वज़्न अब उन का मुअ'य्यन नहीं हो सकता कुछ
- मिल गया शरअ' से शराब का रंग
- क्या ही रह रह के तबीअ'त मिरी घबराती है
- मेरी तक़दीर मुआफ़िक़ न थी तदबीर के साथ
- नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की
- मज़हब का हो क्यूँकर इल्म-ओ-अमल दिल ही नहीं भाई एक तरफ़
- ये सुस्त है तो फिर क्या वो तेज़ है तो फिर क्या
- हसीनों के गले से लगती है ज़ंजीर सोने की
- रौशन दिल-ए-आरिफ़ से फ़ुज़ूँ है बदन उन का
- मेहरबानी है अयादत को जो आते हैं मगर
- हरम क्या दैर क्या दोनों ये वीराँ होते जाते हैं
- लुत्फ़ चाहो इक बुत-ए-नौ-ख़ेज़ को राज़ी करो
- यूँ मिरी तब्अ' से होते हैं मआ'नी पैदा
- मेरे हवास-ए-इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
अकबर इलाहाबादी की नज्में | Akbar Allahabdi Writings
- आम-नामा
- नई तहज़ीब
- जल्वा-ए-दरबार-ए-देहली
- मदरसा अलीगढ़
- मिस सीमीं बदन
- दरबार
अकबर इलाहाबादी की मृत्यु | Akbar Allahabdi Death
जब अकबर इलाहाबादी साल 1903 में जब सेवा निवृत हो गए तो वह वापस इलाहाबाद आ गए । फिर साल 1921 में 9 सितंबर को बुखार की वज़ह से इनका इंतेक़ाल हो गया ।

