क्यों बार-बार लौटती हैं बुरी और दर्दनाक यादें? वीडियो में मस्तिष्क और भावनाओं के इस खेल को जन रह जाएंगे दंग

क्या कभी आपने सोचा है कि कुछ पुरानी यादें, चाहे वो कितनी भी सालों पुरानी क्यों न हों, आज भी हमारी नींद उड़ा देती हैं? कोई अधूरी मोहब्बत, कोई दोस्त की बेवफाई, परिवार में हुआ कोई गहरा झगड़ा या जीवन की कोई ऐसी घटना जो आपके दिल को तोड़ गई हो — ये सब हमारी स्मृति में इस कदर घर कर जाती हैं कि हम लाख कोशिशों के बावजूद उनसे पीछा नहीं छुड़ा पाते। पर सवाल यही है — आखिर क्यों पुरानी यादें हमें उम्र भर सताती हैं? और क्या इनसे छुटकारा पाना मुमकिन है?इस सवाल का जवाब केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक, न्यूरोलॉजिकल और सामाजिक दृष्टिकोण से भी जुड़ा है।
यादों की जड़ें हमारे मस्तिष्क में कितनी गहराई तक जाती हैं?
जब कोई घटना हमारे जीवन में गहराई से असर डालती है, तो वह सिर्फ दिल को नहीं, दिमाग के hippocampus और amygdala जैसे हिस्सों को भी प्रभावित करती है। ये भाग हमारी भावनात्मक स्मृति और भय, तनाव, या खुशी जैसे अनुभवों से जुड़े होते हैं। खासकर नकारात्मक या आघात देने वाली घटनाएं मस्तिष्क में गहरी छाप छोड़ती हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि जब हम कोई घटना बार-बार याद करते हैं, तो वह स्मृति और भी गहरी होती जाती है, जैसे बार-बार किसी मिट्टी के बर्तन पर एक ही निशान बना देना।
क्यों नकारात्मक यादें अधिक समय तक बनी रहती हैं?
शोध बताते हैं कि मानव मस्तिष्क नकारात्मक अनुभवों को अधिक मजबूती से और लंबे समय तक संजो कर रखता है। इसके पीछे विकासवादी कारण भी हैं — जैसे यदि हमारे पूर्वज किसी खतरनाक अनुभव (जैसे जंगली जानवर का हमला) को लंबे समय तक याद रखते, तो वो भविष्य में सतर्क रह सकते थे। यही प्रक्रिया आज भी हमारी मानसिकता में सक्रिय है। इसलिए धोखा, अपमान, असफलता जैसी घटनाएं हमें ज्यादा लंबे समय तक याद रहती हैं।
क्या केवल भावनात्मक लोग ही ज्यादा यादों में उलझे रहते हैं?
यह एक आम धारणा है कि भावुक लोग ही पुरानी बातों को भूल नहीं पाते। लेकिन सच यह है कि हर व्यक्ति की स्मृति और उसकी भावनाओं की पकड़ अलग होती है। कुछ लोग गहरी भावनाओं को भीतर ही भीतर सहेजते हैं और उन्हें बार-बार दोहराते हैं, जबकि कुछ लोग उन्हें समय के साथ पीछे छोड़ देते हैं। हालांकि, भावनात्मक रूप से अधिक संवेदनशील लोग, खासकर वे जो आत्म-मूल्यांकन अधिक करते हैं, यादों की गिरफ्त में अधिक फंसते हैं।
क्या सोशल मीडिया और आज का वातावरण यादों को और गहरा बना रहा है?
आज जब हर बात को हम तस्वीरों, स्टेटस और डिजिटल फॉर्म में सहेज लेते हैं, तो कोई भी याद पूरी तरह मिट नहीं पाती। फेसबुक की "On This Day", इंस्टाग्राम की पुरानी स्टोरीज़ या व्हाट्सएप की पुरानी चैट्स — ये सब हमारी भावनाओं को बार-बार कुरेदने का काम करते हैं। आप आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन मोबाइल पर एक नोटिफिकेशन आपको उसी बीते हुए पल में वापस खींच लाता है।
क्या पुरानी यादों से छुटकारा पाना संभव है?
हाँ, लेकिन इसके लिए आत्मचिंतन, मानसिक अनुशासन और सही दृष्टिकोण की जरूरत होती है:
स्वीकार करें – यादों को दबाना नहीं, स्वीकारना सीखें। जो बीत गया उसे समझें, न कि उससे लड़ें।
लेखन-चिकित्सा (Writing Therapy) – अपने अनुभवों को कागज़ पर लिखना बेहद कारगर उपाय है। इससे मन हल्का होता है।
ध्यान और योग – ध्यान करने से मस्तिष्क को नकारात्मक तरंगों से राहत मिलती है। इससे स्मृतियाँ धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगती हैं।
सोशल मीडिया डिटॉक्स – पुराने संदेश, तस्वीरें और नोटिफिकेशन से दूरी बनाएं। डिजिटल यादों से दूरी भी जरूरी है।
नई रुचियां अपनाएं – खाली मन बार-बार पुरानी बातों की ओर लौटता है। नए शौक, काम और लोगों से जुड़ना मददगार हो सकता है।
यादें हमारी जीवन यात्रा का हिस्सा हैं, लेकिन जब वे हमारे वर्तमान को बोझ बना दें, तो उन्हें संभालना ज़रूरी हो जाता है। बुरी या दर्दनाक यादें हमें जीवन में सावधानी सिखाती हैं, लेकिन यदि हम उन्हें ही अपना केंद्र बना लें, तो वे हमारे मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकती हैं। इसलिए जरूरी है कि हम बीते कल को समझें, सीखें और आगे बढ़ें।
अगर आप भी किसी पुरानी याद की वजह से दुखी हैं, तो यह समझें कि आप अकेले नहीं हैं। हर व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई ऐसी स्मृति होती है जो उसे रोकती है। लेकिन यह आपकी ताकत बन सकती है, अगर आप उसे सही रूप में देखें।क्योंकि यादें मिटती नहीं हैं, लेकिन उनका असर कम किया जा सकता है — समझदारी, आत्मविश्वास और नए जीवन के स्वागत के साथ।