क्या अहंकार को हराना संभव है? 3 मिनट के इस वीडियो में Osho से जाने 'मैं' के सभाव से मुक्ति पाने के उपाय ?

अहंकार—एक ऐसा शब्द जिसे हम रोजमर्रा की ज़िंदगी में तो सुनते हैं, लेकिन इसके प्रभाव और गहराई को समझना बेहद जटिल है। यह केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक मानसिक स्थिति है जो धीरे-धीरे व्यक्ति की चेतना पर अधिकार जमा लेती है। मनुष्य अपने विचार, सफलता, ज्ञान, पद और उपलब्धियों से एक झूठा "स्व" गढ़ लेता है, जिसे हम 'अहंकार' कहते हैं। लेकिन क्या इस अहंकार को हराना सम्भव है? आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश ने इस प्रश्न का उत्तर बेहद सरल, लेकिन गहन शब्दों में दिया है।
अहंकार क्या है? ओशो की दृष्टि से
ओशो कहते हैं कि "अहंकार कोई असली वस्तु नहीं है, यह केवल आपके होने की एक गलत धारणा है।" यह वह नकाब है जो समाज, शिक्षा और व्यक्तिगत अपेक्षाओं से निर्मित होता है। यह नकाब हमें स्वयं से दूर ले जाता है। हम जो नहीं हैं, वही बनते जाते हैं। अपने मूल स्वरूप, अपने सत्य अस्तित्व से भटकते हुए हम अहंकार के आभासी संसार में खो जाते हैं।ओशो के अनुसार अहंकार की जड़ें तुलना, महत्वाकांक्षा और स्वार्थ में होती हैं। हम स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ मानने लगते हैं या कभी-कभी दूसरों से हीन समझने लगते हैं—दोनों ही स्थितियां अहंकार की ही उपज हैं। क्योंकि अहंकार का मूल स्वभाव है “मैं अलग हूं”, “मैं विशेष हूं” या “मैं कुछ हूं” की धारणा।
अहंकार को समझना ही पहली सीढ़ी है
ओशो कहते हैं कि जब तक हम अहंकार को पहचानते नहीं, तब तक उससे मुक्ति की कोई संभावना नहीं। अहंकार को जीतने की शुरुआत उसे पहचानने और उसके अस्तित्व पर सवाल उठाने से होती है। वह कहते हैं, "जैसे ही तुम अपने भीतर झाँककर देखोगे, एक खालीपन, एक मौन मिलेगा—वहीं तुम हो। लेकिन अहंकार हमेशा शोर करता है, क्योंकि वह खालीपन से डरता है।"अहंकार एक भ्रम है, जो विचारों की भीड़ से पैदा होता है। हम जैसे ही चुप होते हैं, शांत होते हैं, ध्यान की स्थिति में जाते हैं, यह भ्रम धीरे-धीरे टूटने लगता है। ध्यान, आत्मनिरीक्षण और मौन—ये ओशो के अनुसार अहंकार के विनाश के प्रमुख साधन हैं।
अहंकार बनाम आत्मा
ओशो अहंकार और आत्मा (स्व) में स्पष्ट भेद करते हैं। आत्मा न तो किसी पद से जुड़ी होती है, न किसी उपलब्धि से और न किसी पहचान से। आत्मा वह है जो शुद्ध, मौन और सहज है। जब व्यक्ति अपने अंदर उतरता है, आत्मचिंतन करता है, तब उसे समझ में आता है कि जो वह सोचता है "मैं" हूं, वह केवल एक भूमिका है। जैसे अभिनेता मंच पर अलग-अलग किरदार निभाता है, वैसे ही हम जीवन में कई पहचानें ओढ़ते हैं—लेकिन ये सब 'मैं' नहीं हैं।ओशो कहते हैं, "जब तुम अपने भीतर की शांति को अनुभव करते हो, तब तुम जान पाते हो कि तुम कुछ नहीं हो—and यही तुम्हारा असली सौंदर्य है।" अहंकार समाप्त होता है और जो बचता है वह है शुद्ध चेतना।
क्या अहंकार को पूरी तरह मिटाया जा सकता है?
यहां ओशो एक अहम बात कहते हैं—अहंकार को लड़कर नहीं हराया जा सकता, क्योंकि "अहंकार से लड़ना भी अहंकार ही है।" जैसे अंधकार को हटाने के लिए मशाल जलानी होती है, वैसे ही अहंकार को हटाने के लिए आत्मजागृति चाहिए। जब आप पूर्ण रूप से सजग होते हैं, जब आप हर क्रिया, हर विचार और हर भावना को एक साक्षी भाव से देखते हैं, तो अहंकार स्वतः गिरने लगता है।वह कहते हैं कि ध्यान, समर्पण और प्रेम—ये तीन शक्तिशाली मार्ग हैं जो अहंकार को पिघला सकते हैं। प्रेम में व्यक्ति स्वयं को भूल जाता है, समर्पण में वह अपने "मैं" को त्याग देता है, और ध्यान में वह उसे पहचान कर उससे परे उठता है।
ओशो का समाधान: साक्षी भाव और मौन की साधना
ओशो बार-बार “साक्षी भाव” की बात करते हैं—यानी कि खुद को क्रियाओं और विचारों से अलग देखना। जब आप अपनी सोच को केवल देखें, उसे पकड़ें नहीं, तो धीरे-धीरे विचार कम होते जाते हैं, और जहां विचार नहीं होता, वहां अहंकार नहीं होता। वहीं से शुरू होता है आत्मा का अनुभव।मौन भी अहंकार के विघटन का शक्तिशाली उपाय है। ओशो कहते हैं, "जब तुम मौन होते हो, तब तुम अस्तित्व से जुड़ते हो। वहां कोई द्वंद्व नहीं होता, कोई अपेक्षा नहीं होती, बस होने का आनंद होता है।"
अंततः, अहंकार को हराना कोई युद्ध नहीं, बल्कि चेतना की एक यात्रा है। ओशो के शब्दों में—“अहंकार नहीं है, केवल तुम्हारी कल्पना है। अगर तुम जाग जाओ, तो वह भस्म हो जाएगा।” इसलिए, अहंकार से मुक्ति न तो कठिन है और न असंभव—बस इसके लिए चाहिए एक सच्ची दृष्टि, सतत सजगता और भीतर उतरने का साहस।अगर आप ओशो की शिक्षाओं के अनुरूप अहंकार से पार पाना चाहते हैं, तो जीवन को एक प्रयोगशाला बनाइए, जहां आप स्वयं को हर पल देखें, समझें और स्वीकारें। जब आप जान जाएंगे कि आप केवल एक साक्षी हैं, तब अहंकार की सारी दीवारें गिर जाएंगी—और आप अनुभव करेंगे एक मौन, प्रेम और शांति से भरा अस्तित्व।