Personal Loan के लिए अप्लाई करने पर बैंक क्यों मांगते हैं Blank cheque? क्या इसे देना है सही, जानें सबकुछ

आज के समय में लोगों की आर्थिक जरूरतें तेजी से बढ़ रही हैं। शादी, शिक्षा, मेडिकल इमरजेंसी या यात्रा जैसी जरूरतों को पूरा करने के लिए लोग बिना ज्यादा दस्तावेजी औपचारिकता के पर्सनल लोन लेना पसंद करते हैं। लेकिन लोन लेने की प्रक्रिया में एक बात अकसर सामने आती है—बैंक या एनबीएफसी द्वारा ब्लैंक चेक की मांग। यह मांग कई बार उपभोक्ताओं को असहज कर देती है, क्योंकि उन्हें नहीं पता होता कि इसका असली उद्देश्य क्या है और क्या यह अनिवार्य है भी या नहीं।
ब्लैंक चेक क्या होता है?
ब्लैंक चेक वह चेक होता है जिसमें सिर्फ खाता धारक के सिग्नेचर होते हैं, लेकिन बाकी जानकारी जैसे राशि (Amount), प्राप्तकर्ता का नाम (Payee Name) और तारीख (Date) खाली छोड़ी जाती है। यह चेक बैंक या वित्तीय संस्था को दिया जाता है ताकि जरूरत पड़ने पर वह खुद उसमें जानकारी भरकर इस्तेमाल कर सके।
क्या पर्सनल लोन के लिए ब्लैंक चेक देना जरूरी है?
नहीं, यह कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है। लेकिन कुछ बैंक या NBFC (Non-Banking Financial Companies) अपनी पॉलिसी के तहत सिक्योरिटी के तौर पर ब्लैंक चेक की मांग कर सकते हैं। इन संस्थाओं के मुताबिक, यह उनके लोन रिस्क को कम करने का तरीका होता है। हालांकि, सभी संस्थाएं ऐसा नहीं करतीं। बहुत से बैंक और डिजिटल लोन प्लेटफॉर्म्स ECS या NACH ऑटो-डेबिट मैकेनिज्म के जरिए ईएमआई वसूलते हैं, जिनमें चेक की जरूरत नहीं होती।
बैंक ब्लैंक चेक क्यों मांगता है?
बैंक या NBFC द्वारा ब्लैंक चेक मांगे जाने के पीछे मुख्य उद्देश्य होता है—लोन राशि की सुरक्षा। अगर कोई ग्राहक EMI चुकाने में चूक करता है या जानबूझकर भुगतान नहीं करता, तो बैंक के पास एक विकल्प होता है कि वह उस ब्लैंक चेक में अमाउंट भरकर उसे इनकैश करा सके।
यह विशेष रूप से अनसिक्योर लोन, जैसे कि पर्सनल लोन के मामलों में किया जाता है, जहां बैंक के पास कोई गिरवी (Collateral) नहीं होता। दूसरी ओर, यदि आपने गोल्ड लोन या होम लोन लिया है, तो बैंक के पास पहले से आपकी संपत्ति गिरवी होती है, इसलिए ब्लैंक चेक की जरूरत नहीं होती।
क्या ब्लैंक चेक का गलत इस्तेमाल हो सकता है?
हां, बिलकुल। अगर ब्लैंक चेक गलत हाथों में चला जाए, तो उसका दुरुपयोग किया जा सकता है। कोई भी उस चेक में भारी भरकम रकम भरकर उसे अपने पक्ष में इस्तेमाल कर सकता है। ऐसे मामलों में कई बार चेक बाउंस की स्थिति आ जाती है, जिससे कानूनी परेशानी हो सकती है।
इससे बचने के लिए कुछ सावधानियां जरूरी हैं:
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दिए गए हर ब्लैंक चेक की फोटोकॉपी या स्कैन कॉपी अपने पास रखें।
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बैंक से यह लिखित में लें कि चेक का उपयोग किस परिस्थिति में किया जाएगा।
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हो सके तो चेक पर “Not to Exceed Rs. XXXX” जैसी लिमिटेशन लिख दें।
डिजिटल सिस्टम ने बदली है व्यवस्था
आजकल डिजिटल बैंकिंग और ऑटो-डेबिट सिस्टम जैसे ECS और NACH ने लोन की वसूली को काफी आसान और सुरक्षित बना दिया है। इस सिस्टम में आपका बैंक खाता लोन कंपनी से लिंक हो जाता है और हर महीने EMI की रकम अपने आप कट जाती है। इससे न तो चेक की जरूरत होती है और न ही चेक बाउंस जैसी समस्याएं आती हैं।
निष्कर्ष
पर्सनल लोन लेते समय ब्लैंक चेक देना आपकी मजबूरी नहीं है, बल्कि यह बैंक की सुरक्षा नीति का हिस्सा हो सकता है। यदि आपको इस पर संदेह है या आप असहज महसूस करते हैं, तो बैंक से पूछें कि क्या ECS या NACH के माध्यम से लोन चुकाने का विकल्प उपलब्ध है।
अगर आपको ब्लैंक चेक देना ही पड़ता है, तो कुछ जरूरी सावधानियां अपनाकर आप इसके दुरुपयोग से खुद को बचा सकते हैं। आज के डिजिटल युग में जहां लोन प्रोसेसिंग आसान और पारदर्शी हो गई है, वहां जागरूकता के साथ किया गया हर निर्णय आपको सुरक्षित और संतुलित वित्तीय जीवन जीने में मदद करता है।
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